बॉम्बे हाई कोर्ट ने रद्द की रेप की FIR, पीड़िता ने कहा- भविष्य पर करना चाहती हूं फोकस

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Court News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में नाबालिग रेप पीड़िता की सहमति पर एक 20 साल के छात्र के खिलाफ FIR रद्द कर दी. पीड़िता ने दावा किया था कि वह अपने एकेडमिक करियर पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है. आरोपी छात्र कॉलेज के प्रथम वर्ष में था, जबकि लड़की 12वीं कक्षा में थी. दोनों अच्छे दोस्त थे और एक ही इलाके में रहते थे. उनकी दोस्ती कब यहां तक पहुंची जब 2019 में लड़की ने आरोप लगाया कि छात्र के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया था.

इसके बाद पीड़िता ने FIR दर्ज कराई. कुछ समय बाद लड़के ने पीड़िता से बातचीत की और उनके बीच एफआईआर रद्द कराने पर सहमति हो गई. फिर पीड़िता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सहमति से रद्द करने के लिए एक अनिवार्य प्रक्रिया के तहत पीड़िता द्वारा हलफनामे दायर किया.

पीड़िता ने जस्टिस पीबी वराले और एसएम मोदक की पीठ में नो ऑब्जेशन का हलफनामा दायर किया. पीड़िता ने बेंच से हलफनामे में कहा कि वह एकेडमिक करियर बनाना चाहती है और आपराधिक कार्यवाही एक बाधा बन जाएगी. लड़की ने हलफनामे में कहा था कि मैं और मेरे माता-पिता छात्र पर मुकदमा चलाने में रुचि नहीं रखते हैं. लंबित आपराधिक अभियोजन के कारण पहले से ही मेरी प्रतिष्ठा और एकेडमिक करियर को नुकसान पहुंचा है.

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करियर में बाधा बनेगी कार्यवाही

पीठ ने हलफनामे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पीड़िता के एकेडमिक करियर में आपराधिक कार्यवाही और मुकदमे की लंबितता एक बाधा होगी. वह अपने बीते हुए समय को छोड़कर बेहतर भविष्य के लिए सकारात्मक पक्ष पर ध्यान केंद्रत करना चाहती है. अदालत में छात्र की ओर से पेश वकील नितिन पाटिल ने कहा कि हालांकि छात्र के खिलाफ अपराध गंभीर हैं, लेकिन पीड़िता की इच्छा है कि वह शांतिपूर्ण जीवन जिए और एकेडमिक करियर पर ध्यान केंद्रित करे. यह न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करके निश्चित रूप से याचिका को अनुमति दे सकता है ताकि न्याय के अंत को सुरक्षित किया जा सके.

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कोर्ट ने रद्द की FIR

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दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने इस दलील का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि भले ही पक्ष एक समझौते पर पहुंच गए हों, लेकिन अपराधों की प्रकृति गंभीर थी क्योंकि वे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और 377 के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 4 और 5 प्रावधानों के तहत दंडनीय थे.

आवेदक के खिलाफ गंभीर अपराधों के आरोप के बावजूद अदालत ने अपने आदेश में कहा कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती है कि पीड़िता ने अपनी स्वतंत्र इच्छा दोहराई और अपने एकेडमिक करियर पर ध्यान केंद्रित किया है. आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए नो ऑब्जेक्शन को देखते हुए बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो भी छात्र को दोषी ठहराए जाने की शायद ही कोई संभावना है. इसलिए कोर्ट ने FIR रद्द करने का आदेश दे दिया.

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