जासूस पुतिन का ऐसा था सियासी सफ़र जिसमें ड्रामा भी है, इमोशन भी है और एक्शन भी

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USSR के पतन के बाद हुआ पुतिन का उदय

Russian Ukraine War: बर्लिन की दीवार 13 अगस्त 1961 को बननी शुरू हुई थी, और यही वो दौर था जब USSR और अमेरिका के बीच शीतयुद्ध अपने चरम पर पहुँच रहा था। लेकिन 9 नवंबर 1989 के बाद के हफ्तों में इस दीवार को ढहा दिया गया था। और उसी बर्लिन की दीवार के गिरने के साथ ही USSR के पतन की शुरूआत हो गई थी।

मगर एक तरफ साम्यवाद की वो मज़बूत दीवार ढह रही थी लेकिन उसी समय उस ढहती हुई दीवार के साये में व्लादिमीर पुतिन का कद बढ़ना शुरू हो गया था। उस गिरती हुई दीवार ने पुतिन को सियासत में ऐसी उछाल दी कि KGB का एक सीक्रेट एजेंट देखते ही देखते रूस का राष्ट्रपति बन गया।

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क्या अजीब इत्तेफ़ाक है कि किसी ज़माने में KGB के लिए काम करते हुए पुतिन का काम ही था तमाम मुल्कों के मीडिया और उनकी सुर्खियों पर नज़र रखना। और आज वो वक़्त है जब वही पुतिन दुनिया भर के मीडिया में खुद एक सुर्खी बन चुका है।

KGB का कामयाब जासूस

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Russian Ukraine War : एक वक़्त था जब दुनिया में USSR की खुफ़िया एजेंसी KGB (कमितेत गुसुदारस्त्वेनी बेज़ोपास्नोस्ती) (Komitet Gosudarstvennoy Bezopasnosti) की साख़ बहुत ज़्यादा हुआ करती थी। दुनिया के तमाम मुल्क़ KGB और उसके जासूसों से थर्राते थे। उसी KGB में व्लादिमीर पुतिन मेजर के पद पर रह चुके हैं। और रूसी साम्यवाद की तरफ झुकाव रखने वाले पूर्वी जर्मनी में रूस के जासूस के तौर पर नियुक्त थे।

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पूर्वी जर्मनी में रहते हुए व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी देशों के भीतर कई अलग अलग ऑपरेशन किए। और उन्हीं ऑपरेशन के दौरान पुतिन को पश्चिम के ज़्यादातर देशों की अंदरूनी हालत का अंदाज़ा हो गया था। पुतिन को पता चल चुका था कि सियासत के साथ साथ उन देशों की फौजी ताक़त कैसी है।

सियासत के मंच के मंझे हुए कलाकार ऐसे बने

Russian Ukraine War: कहते हैं मेहनत से इकट्ठा की गई जानकारी कभी भी ज़ाया नहीं होती। ये बात व्लादिमीर पुतिन पर अच्छी तरह फिट बैठती है। तभी तो पुतिन ने रूस की मुख्य धारा की सियासत में आते ही सबसे पहला जो काम किया, उसकी ही बदौलत रूस को एक बार फिर दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त कहलाने का दावा करने वाले अमेरिका के सामने तनकर खड़ा हो गया है, वही हैसियत और वही रुआब।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन मार्शल आर्ट में तो माहिर हैं ही, सियासत के मंच पर भी बड़े ही मंझे हुए कलाकार हैं। और ये बात उन्होंने खुद साबित भी की है, क्योंकि जिस समय व्लादिमीर पुतिन रूस की सियासत में आए उस वक़्त तक रूस काफी कमज़ोर हो रहा था।

रूस को दिलाया पुराना रुआब

Russian Ukraine War: आंतरिक कलहों, सियासी उथल पुथल ने रूस को आर्थिक मोर्चे पर संघर्ष करने को मजबूर कर दिया था। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी उसकी हैसियत कम होने लगी थी। अपने आकार और अपने सैन्य भंडार की बदौलत रूस महाशक्ति तो कहलाता रहा, लेकिन कई मौकों पर उसे इस ख़िताब की लाज बचाना तो मुश्किल हो रहा था। कूटनीतिक तौर पर भी रूस को दुनिया के दूसरे देशों के सामने जूझना पड़ रहा था।

तब रूस के माचो मैन कहलाने वाले व्लादिमीर पुतिन ने रूस की सियासत में क़दम रखा। 1997 में रूस की मुख्यधारा की सियासत में शामिल होने के बाद व्लादिमीर पुतिन ने पूरी दुनिया के सामने रूस का नक्शा ही बदलकर रख दिया। 1999 में रूस के कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने के बाद से पुतिन ने फिर कभी पलट कर नहीं देखा। अपने दबंग फैसलों के साथ साथ दुनिया में अपनी दादागीरी दिखाने पर आमादा अमेरिका को सीधी चुनौती देने की हिम्मत व्लादिमीर पुतिन ने ही दिखाई, जिससे एक बार फिर रूस की हैसियत उसी शीतयुद्ध के दौर में जा पहुँचा।

अमेरिका और रूस के रिश्तों में गहरी खाई

Russian Ukraine War: बीते 70 सालों के दौरान पहले USSR और बाद में रूस के साथ अमेरिका के रिश्ते कभी दोस्ताना नहीं रहे, बल्कि दोनों ही अलग अलग पाले में खड़े एक दूसरे को चुनौती देते ही दिखे।साल 2014 में यूक्रेन में रूस की सैनिक दखलंदाजी को लेकर यूरोपीय संघ और अमेरिका ने रूस के कई अधिकारियों के साथ साथ कई रूसी कंपनियों पर पाबंदी लगा दी थी।

लेकिन कहा तो यहां तक जाता है कि कुछ साल पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की शह पाकर येवगेनी प्रिगोज़हिन ने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव डॉनल्ड ट्रम्प के हक़ में प्रभावित करने की कोशिश की थी, और कहा जाता है कि काफी हद तक कामयाब भी हो गए थे। अमेरिकी चुनाव के दौरान रूस की दखलंदाजी की खबरों को सोशल मीडिया में जमकर उछाला गया था, जिसका नतीजा ये हुआ कि अमेरिका के भीतर रूस के साथ हमदर्दी रखने वाले तमाम अफसरों पर पाबंदी लगा दी गई थी।

मगर रूस की रफ़्तार पर अमेरिका के साथ मिलकर भी पश्चिमी देश लगाम नहीं लगा सके। और व्लादिमीर पुतिन ने रूस को उस जगह पर पहुंचा दिया जहां उसे अमेरिकी सीधी चुनौती देने से मुंह छुपाता रहा। कहा तो यहां जा रहा है कि रूस और अमेरिका के संबंधों पर पड़ा ये पाला दरअसल दोनों मुल्कों के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई है।

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