The Kashmir Files: फ़ारूक अब्दुल्ला ने आखिर क्यों कहा कि मुझे फांसी पर लटका दो!

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फारुक अब्दुल्ला की सरकार से सवाल

IMPACT KASHMIR FILE: कश्मीर फ़ाइल्स फिल्म में एक किरदार है जो फारुक अब्दुल्ला जैसा लगता है और कश्मीर में जो कुछ भी हुआ, उसके लिए कई लोगों ने फारुक अब्दुल्ला की उस सरकार को असली कुसूरवार भी कहा है। कश्मीरी पंडित उस वक़्त के मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला को ही अपराधी के तौर पर भी देखने लगे हैं।

कश्मीर फ़ाइल्स फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद से ही कश्मीर के काले अतीत से जुड़े किरदार एक के बाद एक आम लोगों के साथ साथ मीडिया के सवालों के निशाने पर आते जा रहे हैं। जो जैसे जिस हाल में इन सवालों के सामने पड़ता तो खीज और कुंठा उसके गले पड़ जाती हैं। और बौखलाकर वो इनसे किसी तरह से पीछा छुड़ाने की गरज से उल्टे सीधे जवाब देकर वहां से पहली फुर्सत में निकल भागने की तैयारी में लग जाता है।

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ऐसा ही सबसे ताज़ा मामला सामने आया है जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके फारुक अब्दुल्ला का। जिन्होंने कश्मीर फ़ाइल्स फिल्म के बाद जैसे ही सवालों से घिरे तो खुद को फांसी पर चढ़ाने की वकालत करते करते खुद को सवालों के चंगुल से निकालने की कोशिश शुरू कर दी।

कश्मीर से पलायन के लिए असली कसूरवार कौन?

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Kashmir Files: उन सभी का मानना है कि कश्मीर घाटी से अल्पसंख्यक समुदाय के सामूहिक पलायन और घाटी में आतंकवाद की शुरुआत से पहले की तमाम घटनाओं के लिए अगर वास्तव में कोई ज़िम्मेदार है तो वो हैं फारुक अब्दुल्ला।

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फारुक अब्दुल्ला 7 नवंबर 1986 से लेकर 18 जनवरी 1990 तक मुख्यमंत्री थे। ये वही दौर थता जब कश्मीर घाटी तेज़ी से आतंकियों के चंगुल में फंसती चली जा रही थी और तमाम चेतावनियों के बावजूद आतंकियों को रोकने की कोई भी ऐसी कोशिश नहीं हो जिससे वहां के आम लोगों को राहत मिल सके।

उपद्रवियों को रोकने में नाकाम थी सरकार

The Kashmir Files: ये बात तो अब दस्तावेज़ों में भी दर्ज ह कि फरवरी 1986 में दक्षिण कश्मीर के इलाकों में बहुत बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हमले हुए थे। आलम ये था कि कट्टरपंथियों और आतंकियों की भीड़ ने कश्मीरी पंडितो की ज़मीन जायदाद और यहां तक कि मंदिरों तक में लूट पाट की थी। ये वही दौर था जब फारुक अब्दुल्ला के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह मुख्यमंत्री थे।

ऐसे में सरकार आतंकियों और उपद्रवियों को रोकने में नाकाम रही और हालात पर काबू पाने के लिए सेना को बुलाना पड़ा।

कश्मीर फ़ाइल्स में इन सारी बातों को सिम्बॉलिक तरीक़े से दिखाया गया है, बस तभी से ये बातें फारुक अब्दुल्ला का पीछा नहीं छोड़ रही। इसी बीच इंडिया टुडे के एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा के साथ बातचीत में फारुक अब्दुल्लान ने कहा कि 90 में जो कुछ भी हुआ वो एक बड़ी साज़िश का हिस्सा था। ये साज़िश किसने रची, इसका पता लगाने के लिए एक कमीशन होना चाहिए, जो ये पता लगा सकता है कि असल में इस साज़िश में कौन कौन शामिल था।

कमीशन बने जो सच का पता लगाए


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लेकिन फारूक अब्दुल्ला ने ये बात साफ साफ कही कि अगर जांच में उनके खिलाफ़ दोष निकलता है तो वो फांसी पर चढ़ने को तैयार हैं। फारुक अब्दुल्ला ने बाक़ायदा नाम लेते हुए पूछा कि उस वक़्त के रॉ प्रमुख ए एस दुल्लत, उस वक़्त के चीफ़ सेक्रेटरी मोहसर रजा और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान से पूछा जाना चाहिए कि आखिर कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए कौन ज़िम्मेदार है। अगर इनमें से कोई भी कहे कि फारूक अब्दुल्ला ज़िम्मेदार हैं तो मुझे जहां चाहे वहां फांसी पर लटका दिया जाए।

फारुक अब्दुल्ला ने ज़ोर देते हुए कहा कि सबसे पहले कमीशन बनाना चाहिए जो ये देखे कि कौन सही है और कौन ग़लत। वो इस सच का पता लगाए कि किसने चित्तीसिंह पुरा किया, जहां सिखों का क़त्लेआम किया, वो कमीशन ये भी पता लगाए कि कुपवाड़ा में किन लोगों ने हमारी बहनों के साथ रेप किया। वो कौन लोग थे जिन्होंने मस्जिद से निकल रहे लोगों पर गोलियां चलाईं।


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: फारुक अब्दुल्ला ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार दिल जोड़ने की कोशिश करे, और ये काम फौज के ज़रिए नहीं किया जा सकता है। जब फारुक अब्दुल्ला से पूछा गया कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि कश्मीरी लोगों का दिल जीता जा सके।

फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीर देश का ताज है लिहाजा इसे चमकाया जाना चाहिए, इसे फिर से राज्य का दर्जा दिया जाए, इसका परिसीमन हो और यहां इमानदारी से चुनाव करवाए जाएं। चुनाव से जुड़ी तमाम धंधलियां बंद करनी होगी। माहौल बनाना होगा तभी कश्मीर में हालात सुधर सकेंगे।

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