लैंडलाइन नंबर ने 15 साल बाद पुलिस को पहुँचा दिया क़ातिल तक, पकड़े जाने पर खुद हैरान हुआ

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Shams ki Zubani: कहते हैं न कि क़ानून के हाथ बड़े भी होते हैं और ताक़तवर भी, वो मुजरिम को पाताल से भी ढूंढ़कर निकाल लाते हैं और इंसाफ की देवी के सामने क़ानून के कठघरे में खड़ा कर ही देते हैं।

वो तारीख थी 23 अक्टूबर 2018 की। आधी रात से पहले यानी रात के क़रीब पौने 12 बजे पुलिस की एक टीम बेंगलुरू में ओरेकल कस्टमर केयर के दफ़्तर पहुँचती है। एक चपरासी दफ़्तर में काम करने वाले एक शख्स के पास जाकर उसे इत्तेला देता है कि दो लोग उससे मिलना चाहते हैं। वो शख्स दफ़्तर के मीटिंग रूम में पहुँचता है जहां आगंतुक उसका इंतजार कर रहे थे। वहां पहुँचने के बाद वो शख्स उससे मिलने आए मेहमानों को पहचानने से इनकार करता है।

इससे पहले वो शख्स वहां से वापस जाने के लिए मुड़े उससे पहले ही उससे मिलने पहुंचे दोनों मेहमानों में से एक उसकी तरफ हाथ आगे बढ़ाते हुए उस शख्स को तरुण के नाम से पुकारता है। मेहमान के मुंह से तरुण नाम सुनते ही उस शख्स के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती हैं। क्योंकि ये नाम उस शख्स ने पूरे 15 सालों के बाद सुना था। क्योंकि इन 15 सालों तक उस शख्स ने अपना नाम सिर्फ प्रवीन भटेले के तौर पर ही सुना था।

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इस दौरान उसकी पत्नी उसके बच्चे और उसके दफ़्तर के उसके साथी सभी उसे इसी नाम से ही पहचानते थे। लिहाजा तरुण नाम सुनते ही प्रवीन भटेले नाम का वो शख्स बुरी तरह से चकरा जाता है। और इसी बेखयाली में प्रवीन भी अपना हाथ उस मेहमान के हाथों में दे देता है। दोनों के हाथ मिलते हैं। हाथ मिलते ही मेहमान उसके हाथों को टटोलने लगता है, मानों वो कुछ ढूंढ़ रहा हो। थोड़ी देर में वो मेहमान रिंग फिंगर को थाम लेता है। क्योंकि रिंग फिंगर टूटी हुई थी।

टूटी हुई उंगली को पाकर मेहमान के चेहरे पर एक कामयाबी की मुस्कान तैर जाती है क्योंकि वो समझ जाता है कि उसकी तलाश पूरी हुई...ये प्रवीन ही दरअसल तरुण है जिसकी रिंग फिंगर टूटी हुई थी। उस टूटी हुई उंगली को पकड़ने के बाद वो मेहमान प्रवीन से अगले शब्द कहता है जिसे सुनकर वो शख्स क़रीब क़रीब बेहोश सा हो जाता है। वो मेहमान कहता है चलिए तरुण साहब अब आपका खेल खत्म हो गया।

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Shams ki Zubani: इसके बाद वो दोनों मेहमान प्रवीन उर्फ तरुण को लेकर उस कस्टमर केयर की बिल्डिंग से नीचे उतर आते हैं। बिल्डिंग के नीचे बेंगलुरू पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी, उस पर तीनों सवार होते हैं, और गाड़ी अपने सफर की तरफ रवाना हो जाती है। क़रीब 1500 किमी का सफर तय करके वो गाड़ी अगले रोज यानी 24 अक्टूबर को अहमदाबाद पहुँच जाते हैं।

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सवाल उठता है कि आखिर कॉल सेंटर में काम करने वाले एक शख्स को दो पुलिसवाले क्यों वहां से उठाकर अहमदाबाद लेकर पहुँचते हैं। उसने ऐसा कौन सा गुनाह किया था जिसकी वजह से पुलिस उन्हें तलाशती हुई बेंगलुरू के उस दफ्तर तक पहुँचती है। उस शख्स को उस नाम से पुकारती है जिसे उसने खुद 15 साल बाद सुना और उस शख्स को पकड़ने के बाद उन दोनों पुलिसवालों में से एक वॉट्सएप पर एक मैसेज भी भेजकर अपने अफसर को इत्तेला देता है ‘गॉट इट’। आखिर इन सारी बातों के पीछे असली कहानी क्या है?

तो क़िस्सा कुछ यूं है कि जिस शख्स को पुलिसवालों न बेंगलुरू के कस्टमरकेयर के दफ्तर से पकड़ा था वो कोई और नहीं बल्कि तरुण जिनराज था। और उस तरुण पर 2003 में अपनी पत्नी सजनी की हत्या का इल्ज़ाम था।

Shams ki Zubani: साल 2003 का वो वेलेंटाइन का दिन था। यानी 14 फरवरी। अहमदाबाद में एक पति पत्नी रहते थे। पति था तरुण जिनराज और उसकी पत्नी सजनी। दोनों की शादी तीन महीने पहले यानी दिसंबर 2002 में हई थी। सजनी अहमदाबाद में एक बैंक में अधिकारी थी जबकि तरुण एक स्कूल में फिजिकल ट्रेनर था। और वॉलीबाल का कोच भी। ये शादी दोनों के घरवालों की मर्जी से हुई थी। और दोनों ही मूल रूप से केरल के रहने वाले थे। शादी के बाद दोनों पति पत्नी एक अपार्टमेंट में रहने लगते हैं।

शुरू शुरू में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। तरुण को अक्सर स्कूल के बच्चों के साथ खेल प्रतियोगिता के सिलसिले में शहर से बाहर जाना पड़ता था लिहाजा एहतियात के तौर पर तरुण ने सजनी से कह रखा था कि जब भी वो शहर में न रहे तो वो अपने मायके में जाकर रुक जाया करे, जिससे लूटेरे और बदमाशों से बची रहे। सजनी का परिवार भी वहीं अहमदाबाद में रहता था, लिहाजा अपने पति की बात को मानकर सजनी अक्सर अपने मायके चली जाया करती थी। सजनी आखिरी बार 5 फरवरी 2003 को अपने मायके गई थी।

हालांकि इस बार जब वो मायके से लौट रही थी तो सजनी ने अपने पिता से गाड़ी में पेट्रोल भराने के पैसे मांगे, जिसे सुनकर सजनी के पिता का माथा ठनका। उन्होंने सजनी से पूछना चाहा तो वो बात को टाल गई।

14 फरवरी 2003 को शाम क़रीब साढ़े चार बजे सजनी ने अपनी बड़ी बहन से बात की थी। लेकिन इस बातचीत के करीब दो घंटे के बाद अचानक तरुण का फोन सजनी के घर पर पहुँचता है और वो घर के लोगों से अस्पताल पहुँचने को कहता है, साथ ही ये बताता है कि सजनी की हालत गंभीर है। घरवालों भागते हुए अस्पताल पहुँचते हैं। लेकिन उनके अस्पताल पहुँचने से पहले ही सजनी चल बसती है। और तरुण बेतहाशा रो रहा था। इसी बीच अस्पताल पुलिस पहुँचती है।

Shams ki Zubani: और शुरुआती छानबीन में पुलिस को पता चलता है कि सजनी की दुपट्टे से गला घोंटकर हत्या की गई थी। पुलिस घर की तलाशी लेती है तो वहां घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था। सामान में से जेवर गायब मिलते हैं। पुलिस इसे शुरूआती तौर पर लूटपाट के इरादे से की गई हत्या का मामला मान लेती है। तरुण भी पुलिस को यही गवाही देता है कि घर के आस पास चोर लुटेरों का ठिकाना है इसीलिए उसने सजनी को एहतियात बरतने की सलाह दे रखी थी। सजनी के घरवाले भी तरुण से हमदर्दी दिखाते हैं और उसे धीरज बंधाते हैं।

यहां चौंकाने वाली बात ये होती है कि सदमे की वजह से रोते रोते तरुण की हालत ऐसी हो जाती है कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है जिससे वो अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाता। लिहाजा तरुण के बड़े भाई सजनी को मुखाग्नि देते हैं।

अब पुलिस की तफ्तीश शुरू होती है। पुलिस अभी चोर उचक्कों और सजनी की कातिल की तलाश के लिए छानबीन का दायरा बढ़ाने की जुगत में ही होती है तभी 16 फरवरी को तरुण के बड़े भाई का पुलिस के पास फोन पहुँचता है। पुलिस को इत्तेला दी जाती है कि तरुण लापता है। असल में तरुण अस्पताल से ही गायब हो जाताहै। पुलिस का शक तरुण पर आकर टिक जाता है, हालांकि पुलिस का शक शुरू से ही तरुण पर था क्योंकि उसका बयान लगातार बदल रहा था।

लिहाजा तरुण के लापता होने पर पुलिस हैरान और परेशान हो जाती है। इधर मीडिया में खबर के फैलने के बाद सजनी के घरवाले भी पुलिस पर उंगली उठाना शुरू कर देते हैं। लिहाजा तरुण की तलाश में पुलिस ने चारो तरफ नाकाबंदी करने के साथ साथ तरुण के माता पिता और भाई को भी हिरासत में ले लिया। लेकिन तरुण का पुलिस को कहीं अता पता नहीं मिला।

Shams ki Zubani: तरुण की तलाश करते करते पुलिस को तीन साल हो गए। साल 2006 में सजनी के घरवालों ने उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय में संपर्क करते हैं। तब मुख्यमंत्री कार्यालय से निर्देश मिलने के बाद पुलिस के लिए तरुण की तलाश तेज करना और भी ज़्यादा ज़रूरी हो गया।

अब मामला बेहद गंभीर हो गया था। तरुण की तलाशके लिए पुलिस ने कई टीमें तैयार की, बाकायदा एक लाख रुपये का इनाम रखा गया। लेकिन पुलिस को कोई कामयाबी नहीं मिली। इसी बीच पुलिस को जांच में ये पता चल गया कि तरुण शादी के बाद से ही सजनी को तंग करता था। लेकिन सजनी के घरवाले उस वक़्त चौंक गए जब पुलिस की जांच में ये बात सामने आई कि तरुण का शादी से पहले ही किसी और लड़की के साथ संबंध था और दोनों शादी करना चाहते थे।

तब पुलिस तरुण की प्रेमिका तक पहुँच गई। तरुण की प्रेमिका ने पुलिस को बताया कि 16 फरवरी को तरुण ने उसे फोन किया था और शादी करने की बात कही थी। लेकिन तब तक सजनी की मौत की खबर फैल चुकी थी लिहाजा उसकी प्रेमिका ने शादी करने से इनकार कर दिया था।

पुलिस के सामने अब एक बात साफ हो गई थी कि सजनी का कत्ल उसके ही पति यानी तरुण ने किया था। लेकिन क़त्ल के बाद पुलिस की एक लापरवाही से कत्ल का आरोपी फरार हो चुका था। वक्त बीता, लेकिन तरुण का कहीं कोईसुराग नही मिला। पुलिस ने चारो तरफ पहरेदारी तेज़ कर दी। इस बीच तरुण के घरवाले अहमदाबाद छोड़कर पहले मध्य प्रदेश और फिर कर्नाटक में आकर रहने लगे।

Shams ki Zubani: 2009 में तरुण के पिता की मौत हो गई। और उसी दौर में पुलिस को ये पता चला कि तरुण एक बार केरल भी जा चुका है जब तरुण के माता पिता केरल गए हुए थे। बताया जाता है कि केरल में जब तरुण अपने माता पिता से मिला था उसी के अगले रोज ही उसके पिता को हार्टअटैक पड़ा था। वक्त बीतता जा रहा था लेकिन तरुण की परछाई तक पुलिस को नहीं मिल पा रही थी। वक्त बीतने के साथ ही पुलिस की तलाश भी सुस्त पड़ गई। इसके बाद पुलिस के लिए सजनी के क़त्ल की फाइल महज एक रस्म अदायगी से ज़्यादा कुछ नहीं रही।

धीरे धीरे साल 2016 आ गया। इस बीच नए पुलिस अफसर ने सजनी मर्डर केस की फाइल को जब पढ़ा तो उसे नए सिरे से तफ्तीश करना शुरू किया। तफ्तीश एक बार फिर आकर ठिठक गई क्योंकि तरुण का कहीं कोई अता पता नहीं मिल रहा था। जबकि उसकी मां मध्य प्रदेश के मंदसौर में रह रही थी जबकि तरुण का भाई अहमदाबाद में ही रह रहा था।

इसी बीच पुलिस ने एक बार फिर उस लड़की से संपर्क किया जिससे तरुण का इश्क था। पुलिस की पूछताछ में उस लड़की ने पुलिस को पहला सुराग दिया। उसने बताया कि 2016 में ही लड़की के कुछ जानने वालों ने तरुण के हुलिये से मिलते जुलते लड़के को दिल्ली के एक मॉल में देखा था। पुलिस की एक टीम दिल्ली पहुँचती है और दिल्ली के तमाम मॉल को खंगलना शुरू करती है। पुलिस को ये भी पता चलता हैकि इसी दौरान तरुण की मां भी दिल्ली में देखी गई थी लिहाजा पुलिस अपनी पड़ताल को और पैना करती है। मगर कुछ हाथ नहीं लगता है।

दिल्ली के सुराग से पुलिस को ये यकीन तो हो जाता है कि तरुण ज़िंदा है। और ये भी यकीन हो जाता है कि तरुण देश में ही है, कहीं विदेश नहीं गया है। पुलिस को इस बीच अलग अलग सूत्रों से तरुण को अलग अलग जगह पर देखने की खबर भी मिलती रहती है लेकिन तरुण नहीं मिला।

Shams ki Zubani:पुलिस की तलाश अब पांच राज्यों की हदों तक पहुँच चुकी थी। लेकिन तरुण का कहीं कोई नामोनिशान नहीं मिल रहा था। इस दौरान पुलिस ने तरुण और उसके परिवार से जुड़े करीब चार हजार से ज़्यादा मोबाइल नंबरों को भी खंगाल डालती है। लेकिन ये कोशिश भी पुलिस की खाली ही जाती है।

अंधेरे में भटकते भटकते पुलिस बेसुराग तरुण की तलाश करती रहती है। 15 साल गुज़र जाते हैं और साल 2018 आ गया। अब पुलिस ने अपनी तफ्तीश का तरीका बदला और सबको छोड़कर सिर्फ तरुण की मां के नंबर को सर्वेलैंस में डाल दिया। क्योंकि पुलिस को इतना यकीन था कि तरुण हो न हो अपनी मां से संपर्क जरूर करता होगा। इसी शक पर पुलिस लगातार तरुण की मां पर नज़र रखने लगी। इसी बीच एक रोज पुलिस को तरुण की मां के नंबर पर एक लैंडलाइन नंबर नज़र आया। जिस पर उसने बात की थी। वो लैंडलाइन नंबर बेंगलुरू का था। पुलिस के लिए ये चौंकाने वाली बात थी कि तरुण की मां को किसी लैंडलाइन नंबर से कॉल किया गया था और वो भी बेंगलुरू से।

तब पुलिस ने उस नंबर की पड़ताल शुरू की। पता चला कि वो नंबर बेंगलुरू के ओरेकल कस्टमरकेयर का नंबर है। पुलिस को ये नंबर हैरान कर रहा था। और सवाल भी सामने था कि तरुण की मां को ओरेकल कस्टमर केयर से क्या काम पड़ सकता है। तब उस नंबर के आसरे अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच की टीम बेंगलुरू के लिए रवाना होती है।

Shams ki Zubani: बेंगलुरू पहुँचने के बाद पुलिस की टीम वहां की लोकल पुलिस से संपर्क करती है और पूरा किस्सा बताने के बाद उस नंबर की पड़ताल करने को कहती है। बेंगलुरू पुलिस तब ओरेकल कस्टमर केयर में पड़ताल शुरू करती है. वहां काम करने वाले तमाम कर्मचारियों की पड़ताल में पुलिस लग जाती है।

मगर पुलिस को शुरू शुरू में बड़ी ही मायूसी होती है क्योंकि कस्टमर केयर के कर्मचारियों की लिस्ट में कोई तरुण का नाम ही नहीं मिलता। लेकिन लिस्ट में प्रवीण भटेले का नाम देखकर पुलिस चौंक जाती है। क्योंकि पुलिस को तरुण की मां की कॉल लिस्ट में एक नाम दिखाई दिया था वो था प्रवीण भटेले...और तरुण की मां एक और नंबर पर बात करती थी जो प्रवीण की पत्नी निशा का था।

तब पुलिस ने प्रवीण के साथसाथ निशा की कुंडली खंगालना शुरू कर देती है। तब पुलिस को प्रवीण भटेले और तरुण की मां के बीच की बातचीत का पूरा रिकॉर्ड निकाल लेती है...साथ ही प्रवीण की पत्नी निशा के साथ की बातचीत का भी रिकॉर्ड निकाल लेती है। हालांकि पुलिस को इन दोनों का कोई सोशल मीडिया एकाउंट नहीं मिलता है।

Shams ki Zubani: तब पुलिस प्रवीण भटेले को ही तरुण मानकर अपनी तफ्तीश आगे बढ़ाती है। तब पुलिस की टीम अहमदाबाद पुलिस से तरुण का पूरा कच्चा चिट्ठा निकलवाती है। पुलिस को पता चलता है कि वॉलीबाल मैच के दौरान तरुण की एक उंगली टूट गई थी। और वो उंगली थी रिंग फिंगर।

पुलिस के लिए ये जानकारी बेहद अहम थी ताकि वो प्रवीण भटेले को ज़ीरो डाउन करने के लिए अपनी तफ्तीश आगे बढ़ा सके। इस जानकारी को हाथ में लेकर अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की टीम अगले ही रोज उस कस्टमरकेयर के दफ्तर पहुँचती है ताकि प्रवीण भटेले की उंगली टटोली जा सके। और रात को पौने 12 बजे वो प्रवीण को तरुण के तौर पर पहचान लेती है। और उंगली उनकी पहचान की तस्दीक कर देती है।

पुलिस ये ज़रूर जानना चाहती थी कि आखिर इतना शातिर होने के बाद भी प्रवीण से लैंडलाइन वाली ग़लती कैसे हो गई तो भला हो मोबाइल नेटवर्क का जिसकी वजह से तरुण की अपनी मां से बात नहीं हो पा रही थी और उस दौरान उसकी मां की तबीयत बेहद खराब रहने लगी थी जिसको लेकर वो काफी फिक्रमंद भी था। लिहाजा तब उसने लैंडलाइन से बात की थी। और यही उसकी पहली और शायद आखिरी गलती साबित हुई।

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