Bombay High Court: 'मर्डर केस में पुलिस कस्टडी में पूछताछ जरूरी नहीं', आरोपी को मिली बेल

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Court News: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत (anticipatory bail) देते हुए कहा कि सिर्फ इसलिए कि मामला हत्या का है इसका मतलब यह नहीं है कि एक आरोपी से पुलिस हिरासत (police custody) में पूछताछ की जानी चाहिए. इस तरह कोर्ट ने आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी.

जस्टिस भारती डांगे ने कहा,
"केवल इसलिए कि इसमें शामिल अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत है, उसकी हिरासत में पूछताछ के लिए जरूरी नहीं है कि.

मृतक के भाई मनोज दुबे ने 20 मई 2019 को मुंबई के घाटकोपर पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया था. दुबे ने आरोप लगाया कि 2017 में आरोपी संतोष माने ने अपने चार साथियों के साथ मिलकर उसके भाई समझकर को हॉकी स्टिक और तलवार से हमला कर मार दिया. दुबे के भाई ने कहा था कि उसके माने सहित कई लोगों की दुश्मनी है और वे उसे कभी भी खत्म कर सकते हैं.

अदालत ने देखा कि 2017 में कुछ क्रॉस शिकायतें थीं और एक मामले में माने और दुबे के भाई दोनों आरोपी थे. दुबे के मुताबिक, उन्होंने और उनके भाई ने इन मामलों के बारे में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी, जिससे माने नाराज हो गए और इस तरह उनके भाई को खत्म करने की साजिश रची.'

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माने की ओर से पेश हुए वकील राजीव चव्हाण ने दुबे के मामले में दायर चार्जशीट की ओर इशारा किया. उस चार्जशीट में माने को वांछित आरोपी के रूप में दिखाया गया था जबकि आरोपपत्र हमलावरों के खिलाफ था. चव्हाण ने कहा कि 2017 की घटना के दौरान माने अकोला में थे और इसलिए उन्हें क्लीन चिट दे दी गई.

चव्हाण ने कहा कि वर्तमान मामले में अभियोजन द्वारा एक सीडीआर सौंपा गया है जिससे पता चलता है कि माने और एक आरोपी के बीच संवाद है. हालांकि, घटना के साथ माने के बीच संबंध स्थापित करने के लिए कुछ भी नहीं है, चव्हाण ने प्रस्तुत किया

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