लखीमपुर हिंसा : 5000 पन्नों की चार्जशीट के 5 वो बड़े सबूत, जिसने खोला मंत्री बेटे का कच्चा-चिट्ठा

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संतोष शर्मा के साथ सुप्रतिम बनर्जी और सुनील मौर्य की रिपोर्ट

Lakhimpur Kheri Violence Full Chargesheet Report : लखीमपुर हिंसा के जो आरोपी रहे वो कोई मामूली नहीं थे. देश के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री का बेटा. यानी पुलिस जिसके इशारे पर काम करती है वही जांच के दायरे में. गुनाह भी कोई मामूली नहीं. बल्कि कई बेगुनाहों की हत्या करने का. आगजनी कराने का. ऐसे में जिसकी सरकार उसी के खिलाफ जांच करना आसान नहीं था.

ना सिर्फ आसान बल्कि सबूत जुटाना उससे भी मुश्किल. ऐसे में अब जब यूपी पुलिस की SIT ने 5 हजार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की तब इस हाई प्रोफाइल केस में सबूत जुटाना और उसकी कड़ियों को जोड़ना इतना आसान नहीं था.

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ये मुश्किल इसलिए भी था क्योंकि इसमें जिस मुल्जिम के खिलाफ सवाल और सबूत जुटाए जा रहे थे वो उसमें रत्ती भर की लापरवाही भी उन पुलिसवालों की नौकरी पर हमेशा के लिए सवालिया निशान लगाने के लिए काफी होती. तो जानतें हैं वो सबूत और साजिश जिनकी बुनियाद पर ये चार्जशीट तैयार की गई.

वो 5 तथ्य जिनसे मंत्री के बेटे पर कसा शिकंजा

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1- घटना की शुरुआत ऐसे हुई : ये घटना है 3 अक्टूबर की. उस दिन लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में दंगल आयोजित हुआ था. इस दंगल में यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य आने वाले थे. किसान उनका विरोध कर रहे थे. इस कुश्ती दंगल में शामिल होने के लिए बीजेपी के कई कार्यकर्ता भी आ रहे थे. लेकिन जब ये दंगल में काफी परेशान और रोते हुए पहुंचे.

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सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट में ये बताया गया है कि इस बारे में जब केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा ने पूछा तो कार्यकर्ताओं ने बताया कि, मोनू भैया, देखिए किसानों ने ये क्या कर दिया? अब क्या बताएं, रास्ते में किसानों ने हमलोगों की गाड़ियों को रोक लिया और तोड़फोड़ की. वो तो जबरन रोक रहे थे लेकिन किसी तरह बचकर आ निकले. कार्यकर्ताओं की इन बातों को सुनते ही आशीष मिश्रा गुस्से में आ गए और उन्हें सबक सिखाने का फैसला लिया.

2- पेट्रोल पंप के सीसीटीवी से मिला सुराग : इसके बाद किसानों को कुचलने की बात सामने आई थी. फायरिंग की भी बात सामने आई थी. लेकिन आशीष मिश्रा उर्फ मोनू ने बार-बार ये कहा था कि ना तो वो मौके पर ही गया था और ना ही उसकी गाड़ियों ने कुचला था. बल्कि किसानों ने अचानक हमला किया था जिसके बाद भागदौड़ में किसानों की मौत हुई थी.

लेकिन एसआईटी की जांच में पता चला कि दंगल वाले स्थान से निकलते ही एक पेट्रोल पंप है. उस पेट्रोल पंप के सीसीटीवी फुटेज को खंगाला गया तो पता चला कि दंगल वाली जगह से निकलते ही आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की गाड़ियों की रफ़्तार शुरू से ही काफ़ी ज्यादा थी. यानी करीब 80 से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार थी.

इससे साफ होता है कि ये काफिला पहले से ही तेज रफ्तार में चल रहा था. लिहाजा, ये साबित करने के लिए काफ़ी थी कि मोनू और उसके लोग गुस्से से भर कर ही गांव से किसानों को कुचलने के लिए निकले थे. यानी सबकुछ इरादतन था ना कि ग़ैर इरादतन.

3- आशीष के मौके पर होने के ये हैं बड़े सबूत : इस पूरी घटना को लेकर आशीष मिश्रा उर्फ मोनू के मंत्री पिता ने बार-बार ये दावा किया कि वो मौके पर नहीं था. इस हिंसा से मोनू का कोई लेना-देना नहीं है. इसके अलावा ये भी दावा किया गया था कि किसानों ने ही उग्र व्यवहार किया था जिसके बाद भागने के चक्कर में गाड़ियां किसानों को रौंदती चली गईं थीं.

लेकिन एसआईटी की जांच के दौरान कम से कम 71 किसानों ने मजिस्ट्रेट के सामने दिए. अपने बयान में किसानों ने मोनू को मौका ए वारदात पर देखने, किसानों को गाड़ी से कुचले और उसके गोली चलाने की बात कही थी.

इसके बाद जब हिरासत में लेकर आशीष मिश्रा से पूछताछ हुई थी तो वो भी बार-बार मौके पर नहीं होने की बात कर रहा था. लेकिन वो दोपहर में ढाई बजे से साढ़े 3 बजे तक वो कहां था, इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दे सका. अब पुलिस उसी 1 घंटे की गहराई से तफ्तीश में जुट गई.

4- मोबाइल के BTS ने ऐसे खोल दी पोल : आशीष मिश्रा बार-बार ये बताने की कोशिश कर रहा था कि वो मौका-ए-वारदात से दूर वारदात के वक़्त अपने गांव में दंगलवाली जगह पर ही था. ऐसे में साइंटिफिक इनवेस्टिगेशन में लगी पुलिस के लिए मोनू के मोबाइल फ़ोंस की लोकेशन का पता लगाना सबसे ज़्यादा ज़रूरी था.

पुलिस ने मोबाइल फ़ोन की लोकेशन का पता भी लगाया. लेकिन दिक्कत ये थी कि वारदात वाली जगह और गांव में दंगलवाली जगह, दोनों जगहों को आस-पास लगे दो मोबाइल टावर कवर करते थे. ऐसे में सिर्फ़ लोकेशन से ये साबित करना मुश्किल था कि मोनू सच बोल रहा है या झूठ? लेकिन जब पुलिस ने गहराई में उतर कर मोबाइल के बीटीएस यानी बेस ट्रांससिवर स्टेशन की डिटेल निकाली, तो पता चला कि मोनू के मोबाइल फ़ोन की लोकेशन उसके गांव के मुकाबले मौका ए वारदात के ज़्यादा क़रीब थी.

दरअसल, बीटीएस ऐसी टेक्निक है जिसमें पता चलता है कि मोबाइल टावर की फ्रीक्वेंसी कहां से किस तरफ जाते हुए घट या बढ़ रही है. इस तरह एक टावर से दूसरे टावर की तरफ जाते समय पहले टावर की फ्रीक्वेंसी घटती जाएगी और दूसरे टावर की फ्रीक्वेंसी बढ़ती जाएगी. आशीष मिश्रा के केस में भी यही हुआ.

जहां घटनास्थल था वहां के टावर की फ्रीक्वेंसी आशीष के मोबाइल फोन पर ज्यादा मिली थी. इसलिए ये साफ हो गया कि वो दंगल वाले आयोजनस्थल के बजाय जहां घटना हुई वहां पर मौजूद था. इसके अलावा, पुलिस ने मोनू के मोबाइल फ़ोन की लोकेशन तो पता की ही, उस रोज़ उसके अपने मोबाइल फ़ोन से किए गए इंटरनेट कॉलिंग का भी ब्यौरा निकाला और ये जानकारी भी मोनू के मौका ए वारदात पर होने की पुष्टि कर रही थी.

5- बैलिस्टिक रिपोर्ट से पकड़ा गया झूठ : मोनू कह रहा था वो ना तो मौके पर था, ना ही उसने गोली चलाई. उसने अपनी रिवाल्वर घर में होने और रायफल के प्रशासन के पास जमा होने की बात कही थी... मोनू ने ये भी कहा था कि उसके असलहों से एक साल में कोई गोली नहीं चली. लेकिन जांच में दोनों ही बातें झूठी पाई गईं. असलहों की बैलिस्टिक फॉरेंसिक रिपोर्ट सामने आई, तो पता चला कि दोनों ही असलहों से हाल ही में फायरिंग हुई थी.

इसी वजह से आशीष उर्फ़ मोनू के खिलाफ़ ना सिर्फ़ आईपीसी की धारा 302 और 307 के तहत क़त्ल, क़त्ल की कोशिश, 201 के तहत सबूत मिटाने, 35 के तहत एक राय होकर जुर्म करने बल्कि आर्म्स एक की धारा 3-25-30 के तहत लाइसेंसी हथियार के दुरुपयोग का केस भी दर्ज किया गया.

लखीमपुर हिंसा साजिश थी, मौके पर था मंत्री का बेटा, फायरिंग भी हुई; 5 हजार पन्नों की चार्जशीट में खुलासा

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