देश भर के 4,66,000 से ज़्यादा क़ैदियों की ज़िंदगी क़ैद है अलीगढ़ी ताले में

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अलीगढ़ से सुरभि तिवारी के साथ गोपाल शुक्ल की रिपोर्ट

कहते हैं कि अलीगढ़ का ताला एक बार लग जाए तो फिर उसे किसी दूसरी ताली से खोलना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। ताला बनाने वालों का दावा तो यहां तक है कि एक बार इस ताले की आदत लगने की देर है, फिर किसी दूसरे ताले के साथ किसी का दिल लग नहीं सकता।

अपनी इस बात की मिसाल देने के लिए ताला बनाने वाले एक छोटा सा क़िस्सा भी सुनाते हैं। किस्सा कुछ यूं है कि एक बार मध्य प्रदेश के जेल महानिदेशक को इस बात का वहम हो गया कि मध्य प्रदेश में जेल ब्रेक की जितनी भी घटनाएँ हो रही हैं उनमें ज्यादातर मामलों में जेल में लगे ताले ही जिम्मेदार हैं। ये बात जब अलीगढ़ में ताला बनाने वाले और जेलों में ताला की सप्लाई करने वालों को पता चली तो वो भड़क उठे। भोपाल से लेकर अलीगढ़ तक जेल महानिदेशक के फैसले का जमकर विरोध हुआ।

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ताला बनाने वालों का तर्क था कि उनके तालों की मजबूती पर तो दुनिया भर में कभी कोई सवाल ही नहीं खड़े हुए। बी सौ सालों में ये पहला मौका है जब उनके सबसे बड़े भरोसे पर किसी ने उंगली उठाई है। ऐसे में उनके पेट पर लात मारना ठीक नहीं। इस मामले की गहराई से तहकीकात की जानी चाहिए।

दरअसल यहां बात सप्लाई की नहीं थी, उस भरोसे के टूटने का दर्द था जिससे बनाने में ताला कारोबारियों को सौ साल लग गए थे। और इन सौ सालों में अलीगढ़ के तालों ने पूरी दुनिया के लोगों का भरोसा जीता था। लिहाजा बात ताला और उसकी लाज पर आकर अटक गई थी।

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सामने आई ख़ाकी की ख़ामी

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ताला कारोबारियों के इस विरोध का असर ये हुआ कि जेल महानिदेशक की रिपोर्ट के आधार पर एक जांच कमेटी बना दी गई। उस कमेटी ने जब अपनी रिपोर्ट दी तो ताला कारोबारी झूम उठे, जबकि ख़ाकी सवालों के दायरे में आ गई।

असल में रिपोर्ट में कहा गया था कि जेल से कैदियों के फरार होने की घटनाओं में जेल की सलाखों में लगे ताले कतई कसूरवार नहींअब बल्कि खोट तो खाक़ी पहने वालों और उनके इमान पर है। क्योंकि रिपोर्ट में उन बातों और उन लोगों का नाम भी था जिन्होंने फर्ज अदायगी में कोताई बरती और क़ैदी को जेल से भाग निकलने का मौका मिल गया। मगर कसूर ताला के सिर मढ़ दिया गया।

ऐसे साबित हुआ तालों का मजबूत भरोसा

इस रिपोर्ट के आते ही बातचीत के रास्ते का ताला फिर से खुल गया और मध्य प्रदेश जेल महानिदेशक ने फिर से अलीगढ़ के ताले से सूबे की तमाम जेलों को महफूज बनाए रखने का फिर से भरोसा जताया और तालों की सप्लाई अलीगढ़ से ही बहाल कर दी।

मध्य प्रदेश की एक जेल में करीब 245 से 260 तालों की ज़रूरत पड़ती है। मध्य प्रदेश में 11 सेंट्रल जेल हैं, जबकि 32 जिला जेल, 64 उप जेल के साथ साथ होशंगाबाद की एक ओपन जेल भी है। यानी कुल मिलाकर एक जेल में औसत 250 तालों के हिसाब से केवल मध्य प्रदेश भर की तमाम जेलों के लिए 27000 से ज़्यादा तालों की ज़रूरत पड़ती है। जिसकी जिम्मेदारी अब अलीगढ़ के कंधे पर है।

देश भर की 1350 जेलों का भरोसा

ये महज़ एक क़िस्सा भर नहीं है। बल्कि एक जमीनी हक़ीक़त भी है। पूरे हिन्दुस्तान भर में तमाम छोटी बड़ी क़रीब 1350 जेल हैं, और उन तमाम जेलों के लिए क़रीब 337500 तालों की जरूरत पड़ती है जिसकी सप्लाई अलीगढ़ से ही की जाती है।

भारत की इन तमाम जेलों में कुल मिलाकर 466000 से भी ज़्यादा क़ैदी बंद हैं। यानी अलीगढ़ के तालों पर अब साढ़े चार लाख से ज़्यादा क़ैदियों को न सिर्फ मज़बूती से सलाखों के भीतर क़ैद रखने बल्कि खुद उनकी हिफ़ाजत का भी ज़िम्मा इन अलीगढ़ के तालों पर ही आकर टिक जाता है।

अंग्रेज़़ों के ज़माने वाले ये अलीगढ़ी ताले और इनकी मज़बूती की मिसाल के क़िस्से पूरी दुनिया भर में फैले हुए हैं।

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