Gyanvapi Masjid Survey: ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के खिलाफ याचिका, इस तारिक सुनवाई कर सकता है SC

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Gyanvapi Masjid Survey: ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के खिलाफ याचिका, इस तारिक सुनवाई कर सकता है SC
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Gyanvapi Masjid Survey: सांस्कृतिक नगरी वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में एक तरफ सर्वे हो रहा है. दूसरी तरफ इसके खिलाफ मस्जिद की देखरेख की जिम्मेदारी संभालने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. मसाजिद कमेटी ने सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. सुप्रीम कोर्ट में मसाजिद कमेटी की इस याचिका पर जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ सुनवाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई कब होगी, इसकी तारीख अभी तय नहीं हुई है लेकिन माना जा रहा है कि 17 मई को सुनवाई हो सकती है. ऐसा इसलिए भी, क्योंकि 16 मई को बुद्ध पूर्णिमा की वजह से सार्वजनिक अवकाश है. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट भी बंद रहेगा. ज्ञानवापी मामले में याचिकाकर्ता अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि 1991 में दाखिल किए गए वाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले ही रोक लगा चुका है. उस याचिका में भी सर्वेक्षण कराने को लेकर कोर्ट का आदेश भी था. हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.

याचिकाकर्ता ने ये भी सवाल उठाया है कि जब स्टे लगा हुआ था, फिर निचली अदालत में याचिका कैसे आई और निचली अदालत ने फिर से वीडियोग्राफी के साथ सर्वेक्षण कराने का आदेश कैसे दे दिया? मसाजिद कमेटी ने आरोप लगाया है कि श्रृंगार गौरी के पक्षकारों ने पिछले दरवाजे से उसी भाव में ये वाद दाखिल किया जिसपर 1991 में हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. दोनों याचिकाएं उपासना स्थल कानून 1991 के खिलाफ हैं.

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वाराणसी कोर्ट ने आपत्तियों पर नहीं किया विचार

याचिकाकर्ता ने राम मंदिर मामले का उल्लेख करते हुए कहा है कि उपासना स्थल कानून 1991 पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने अयोध्या मामले में अपने फैसले से अपनी मुहर भी लगाई थी. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में ये भी कहा है कि वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी और श्रृंगार गौरी मामले में सर्वेक्षण कराने से पहले कमेटी की आपत्तियों पर विचार नहीं किया. मंदिर के पैरोकारों ने यह नई याचिका 1991 में दाखिल की गई याचिका को दरकिनार करके दाखिल की है.

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उपासना स्थल कानून का याचिका में उल्लेख

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सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में इस बात का जिक्र भी किया गया है कि जब उपासना स्थल कानून की तस्दीक सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी कर दी गई है कि अयोध्या में राम मंदिर के अलावा किसी और उपासना स्थल की स्थिति में बदलाव नहीं किया जाएगा. तब फिर वाराणसी की कोर्ट ने ये आदेश कैसे दिया? सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमणा ने इस मामले को सुनवाई के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने को कहा है.

मौखिक उल्लेख के जरिये आई थी याचिका

इससे पहले, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका 13 मई को चीफ जस्टिस की कोर्ट के सामने मौखिक उल्लेख के जरिये आई थी. तब चीफ जस्टिस रमणा ने कहा था कि याचिका और अदालती आदेश की प्रतियों के बगैर अदालत इस मामले में सुनवाई नहीं कर सकती. याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट हुजैफा अहमदी ने मामला मेंशन करते हुए विवादित परिसर में यथास्थिति बहाल रखने का आग्रह किया था. हालांकि, कोर्ट ने ऐसा कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था.

गौरतलब है कि श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार और ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर कथित रूप से मौजूद विग्रहों की स्थिति जानने के लिए सर्वेक्षण की मांग को लेकर पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में वाद दायर किया था. इसी वाद पर कोर्ट ने सर्वे के लिए एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की थी और इसी को लेकर विवाद है.

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