World Crime: जेल से रिहा होगा बिकिनी किलर चार्ल्स शोभराज, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट का आदेश

ADVERTISEMENT

CrimeTak
social share
google news

Nepal News: नेपाल की सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता बिमल पौडेल ने मीडिया को जानकारी दी है कि शोभराज (Charles Sobhraj) के वकीलों ने जेल (Jail) से रिहा होने के लिए याचिका दायर की थी। शोभराज निर्धारित अवधि से ज्यादा समय तक जेल में बंद रह चुका है। अदालत ने इसी को आधार बनाकर शोभराज को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है।

एक फ्रांसीसी लेखक ने चार्ल्स शोभराज के रहस्यमय रवैये के बारे में लिखा था कि उसके अपराध और उसकी तमाम हरकतें इस बात की गवाही दे देती है कि उसकी इस फितरत के पीछे उसके बचपन की कोई कुंठा छुपी हुई है। फ्रांसीसी लेखक का ये दावा कि उसने सिर्फ चार्ल्स के अपराधों की फेहरिस्त को देखने के बाद ही ये बात कही है जबकि उसे चार्ल्स के बारे में और कुछ भी नहीं मालूम था।

इस मनोवैज्ञानिक लेखक ने अपनी क़िताब में कुछ अपराधियों के बारे में जिक्र किया था जिसमें चार्ल्स शोभराज का भी नाम था। और उनकी किताब के मुताबिक बचपन की कुंठा और अपने माता पिता से नफ़रत करने की वजह से ही कोई भी इसी तरह का अपराधी बन जाता है जैसा कि चार्ल्स शोभराज नज़र आ रहा है।

यह भी पढ़ें...

ADVERTISEMENT

चार्ल्स शोभराज के बारे में ये बात एकदम सही निकली। क्योंकि दुनिया के तमाम सीरियल किलर के मुकाबले चार्ल्स शोभराज न तो ग़ुस्सैल था और न ही कभी उसने अपने हिंसक स्वभाव को ज़ाहिर किया था। इतना ही नहीं उसके परिवार में भी उसके माता पिता में से किसी का कोई ताल्लुक कभी भी जरायम की दुनिया से नहीं रहा।

उसकी वियतनामी मां उसके भारतीय पिता से अलग होकर रहने लगी थी क्योंकि दोनों कभी शादी के बंधन में बंधे ही नहीं थे जिसकी वजह से चार्ल्स के हिन्दुस्तानी पिता ने उसे कभी अपनाया ही नहीं। ऐसे में उसके सामने एक ऐसा वक़्त भी आया जब वो किसी भी देश का नागरिक नहीं था।

ADVERTISEMENT

चार्ल्स 1944 में वियतनाम के साइगॉन में पैदा हुआ था। उस वक़्त इस शहर पर जापानियों का कब्ज़ा था, लिहाजा जंग के उस माहौल में तक़लीफों की बीच पले बढ़े चार्ल्स के दिलो दिमाग में इसका ज़बरदस्त असर हुआ था। शोभराज की मां ने वियतनाम में तैनात एक फ्रांसीसी फौजी से शादी की और पेरिस चली गई।

ADVERTISEMENT

फ्रांसीसी फौजी ने चार्ल्स को अपना लिया जिससे उसे फ्रांस की नागरिकता हासिल हो गई। जुर्म के मनोविज्ञान पर काम करने वाले जानकारों का ये आंकलन है कि चार्ल्स शोभराज को अपने हिन्दुस्तानी बाप से इस कदर नफ़रत थी कि उसकी बदनामी के लिए ही वो जुर्म की दुनिया में गहरे उतरता चला गया। और ये उसकी नफ़रत का ही नतीजा था कि उसने अपने चंगुल में फंसी ज़्यादातर खूबसूरत लड़कियों को मौत की नींद में सुला दिया। 

गुरुमुख चार्ल्स सोभराज। जो हिन्दुस्तान के अखबारों और मीडिया में चार्ल्स शोभराज के नाम से मशहूर है। जरायम की दुनिया का ये ऐसा इकलौता किरदार है जिसकी ज़िंदगी तिलस्म, रोमांच और ग्लैमर से सराबोर रही। फिर चाहें वो जेल की सलाखों के पीछे क़ैद में रहा हो या फिर खुली हवा में परवाज़ भरने वाले किसी आज़ाद पक्षी की तरह हो।

वैसे बॉलीवुड की मसाला फिल्म डॉन का एक डायलॉग शायद इसी किरदार को ज़ेहन में रख कर लिखा गया होगा कि 'डॉन का इंतज़ार तो 11 मुल्क़ों की पुलिस कर रही है'। सच मुच एक वक़्त ऐसा भी था जब चार्ल्स शोभराज का इंतज़ार कम से कम भारत समेत नेपाल, म्यांमार, थाईलैैंड, फ्रांस, ईरान, ग्रीस और तुर्की समेत क़रीब नौ देशों की पुलिस की हथकड़ियों को चार्ल्स की कलाइयों का इंतज़ार था। लेकिन उसने क़ैदी के रूप में उसने सिर्फ चार ही देशों में अपनी ज़िंदगी का ज़्यादातर वक़्त बिताया।

उसकी बातों के रेशमी धागों के जाल में एक बार जो हसीना फंसी तो फिर वो जिंदा नहीं बची। छह भाषाओं और लच्छेदार बात करने में माहिर चार्ल्स के बारे में तो यहां तक कहा गया है कि उसने जिस पर भी एक नज़र डाली तो फिर उस ख़ूबसूरत महिला का बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता था।

चार्ल्स शोभराज का ज़िक्र आते हैं एक के बाद एक कई क़िस्सों की पूरी फेहरिस्त सामने आ जाती है। इस फेहरिस्त में शोभराज से जुड़ा हरेक क़िस्सा ऐसा है जिस पर बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक कहीं भी अच्छी ख़ासी तीन घंटे की एक दिलचस्प और रोमांच से भरपूर फिल्म तक बन सकती है।

वियतनामी मां और भारतीय पिता की औलाद चार्ल्स शोभराज को भारत के साथ साथ दक्षिण एशियाई देशों में बिकनी किलर के नाम से भी जाना जाता है। जिसने 1970 के दशक में दक्षिण पूर्व एशिया के क़रीब क़रीब हरेक देश में जाकर विदेशी सैलानियों को शिकार बनाया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मरने वालों में ज्यादातर यूरोप और अमेरिका के साथ साथ भारत, नेपाल और थाईलैंड की लड़कियां ही थी। लेकिन इस शातिर बिकनी किलर ने असल में कितने लोगों को मौत के घाट उतारा इसका राज़ आज भी शोभराज के दिल में ही क़ैद है।

जुर्म की दुनिया का ऐसा कोई गुनाह ही नहीं है जो चार्ल्स शोभराज ने न किया हो। उसके बारे में ये भी मशहूर है कि वो सांप की तरह ही अपने शिकार को अपनी कुंडली में जकड़ लिया करता था और कई भाषाओं में बात करने का उसका लहजा मकड़ी के जाल की तरह उसके शिकार को पूरी तरह से उसके मोहपाश में बांध देता था।

मजाल है कि उसका शिकार उसके जाल में आने के बाद छटपटा भी सके। शायद यही वजह है कि बस किसी भी जुर्म का नाम लो, उस गुनाह में चार्ल्स शोभराज का नाम लिपटा मिल जाएगा।इसी वजह से चार्ल्स को द सर्पेंट भी कहा जाने लगा।

बताया जाता है कि तिहाड़ के पहरे को तोड़कर वहां से निकल भागना और फिर पकड़ा जाना चार्ल्स शोभराज का एक मास्टरप्लान था, जिसमें वो काफी हद तक कामयाब भी रहा। लेकिन जिस तरह से उसने तिहाड़ से भागने में कामयाबी पायी थी वो क़िस्सा अपने आप में जुर्म की दुनिया में एक मिसाल के तौर पर ही देखा जाता है।

असल में चार्ल्स शोभराज के बारे में यही बताया जाता है कि 1972 से 1976 के बीच क़रीब 24 हिप्पियों को मौत के घाट उतारा था। और ये भी कम दिलचस्प नहीं है। असल में चार्ल्स शोभराज ने विदेशी सैलानी महिलाओं को ही अपना शिकार बनाया, और जिनमें से ज़्यादातर की लाश जब पुलिस को मिली तो वो सभी बिकनी में ही थी, लिहाजा चार्ल्स शोभराज को बिकनी किलर का नाम मिल गया।

उसकी शिकार हुई ज़्यादातर महिलाएं ने ड्रग्स या नशीली दवाओं का सेवन किया था, और मौत के घाट उतरने से पहले निजी पल भी बिताए थे। 1976 में चार्ल्स शोभराज ने एक बड़ा हाथ मारा और भारत की सैर पर आए एक फ्रांसीसी ग्रुप के चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इसके साथ ही साथ चार्ल्स ने एक इजराइली सैलानी की भी हत्या कर दी थी। जिसकी वजह से उसे पकड़ा गया और पहले सात साल की सज़ा और फिर पांच साल की सज़ा देकर चार्ल्स को तिहाड़ भेज दिया गया था।

वैसे तमाम जुर्म के साथ साथ चार्ल्स शोभराज को जेल से फ़रार होने में तो जैसे महारत हासिल थी। वो एक बार नहीं कम से कम आधा दर्जन बार दुनिया के अलग अलग मुल्कों की सबसे महफूज़ कही जाने वाली जेल से ऐसे निकल जाता था मानों जेल के दरवाजे उसके लिए खुद ब खुद खुल जाते हों।

हालांकि चार्ल्स शोभराज पहली बार 18 साल की उम्र में जेल गया था। मार्सिले की उस जेल में भयानक क़ैदियों के बीच गुज़ारा उसका वक़्त शायद उसकी ज़िंदगी का अब तक का सबसे मुश्किल वक़्त कहा जा सकता है। वहां जेल में वो किसी से बात नहीं करता था क्योंकि उसे वहां के क़ैदियों से डर लगता था। लेकिन एक बार डर निकल जाने के बाद तो वो जेल जाता और जब दिल करता वहां से निकल जाता।

कुछ बानगी हैं चार्ल्स शोभराज के जेलों से फ़रार होने की 1971 में चार्ल्स शोभराज ग्रीस की रोड्स पुलिस स्टेशन की छत से कूद कर भाग निकला था। और वहां से भागकर वो सीधा हिन्दुस्तान आ गया। उसी साल चार्ल्स शोभराज बंबई में लूट और चोरी के इल्ज़ाम में पुलिस के हत्थे चढ़ा लेकिन उसने एपेंडिसाइटिस के दर्द का ऐसा बहाना बनाया कि उसे अस्पताल में भर्ती किया गया और वहां से वो पुलिस को चकमा देकर निकल भागा।

1972 में वो अफ़ग़ानिस्तान के काबुल की जेल में बंद था। लेकिन वहां उसने जेल के पहरेदार को नशीली चीज़ खिलाकर बेहोश कर दिया और वहां से भाग निकला। इसके अलावा 1975 में एक बार फिर चार्ल्स शोभराज को ग्रीस में पुलिस ने पकड़ लिया और वहां की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली एजिना टापू की जेल में बंद कर दिया था ये जेल शायद सबसे सुरक्षित भी है क्योंकि उसके चारो तरफ दूर दूर तक समंदर है। मगर चार्ल्स शोभराज वहां से भी पुलिस की आंख में धूल झोंककर भाग निकला।

ठीक इसी तर्ज में हिन्दुस्तान की तिहाड़ जेल के बारे में ये बात हमेशा से ही मशहूर रही है कि ये भी दुनिया की सबसे महफूज़ जेलों में से एक है। जिससे किसी भी क़ैदी का भाग निकलना क़रीब क़रीब नामुमकिन ही माना जाता रहा है।

ये और बात है कि अपवाद के तौर पर कुछ क़ैदियों ने इस मिथक को तोड़ा है और तिहाड़ से पुलिस और पहरेदारों को चमका देकर यहां से भाग निकलने में कामयाब भी हुए। उन्हीं चंद क़िस्सों में चार्ल्स शोभराज का जिक्र आता है, जिसने 1970 और 80 के दशक में तिहाड़ को तोड़कर वहां से निकल भागने में कामयाबी हासिल की थी।

10 साल तिहाड़ में बिताने के बाद चार्ल्स शोभराज ने आखिर तिहाड़ से निकल भागने की अपनी साज़िश को ज़मीन पर उतारा। 16 मार्च 1986 को इतवार का दिन था। चार्ल्स शोभराज ने तिहाड़ के जेल अधिकारियों के पास एक दरख़्वास्त भेजी। गुज़ारिश की कि वो अपने जन्मदिन पर जेल में सभी के बीच मिठाई बंटवाना चाहता है।

तिहाड़ से 24 क़त्ल का सज़ायाफ़्ता मुजरिम का फरार होना जेल अधिकारियों पर भारी पड़ गया। सड़क से लेकर संसद तक में इसको लेकर सवाल उठे। लिहाजा अपनी खोई हुई इज्ज़त को वापस पाने की गरज से तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर चार्ल्स शोभराज की तलाश में देश के अलग अलग हिस्सों में टीमें दौड़ा दीं।

तीन हफ्ते की भागदौड़ के बाद आखिरकार पुलिस को कामयाबी मिल गई और चार्ल्स शोभराज गोवा में फिर पकड़ लिया गया जो उस वक़्त किसी और शिकार की तलाश में वेष बदलकर घूम रहा था।

चार्ल्स को जब वापस तिहाड़ लाया गया तो उसे सख़्त पहरे के बीच काल कोठरी में बंद कर दिया गया। जहां उसके पास रोशनी तक नहीं पहुंच पाती थी। इसी बीच दिल्ली पुलिस और तिहाड़ जेल की जांच समिति की रिपोर्ट में जो खुलासा हुआ वो तो और भी ज़्यादा चौंकानें वाला था।

चार्ल्स को तिहाड़ में रहते हुए दस साल हो चुके थे, और इस दौरान उसने ऐसा कोई भी काम नहीं किया था जिससे उसको लेकर जेल अधिकारी कोई राय बना पाते। जेल में सारा काम वो क़ायदे और क़ानून के मुताबिक ही कर रहा था। बल्कि उसका ज़्यादातर वक़्त लाइब्रेरी में गुज़रता था। ऐसे में जेल अधिकारियों के पास उस पर शक करने की कोई वजह भी नहीं थी। लेकिन चार्ल्स के दिमाग़ में तो शैतान था।

लिहाजा उसने तिहाड़ के जेल अधिकारियों से मिठाई बंटवाने की इजाज़त मिलने के बाद बाज़ार से मिठाई मंगवाई और उसमें नशा मिला दिया। और फिर उसे जेल के भीतर मौजूद हरेक इंसान के बीच बंटवा दिया, जिनमें क़ैदियों से लेकर जेल के पहरेदार तक शामिल थे।

मिठाई ने जैसे ही अपना असर दिखाया, शोभराज ने आराम से जेल की चाबी ली और जेल के फाटक खोलकर वहां से फरार हो गया। जेल से बाहर निकलकर उसने बाक़ायदा रिक्शा किया और आसानी से दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गया और वहां से बाक़ायदा टिकट ख़रीदकर गोवा जाने वाली ट्रेन में बैठ गया।

रिपोर्ट के मुताबिक चार्ल्स शोभराज ने जेल से भागने और फिर पकड़े जाने का पूरा मास्टरप्लान तैयार किया था। असल में सज़ा-ए-मौत के चंगुल से निकलने के लिए ही शोभराज ने ये साज़िश रची थी। जांच रिपोर्ट के मुताबिक चार्ल्स को भारत में 12 साल की सज़ा मिली थी जिसमें से 10 साल की सज़ा वो काट चुका था। अब उसे दो साल की सज़ा ही और काटनी थी। लेकिन उसे इस बात का डर भी था कि भारत में उसकी सज़ा पूरी होने के बाद मुमकिन है कि उसे थाईलैंड के क़ानून के हवाले किया जा सकता है।

दरअसल 1977 में थाईलैंड की तरफ से चार्ल्स शोभराज की गिरफ़्तारी के लिए वॉरंट जारी किया गया था, जिसकी डेडलाइन 20 साल तक थी। और थाईलैंड में उसके ख़िलाफ़ क़त्ल के ही मामले दर्ज थे। लिहाजा उन इल्ज़ामों पर उसे सिर्फ और सिर्फ सज़ा-ए-मौत ही मिल सकती थी। लिहाजा उसने तिहाड़ जेल से भागकर अपने लिए एक फुलप्रूफ प्लान बनाया जिससे वो हिन्दुस्तानी क़ानून के मुताबिक आसानी से कुछ और साल तिहाड़ में ही काट सके।

1986 में जेल से फरार होने के बाद दोबारा पकड़े जाने पर चार्ल्स शोभराज अगले 11 साल तक तिहाड़ में रहा और 1997 में वो अपनी सज़ा पूरी करने के बाद बाहर निकला। तब तक थाईलैंड के वारंट की मियाद ख़त्म हो चुकी थी।

1997 में भारत में जेल से रिहा होने के बाद चार्ल्स शोभराज पेरिस चला गया था। लेकिन पेरिस में चार्ल्स को किसी हीरो जैसा दर्जा हासिल हुआ। अपने चार्म और चलन की बदौलत चार्ल्स जुर्म की दुनिया में बड़ी ही इज्ज़त से लिया जाने वाला नाम हो गया। भारत से पेरिस पहुँचने के बाद चार्ल्स के दिन बहुर गए थे। फ्रांस के एक डॉयरेक्टर और प्रोड्यूसर ने तो चार्ल्स शोभराज पर एक फिल्म तक बनाने के अधिकार हासिल कर लिए थे। जिसके एवज में उसने चार्ल्स को क़रीब 97 करोड़ रुपये लिए। जबकि एक मीडिया हाउस से इंटरव्यू के एवज में उसने 5 हज़ार डॉलर मांग लिए थे।

पेरिस में किंगसाइज़ जिदंगी जीते जीते अचानक 2003 में चार्ल्स शोभराज नेपाल पहुँच गया। वहां एक कसीनों के बाहर उसकी एक फोटो अखबार में छपी तो नेपाल पुलिस हरकत में आई और उसे पकड़ लिया गया। नेपाल में पहले ही चार्ल्स से ख़िलाफ़ हत्या के मामले दर्ज थे। साथ ही फर्जी पासपोर्ट से नेपाल में दाखिल होने का भी एक मामला शोभराज के ख़िलाफ दर्ज हो गया।

12 अगस्त 2004 को चार्ल्स शोभराज को नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई। हालांकि ये बात अभी तक साफ नहीं हो सकी कि जिस नेपाल की पुलिस उसे तलाश कर रही थी। जहां उसके ख़िलाफ एक अमेरिकी और एक कनाडाई नागरिक की हत्या का मामला दर्ज है और वो खुद नकली पासपोर्ट के ज़रिए ही 1975 में नेपाल गया था जिस पर पुलिस ने उस वक़्त पकड़ भी लिया था। बावजूद इसके वो नेपास पहुँचा तो क्यों।

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT