मुशर्रफ़ ने अपने गैंग्स ऑफ़ फोर के साथ 1984 के प्लान पर लड़ा था कारगिल का युद्ध, इसलिए मिली हार

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Kargil war and Parvez Musharraf: 26 जुलाई। ये तारीख भारत के लिहाज से बेहद अहम है क्योंकि यही वो दिन है जब कारगिल की जंग पाकिस्तान की सेना को धूल चटाने के बाद विजय दिवस मनाया। उसके बाद तो जैसे ये परिपाटी ही बन गई कि 26 जुलाई को हर साल भारत विजय दिवस मनाता है।

लेकिन यहां एक सवाल तो ज़रूर खड़ा हो जाता है कि आखिर कारगिल का युद्ध भारत पर किसने और क्यों थोपा था। हर साल इस सवाल को लेकर सैकड़ों कहानियां सुनाई जाती हैं। लेकिन आज हम इस कारगिल युद्ध के उस मुजरिम और उनके चार यार का क़िस्सा सुनाएंगे जिनकी दिमाग में पकी खिचड़ी की बदौलत भारत को इस जंग से जूझना पड़ा और अपने साढ़े चार सौ से ज़्यादा वीर जवानों को गंवाना पड़ा।

भारत अगर 26 जुलाई को अपना विजय दिवस के रूप में मनाता है तो वहीं पाकिस्तान में इसे एक तरह से काला दिवस के तौर पर देखा जाता है। बल्कि पाकिस्तान में आम लोगों के बीच इस बात की चर्चा अब आम हो गई है कि पाकिस्तान का सिर नीचा करने के लिए परवेज मुशर्रफ और उनका गैंग्स ऑफ फोर ही असली कुसूरवार है। पाकिस्तान में कहा जाता है कि गैंग्स ऑफ फोर और उसके सरगना परवेज मुशर्रफ की एक गलती ने पाकिस्तान को सदियों पीछे धकेल दिया।

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असल में पाकिस्तान में गैंग्स ऑफ फोर उन चार जनरलों के लिए किया जाता है जो उस वक़्त पाकिस्तान के तानाशाह परवेज मुशर्रफ के मुंह लगे जनरल थे। और उन्हीं जनरलों के साथ मिलकर परवेज मुशर्रफ ने कारगिल की साज़िश रची थी। मगर ये परवेज मुशर्रफ की इतनी बड़ी ग़लती थी कि पाकिस्तान की सेना को अपने क़रीब डेढ़ हज़ार सैनिकों को गंवाना पड़ा था।

Kargil war and Parvez Musharraf: साल 1999 में जिस वक़्त भारत मई महीने की लू के थपेड़ों से जूझ रहा था। कारगिल की सर्द पहाड़ियों पर पाकिस्तान की सेना की शह पर आतंकियों की टोली अपने लिए ठिकाना बनाने में लगी हुईथी...और धीरे धीरे कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान की सेना और उसकी शह पा चुके आतंकियों ने एक तरह से क़ब्जा ही करके वहां बंकर तक बना लिए थे।

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एक गरड़िये से मिली खबर और भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम के साथ हुई दुर्दशा ने भारतीय सेना और सेना के आला अफसरों को एकदम से अलर्ट मोड पर लाकर खड़ा कर दिया। देखते ही देखते मई के महीने में ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान के ख़िलाफ ऑपरेशन विजय की शुरूआत कर दी। कारगिल और उसके आसपास घुसकर बैठ गए पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार मारकर खदेड़ना शुरू कर दिया।

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Kargil war and Parvez Musharraf: क़रीब 70 दिन लड़ाई लड़ने के बाद पाकिस्तान की सेना ने घुटने टेक दिए और भारत ने पाकिस्तान के कब्ज़े में गई कारगिल तोलोलिंग, टाइगर हिल और मश्कोह घाटी की तमाम दुर्गम पहाड़ियों को फिर अपने कब्ज़े में कर लिया और 26 जनवरी को ये युद्ध अपनी जीत के साथ खत्म करने का ऐलान किया। इस जंग में मिली हार ने पाकिस्तान को क़रीब क़रीब कंगाली की कगार पर ला खड़ा किया।

कारगिल युद्ध के समय परवेज मुशर्रफ ही पाकिस्तान की सेना के चीफ थे। जबकि उनके सबसे अज़ीज जनरल अजीज खान उन दिनों चीफ ऑफ जनरल स्टाफ हुआ करते थे। जनरल अजीज पाकिस्तान की बदनाम एजेंसी ISI में भी रह चुके थे। इसके अलावा नॉर्दर्न कमांड जनरल एहसान उल हक़ के हाथों में थी। और जनरल महमूद अहमद और शाहिद अजीज भी परवेज मुशर्रफ के इशारों पर कुछ भी करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।

पाकिस्तान के अखबारों में छपी कुछ खबरों के मुताबिक असल में जनरल परवेज मुशर्रफ ने साल 1984 की अपनी पुरानी खुन्नस की वजह से भारत के ख़िलाफ ये साज़िश रची थी।

Kargil war and Parvez Musharraf: पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार नजम सेठी की लिखी एक किताब के मुताबिक 1984 में जब पाकिस्तान में जिया उल हक़ की हुकूमत थी तो भारतीय सेना ने सियाचिन की पहाड़ियों पर अपना तिरंगा फहरा दिया था। और जिया उल हक़ इस बात को खून का घूंट पीकर रह गए लेकिन अपने देश के लोगों के सामने कुछ भी ज़ाहिर नहीं होने दिया। जिया उल हक़ को लगता था कि कहीं इससे देश में गुस्सा न फूट जाए।

पाकिस्तान के पत्रकार नजम सेठी के मुताबिक उस वक़्त के पाकिस्तान के DGMO ने जिया उल हक के सामने एक प्लान रखा। DGMO ने समझाया था कि जिस तरह से भारत ने सियाचिन पर अपना कब्ज़ा कर लिया है पाकिस्तान की सेना भी सर्दियों के समय उन्हीं पहाड़ियों पर जाकर फिर से कब्ज़ा कर सकती है। इस पर जिया उल हक़ ने कहा कि क्या ऐसे में भारत कोई प्रतिक्रिया नहीं करेगा। तो DGMO ने कहा कि प्लान के मुताबिक पाकिस्तान की सेना ऐसा करेगी तो कश्मीर के बॉर्डर पर फायरिंग तेज़ हो जाएगी और मुजाहिदिनों को कश्मीर भेज दिया जाएगा जिससे भारतीय सेना उलझ कर रह जाएगी।

Kargil war and Parvez Musharraf: लेकिन शायद जनरल जिया उल हक़ तब तक भारत की ताक़त का अंदाज़ा लगा चुके थे...लिहाजा उन्होंने इस प्लान को ठुकरा दिया। इस बात की कसक जनरल परवेज मुशर्रफ के दिल में किसी फांस की तरह चुभी रही।

1998 को जब भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और अटल बिहार वाजपेयी बस सेवा शुरू करने वाले थे तो ये बात भी परवेज मुशर्रफ को मंजूर नहीं थी। लिहाजा तब परवेज मुशर्रफ और उनके गैंग्स ऑफ फोर ने उसी प्लान को थोड़ा रद्दोबदल करके अमली जामा पहनाने की साज़िश रच डाली।

पाकिस्तान के पत्रकार के मुताबिक अक्टूबर 1998 को परवेज मुशर्रफ ने इस प्लान को मंजूरी दे दी। जनवरी 1999 को पाकिस्तान की सेना के 200 सैनिकों को बाकायदा ट्रेनिंग देकर ऊपर पहाड़ियों पर भेजने का ऑर्डर निकल गया।

Kargil war and Parvez Musharraf: टारगेट सेट कर दिए गए थे कि भारतीय सेना की कम से कम दस ऊंची पोस्ट पर पाकिस्तानी सैनिक कब्ज़ा कर लेंगे। पाकिस्तानी सैनिक जब अपनी पूरी तैयारी के साथ वहां पहुँचे तो उन्हें पूरा इलाक़ा ही ख़ाली मिल गया। लिहाजा पाकिस्तान की सेना ने और लोगों भी भेज दिया।

जनवरी से लेकर मई तक भारत को पता ही नहीं चला कि पाकिस्तान के घुसपैठियों ने कारगिल के इलाक़े में ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया है। लेकिन मई में जब इस खबर का खुलासा हुआ तो भारत ने पूरी तैयारी के साथ हमला कर दिया। और क़रीब क़रीब एक एक घुसपैठिये को खदेड़ खद़ेड़ कर मारा।

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