हिंदुस्तान की सियासत में भूचाल लाने वाले पेगासस की ABCD! इसे पढ़ लिया तो सब समझ में आ जाएगा

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हिंदुस्तान की सियासत में भी भूचाल है, चीन, पाकिस्तान, रशिया या अमेरिका की वजह से नहीं बल्कि इसी एक जासूसी मोबाइल सॉफ्टवेयर पेगासस की वजह से। दुश्मन मुल्कों को तो छोड़िए, इसने विपक्षी पार्टियों के साथ साथ जजों, पत्रकारों और मानवाधिकार संस्थाओं तक की नींदे उड़ा रखी हैं। मौजूदा वक्त में दुनिया का सबसे खतरनाक, सबसे घातक, सबसे मारक हथियार है पेगासस, एक ऐसा सर्विलांस सॉफ्टवेयर जो आंखों से सुरमा चुरा ले तो भी, इंसान की तिजोरी में घुसकर उसके सारे खज़ाने उड़ा ले तो भी, बंद कमरे में भी दुश्मन के सारे राज़ निकाले तो भी, किसी को भनक तक नही लगती। इलजाम है कि भारत की मौजूदा सरकार इस इज़राइली जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल दुश्मन मुल्कों पर करने के बजाए, देश के लोगों पर ही कर रही है। इसमें विपक्षी पार्टी के नेताओं, पत्रकारों, जजों, वकीलों यहां तक की अपनी ही सरकार में मंत्रियों की जासूसी करा रही है।

हिंदुस्तान में विरोधियों और पत्रकारों की पेगासस के ज़रिए जासूसी कराने के मामले ने जैसे ही तूल पकड़ा, सरकार बैकफुट पर आ गई, मामला अदालत पहुंच गया, संसद में हंगामा मच गया। सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले में दिए गए एक नए हलफनामे में तकनीकी एक्सपर्ट्स के हवाले से दावा किया गया है कि फोन की फोरेंसिक जांच में कुछ के स्मार्टफोन में पेगासस की सेंध के सबूत मिले हैं। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अगुआई में साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट की एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने जनवरी में कुछ फोन की जांच कराई थी जिसमें कुछ फोन में घुसपैठ के सबूत मिले हैं। ख़बर के मुताबिक़ पेगासस सॉफ्टवेयर के ज़रिए जिन लोगों की जासूसी कराई गई उस लिस्ट में

  • कांग्रेस नेता राहुल गांधी,

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  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी

  • पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा

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  • चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर

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  • केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव

  • प्रह्लाद पटेल

  • का नाम शामिल है, ऐसा अंदेशा ज़ाहिर किया गया है कि पेगासस के ज़रिए इन लोगों के मोबाइल नंबर की भी जासूसी की गई। इसके अलावा कुछ मीडिया संस्थानों और मानवाधिकार संस्थाओं से जुड़े बड़े लोगों, कांग्रेस और दूसरी सियासी पार्टियों के नेताओं के नामों की भी आशंका है।

    भारत सरकार पर ये इल्ज़ाम है कि वो अपने विरोधियों की तो जासूसी करा ही रहे हैं, अपने मंत्रियों और अधिकारियों की भी जासूसी करा कर उन पर नकेल कसती है। विपक्षी पार्टी पिछले कुछ सालों में मोदी की सियासी जीत को भी पेगासस से जोड़ रहे हैं। क्योंकि मौजूदा वक्त में इंसान अपने डेटा का गुलाम है, और उसके तमाम डेटा, तमाम जानकारी उसके मोबाइल में कैद है। और ये जंग ही डेटा की है, लड़ाई इंफॉर्मेशन की है। और एक बार आपके मोबाइल में ये जासूसी सॉफ्टवेयर घुस गया तो बिना ज़ुबान से बोले जंग जीत ली जाती है, विरोधी खुद ब खुद हार जाता है।

    अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जुलाई 2017 में इजराइल दौरे के दौरान भारत-इजराइल के बीच करीब 15 हजार करोड़ रुपए की डिफेंस डील हुई। इस डील में पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर भी शामिल था। ये एक गिव एंड टेक डील थी, जिसके तहत पेगासस के बदले में भारत ने जून 2019 में संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के पक्ष में और फिलीस्तीन के खिलाफ वोट दिया था। ये पहली बार था जब भारत ने इजराइल-फिलीस्तीन विवाद में किसी एक के पक्ष में वोट दिया था। भारत में पहली बार 2019 में ही पेगासस के जरिए कई चर्चित लोगों की जासूसी का मुद्दा उठा, हालांकि भारत और इजराइल दोनों सरकारें इससे इनकार करती रही हैं। न तो कभी भारत और न ही इजराइल ने ये बात मानी है कि उन्होंने पेगासस को लेकर डील की थी।

    कहते हैं अकेला भारत ही पेगासस का खरीदार नहीं हैं, बल्कि इज़राइल से ये डील करने वालों में कई और बड़े बड़े देशों के नाम भी हैं। मसलन,

    • अमेरिका

    • सऊदी अरब

    • यूएई

    • आर्मेनिया

    • अज़रबैजान

    • बहरीन

    • फिनलैंड

    • हंगरी

    • जॉर्डन

    • कज़ाख़िस्तान

    • मैक्सिको

    • पौलैंड

    • युगांडा

    अमेरिकी अखबार का दावा है कि साल भर की लंबी जांच के बाद ये खुलासा हुआ है कि भारत के अलावा अमेरिकी जांच एजेंसी FBI ने भी ये सॉफ्टवेयर खरीदा था। FBI ने घरेलू निगरानी के लिए सालों तक इसकी टेस्टिंग भी की, लेकिन पिछले साल इसका इस्तेमाल नहीं करने का फैसला किया। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे दुनियाभर में इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया। मेक्सिको की सरकार ने पत्रकारों और विरोधियों के खिलाफ, तो सऊदी ने शाही परिवार के आलोचक रहे पत्रकार जमाल खशोगी और उनके सहयोगियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया। इजराइली रक्षा मंत्रालय ने पोलैंड, हंगरी और भारत जैसे कई देशों में पेगासस के इस्तेमाल की मंजूरी दी थी।

    रिपोर्ट्स के मुताबिक इज़राइली साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ग्रुप टेक्नॉलॉजीज़ ने अपने इस पेगासस जासूसी स्पाइवेयर को दुनिया भर की कई सरकारों को चोरी छुपे भी बेचा है।

    कई स्मार्टफोन में सेंध लगाने में सक्षम पेगासस के एक सिंगल लाइसेंस की कीमत 70 लाख रुपए तक है। NSO अपने कस्टमर्स से पेगासस के जरिए 10 डिवाइस में सेंध लगाने के लिए करीब 5-9 करोड़ रुपए चार्ज वसूलता है और साथ ही इसके इंस्टॉलेशन के लिए करीब 4-5 करोड़ रुपए चार्ज करता है।

    इस मामले की और तह तक जाने से पहले ये समझ लेना ज़रूरी है कि आखिर ये पेगासस सॉफ्टवेयर बला क्या है? और काम कैसे करता है। आज हम जो भी फोन इस्तेमाल करते हैं वो दो प्लेटफॉर्म यानी एंड्रॉयड या आईओएस पर होता है, पेगासस इन्हीं की कमियों या बग को निशाना बनाता है। यानी अगर आपका फोन लेटेस्ट सिक्योरिटी से लैस हो, तब भी पेगासस उसमें सेंध लगा सकता है। इसके लिए ये भी ज़रूरी नहीं है कि जासूसी कराने वाला, उस इंसान के नज़दीक हो जिसके फोन की जासूसी की जानी है। पेगासस को किसी भी फोन या किसी दूसरी डिवाइस में दूर बैठकर भी इंस्टॉल किया जा सकता है।

    • ये एक ऐसा प्रोग्राम है जो SMS पर भेजे लिंक पर क्लिक करते ही इंस्टाल और एक्टीवेट हो जाता है

    • फोन के माइक्रोफ़ोन, कैमरा, ऑडियो, टेक्सट मेसेज, ईमेल और लोकेशन तक की जानकारी हासिल हो जाती है

    • पेगासस जासूसी कराने वाले को एन्क्रिप्टेड ऑडियो सुनने और एन्क्रिप्टेड मैसेजेस को पढ़ने लायक बना देता है

    • हैकर बिना शक पैदा हुए अपने टारगेट के कॉन्टेक्ट लिस्ट से लेकर उसकी कॉल तक को आसानी से सुन सकता है

    • पेगासस के इस्तेमाल से हैक करने वाले को उस व्यक्ति के फ़ोन से जुड़ी सारी जानकारियां मिल सकती हैं

    • अपग्रेडेड वर्जन से पेगासस 'जीरो क्लिक' साफ्टवेयर बन गया, यानी इसके लिए लिंक की भी जरूरत नहीं पड़ती।

    • कई बार ये एक वॉट्सऐप मिस्ड कॉल के जरिए भी आपकी डिवाइस में एंट्री कर सकता है

    • पेगासस ने दुनिया भर में करीब 1400 एंड्रॉयड और आईफोन को वॉट्सऐप के जरिए निशाना बनाया।

    कम लफ्ज़ों में कहें तो ये सॉफ्टवेटर आपके ना चाहते हुए भी मोबाइल में घुस जाएगा और आपकी बातें, आपके राज़, जीपीएस के जरिए आपकी लोकेशन, आपके पासवर्ड, आपसे जुड़ी सभी जानकारी, यहां तक की ये आपके कैमरे के जरिए चुपके से आपकी वीडियो भी बना सकता है। कुल मिलाकर ये 24 घंटे आपकी निगरानी करने लगता है। और तमाम जानकारी इज़राइल की सुरक्षा कंपनी NSO के पास पहुंच जाती है, और जो इसे खरीदेगा वो जानकारियों NSO से होते हुए चंद मिनटों में उसके पास होगी। दुश्मन हो या विरोधी उसकी हर चाल, हर रणनीति, हर कदम पर निगरानी होगी, उसकी जासूसी होगी।

    अब तीर तलवारों, गोला बारूदों और मारक मिसाइलों से जंग की बातें पुरानी हो चुकी हैं, अब जंग डेटा और इंफॉर्मेशन की है। और इस जंग को दुनिया के कई देश अपने विरोधियों और अपने दुश्मनों को हराने के लिए पेगासस जासूसी सॉफ्टेवर की मदद से लड़ रहे हैं। आपको बता दें कि एक दशक की शातिराना मेहनत के बाद इजराइली कंपनी NSO ने ये जासूसी का नया हथियार तैयार किया है, जो अब दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है, हां मगर इसे बनाने वाला ग्रुप हजारों करोड़ का मालिक बन गया है। न सिर्फ भारत बल्कि पिछले एक दशक के दौरान दुनिया के 40 देशों को ये सॉफ्टवेयर बेचा गया है। इसमें शक़ नहीं है कि इंसानी तरीकों से जासूसी के मामले में इज़राइल का कोई तोड़ नहीं, मगर अब तो तकनीकि तरीकों से भी इस छोटे से मुल्क ने दुनिया को परेशानी में डाल दिया है। हालांकि इज़राइली कंपनी का दावा है कि उसने ये सॉफ्टवेयर इंसानियत की बेहतरी के लिए बनाया है ताकि इसकी मदद से अपराधियों और आतंकवादियों को पकड़ा जा सके। मगर महज कुछ ही साल में दुनिया भर की सरकारों ने इसका इस्तेमाल टारगेटेड लोगों की जासूसी में जमकर किया है।

    दुनिया के लिए मुसीबत बन चुके इस जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस को इजराइल की साइबर फर्म NSO ग्रुप टेक्नोलॉजीज ने डेवलप किया है, जिसे तीन लोगों नीव कर्मी, शैलेव हुलियो और ओमरी लवी ने बनाया था। कंपनी का नाम NSO भी इन्हीं तीनों के नाम के पहले अक्षर को मिलाकर रखा गया है। मगर सवाल ये कि ये बेलगाम हथियार बनाया ही क्यों गया? तो इसकी कहानी भी दिलचस्प है, पेगासस को असल में शुरुआत में एक वीडियो मार्केटिंग प्रोडक्ट के तौर पर बनाया गया था, लेकिन 2008 की आर्थिक मंदी की वजह से वो फ्लॉप हो गया। इसलिए बाद में कंपनी ने सेलफोन टेक-सपोर्ट के नाम पर डिवाइस को कंट्रोल करने वाली डिवासी के तौर पर डेवलेप कर लिया। बाद में इसे खुफिया सेवाओं के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा, मगर इस सॉफ्टेयर को पहचान तब मिली जब इज़राइली सरकार ने इस सॉफ्टवेयर के लिए कंपनी से हाथ मिलाया, और धीरे धीरे ये जासूसी का दुनियाभर में सबसे खतरनाक हथियार बन गया। आज आलम ये है कि खुलेआम तो नहीं मगर चोरी छुपे दुनिया का हर देश हर एजेंसी इसे खरीदना चाहती है। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में पेगासस को बनाने वाली कंपनी NSO ग्रुप की कमाई तेजी से बढ़ रही है,

    2011 में 15 मिलियन डॉलर यानी 112 करोड़ रुपए, 2012 में 30 मिलियन डॉलर यानी 224 करोड़ रुपए, 2013 में इस कंपनी की कमाई 40 मिलियन डॉलर यानी 300 करोड़ रुपए थी, जो महज दो सालों में ही बढ़कर 150 मिलियन डॉलर यानी 1120 करोड़ रुपए हो गई। जून 2014 में NSO में अमेरिकी इंवेस्टमेंट फर्म फ्रांसिस्को पार्टनर्स ने 70 पर्सेंट शेयर 130 मिलियन डॉलर में खरीदे थे। फोर्ब्स के मुताबिक, जुलाई 2021 में NSO की मार्केट वैल्यू 1 अरब डॉलर यानी करीब 7500 करोड़ रुपये आंकी गई थी।

    ज़ाहिर है पूरी दुनिया की नज़र पेगासस बनाने वाली कंपनी NSO पर है, जासूसी के खतरे को देखते हुए दुनिया के कई देशों ने इसे ब्लैक लिस्ट भी कर रखा है जिसमें अमेरिका भी शामिल है। हालांकि कंपनी का कहना है कि उसे बदनाम करने की कोशिश की जा रही है जबकि उनका ये स्पाईवेयर सैन्य स्तर का हथियार है और इसका इस्तेमाल गलत कामों के लिए नहीं किया गया है। ज़ाहिर है हलवाई कभी अपनी मिठाई को खराब नहीं कहता है, लेकिन ये समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं है कि जासूसी लफ्ज़ ही अपने आप में एक जुर्म है। और जुर्म को जस्टीफाई नहीं किया जा सकता।

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