इस गांव में आज भी पूजा जाता है श्मशान, वो कौन सी आत्मा है जो खुद की करवाती है पूजा, जानिए पूरी कहानी

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Horror Story: हवा जब चलती है तो केवल महसूस होती है, उसकी कोई ज़ुबान नहीं होती. हवा की खासियत ये है कि वो जब दिन के वक्त महसूस होती है तो अलग एहसास होता है, वहीं अगर रात के वक्त शरीर को छुए तो अलग एहसास होता है. ऐसी ही एक कहानी है राजस्थान के जैसलमेर की….

जैसलमेर (jaisalmer) से 6 किलोमीटर दूर बनी इस खूबसूरत छतरियों वाली एक जगह जिसे जमाना बड़ा बाग (bada bagh) के नाम से जानता है. जैसलमेर के राजपरिवार का खानदानी श्मशान है जिसका एक गौरवशाली इतिहास है. वैसा ही भव्य नजारा, शिल्प और वास्तुकला के ऐसे बेजोड़ नमूने जो गुज़र गए लोगों के शाही शानोशौकत और राजसी तेवरों को आज भी जिंदा रखे हुए हैं. राजगान भले ही खत्म हो गए हों लेकिन हुक्म उनके साथ आज भी चलते हैं और उनका हुक्म ये कहता है कि आज भी इस इलाके में अगर कोई शादी होती है, बच्चे होते हैं, खुशी का कोई भी मौका हो, सबसे पहला सलान उस श्मशान में जाकर ही किया जाता है. वहां के लोगों का कहना है कि पूर्णिमा के दिन शादी ब्याह के बाद पहली पूजा उसी श्मशान में की जाती है.

बड़ा बाग | जैसलमेर

जैसलमेर की कहानी: सदियों से ये परंपरा चली आ रही है, यहां कोई किसी को मजबूर नहीं करता था लेकिन लोग सुहागरात से पहले यहां आकर लोग पूजा करते हैं. लोग खुद यहां आकर अपनी खुशी से दुआएं मांगते थे. इलाके का कोई ऐसा नया जोड़ा नहीं था जो श्मशान की इन छतरियों का आशीर्वाद लेने ना आता हो. लेकिन ये कैसी रिवाज जहां हर अच्छे काम से पहले श्मशान जाना पड़ता है. क्या ये खौफ है किसी का ? मगर क्यों सदियों से ये परमपरा कायम है? वहां मौजूद बुजुर्ग ने बताया कि कई बार रात के वक्त श्मशान की छतरियों से हुक्का पीने की आवाज़े आती हैं, तंबाकू की महक भी आती है. इलाके के लोग बताते हैं कि शाम ढलने के बादये छतरियां अपनी पुरानी रंगत में लौट आती हैं. हंसने की आवाज़ें, घुंघरुओं की छन-छन. कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि गज़रे दौर की रानियां या राजकुमारियां भी यहां नज़र आती हैं. दिन के वक्त वहां कोई भी आ जा सकता है, लेकिन रात के वक्त वो जगह आम इंसान वहां नहीं जाता है.

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राजा-रानी की छतरियां | सोशल मीडिया

रात के वक्त कोई जा सकता है श्मशान?

श्मशान एक ऐसी जगह है जहां लोग मजबूरी में ही जाते हैं, लेकिन इस श्मशान को देखने के लिए दुनिया भर के लोग आते हैं. लेकिन शाम होने से पहले ही यहां से निकल जाते हैं. ऐसा नहीं है कि रात में सिर्फ वहां के लोगों ने ही आवाज़ें महसूस की हैं बल्कि देश के बाहर से आए पर्यटक ने भी बताया कि वो शाम ढलने के बाद यहां नहीं रुकेंगे क्योंकि उन्हें डर लगता है.

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कौन सी आत्मा है इस श्मशान में | सोशल मीडिया


क्यों बनवाई गई ये छतरियां?

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राजस्थान में राजा और उनकी रानियों की याद में छतरियां बनवाने की परंपरा सदियों पुरानी है और इन्हें बनवाने में कभी कमी नहीं छोड़ी गई. इस जैसलमेर के बड़ा गांव में 103 राजा रानियों की छतरियां बनी हुई हैं जिसके नीचे उनकी समाधि भी बनी हुई है. वहां के लोगों का कहना है कि इस राजघराने के श्मशान में दाह संस्कार होता है और उसी जगह छतरी भी बनाई जाती है. इन्हीं छतरियों में खेत्रपाल जी का मंदिर भी है जहां जिसे लोग लोक देवता का दर्जा देते हैं. कहते हैं कि खेत्रपाल जी इस जगह की सात योगनियों के भाई थे, और राजपरिवार के सभी दिवंगत सदस्य हर रात इसी मंदिर में आराधना करने आते हैं.

जैसरमेर की कहानी | सोशल मीडिया

रात में आती है घोड़े की चलने की आवाज़

सन्नाटे के समय इस छतरियों के पास के तालाब से एक घुड़सवार की आवाज़ आती है, घोड़े की वो टापें तालाब के इर्दगिर्द के इलाके में गूंजती रहती हैं. जैसे मानों कोई अपनी रिआसत का दौरा कर रहा हो. इन आवाजों के साथ लोगों के अंदर डर भी होगा लेकिन कभी इस बारे में कोई खुलकर बात नहीं करता, बस आवाज सुनाई देती हैं ये जरूर बताते हैं. 
 

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