रियल हॉरर स्टोरी : 200 साल से इस हवेली में है रमिया बाई का ख़ौफ़, आती है घुंघरुओं की आवाज़

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Crime Horor Story in Hindi : कई ख़ौफ़नाक हवेलियों (भूतिया हवेली) के क़िस्से अब तक आपने सुने होंगे. मगर ऐसी कोई हवेली नहीं थी जहां कोई रहता हो. इसलिए दास्तान कितनी सच है. और कितनी झूठ. ये शक़ हमेशा बना रहता था. मगर आज जिस हवेली की कहानी हम आपको बता रहे हैं, वहां एक परिवार रहता है. और साथ में रहती है रमिया. जिसे मरे दो सौ साल का वक़्त गुज़र चुका है.

अगर वक़्त के पन्नों का हिसाब लिया जाए तो दास्तान क़रीब दो सौ साल पुरानी है. उत्तरप्रदेश में एटा के पास एक हवेली है. वीरान नहीं बाक़ायदा आबाद है. एक परिवार के लोगों से. मगर तबाह है एक रुह से. जी हां, इस हवेली में ज़िंदगी और मौत साथ साथ रहते हैं.

अगर हादसों के मद्देनज़र फ़ैसला लिया जाए तो यहां मौत ज़िंदगी पर बहुत भारी पड़ी है. एक रमिया...अब तक कई लोगों की जान ले चुकी है. वो रमिया एक तवायफ़ थी. जिसका कभी जलवा हुआ करता था. मगर दो भाइयों ने उसपर अपना दावा ठोंक दिया.

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नाच देखने के दौरान झगड़ा हुआ. फिर झगड़ा शुरू हुआ. और फिर इस झगड़े में जो हुआ उसकी निशानी थी एक मौत. वो रमिया झगड़े में बेमौत मारी गई. ये क़िस्सा है 200 साल पहले का. लेकिन आज भी वो उसी हवेली में दिखती है. नाच गाने घुंघरुओं की आवाज़ के साथ. हवेली में लोग रहते हैं...मगर ख़ौफ़ के बीच. कई असमय मौतें हो चुकी हैं.

कई सालों से चीखें आती हैं इस हवेली से

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Horror Kahaniyan : कहानी की शुरुआत होती है एक दिन से. उस दिन सूरज को आख़िरी सलाम पेश कर रहा था. शाम घिर आई थी कि तभी एटा के चमकरी गांव की इस हवेली से अचानक एक चीख़ गूंजती है .आवाज़ किसी लड़की की है...कहती है...मुझे हवेली से मत निकालो...ये मेरा घर है...वरना मैं तुम सबको बर्बाद कर दूंगी. कोई कुछ समझे इससे पहले एक और चीख़ गूंजती है.

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मगर इस बार चीख़ में मौत की तकलीफ़ भी घुली हुई है. पानी..पानी... कराहने की आवाज़ के साथ कोई लड़की पानी मांगती है...ये वाकया कहीं और होता...तो शायद कोई न कोई तो मदद के लिए आ भी जाता..मगर इस गांव में हर कोई डर से सहम सा जाता है...क्योंकि पिछले कई दशकों से ऐसी चीख़ें...इस हवेली से निकलती रही हैं...और लोग कांपते हुए सुबह का इंतज़ार करते रहे हैं...

इस हवेली के मालिक सतेंद्र तोमर कहते हैं कि यहां पहले सब ठीक था. लेकिन धीरे-धीरे ये दिक्कत बढ़ती ही गई. यहां घुंघरुओं की आवाज़ सुनाई देती थी..नाचने की आवाज़ें...इस तरह प्रॉब्लम क्रिएट होती रही..तांत्रिकों को बुलाया गया. कभी कभी आवाज़ें आतीं...आपको घर छोड़कर जाना पड़ेगा...ये मेरा घर है. इस तरह से हमलोगों को डर लगने लगा.

हमलौग ख़ौफ़ के साये में जीने लगे. लेकिन सवाल ये था कि आखिर कौन है ये लड़की. .और इसका इस घर से क्या रिश्ता है...क्यों दिन ढलते ही...इस हवेली के पास से होकर गुज़रने वाले रास्तों पर क़ब्रिस्तान सा सन्नाटा पसर जाता है...और एक अजीब अनमनी से लड़की इस हवेली में भटकती दिखाई देती है...कभी झरोख़े से झांकती तो कभी हवेली की छत से टकटकी लगाए दूर किसी मुसाफ़िर का इंतज़ार करती...जिसने उसे ग़ौर से देखा है...

बताते हैं कि उसकी नज़रें बरछी की तरह कलेजे को चीरती सी लगती हैं. मगर कभी इन्हीं नज़रों के दीवाने थे लोग. वो जहां खड़ी होती थी उसी के आसपास खड़े होकर लोग उसका दीदार करना चाहते थे. जिस घर में वो रहती थी उसकी खिड़की पर लोगों की नजरें टकटकी लगाएं रहती हैं. इंतज़ार करते थे लोग...कि कब खिड़की खुले और उसका दीदार हो...ऐसा जलवा था रमिया का...

ऐसी हवेली जिसमें जिंदगी और मौत दोनों का बसेरा

इस हवेली के आसपास रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि इस हवेली में से एक ख़ूबसूरत सी लड़की निकलती थी. जिसे वो जब पकड़ने की कोशिश करते..वो बिल्ली बन जाती थी. आज इस कोठी में ज़िंदगी और मौत दोनों का बसेरा है. दूसरी हवेलियों की तरह ये ख़ाली नहीं हैं.

यहां गुज़रे दौर की तवायफ़ रमिया की रूह भी रहती है. और इस कोठी के मालिकान भी. मगर मौत के साए में लगातार सांस लेती इन ज़िंदगियों पर क्या गुज़रती है. ये बताने के लिए काफी है कई लोगों की मौत होना. क्योंकि इस हवेली ने अब तक कई अपनों को खो दिया है. हद तो ये है कि इस हवेली के बच्चे भी शैतानी करने या चहकने से पहले सोचने लगे हैं.

इस हवेली में आज जितनी भी ज़िंदगियां बाक़ी बची हैं...उनके चेहरों पर ज़िंदगी का कोई नामोनिशान नज़र नहीं आता...एक ख़ूबसूरत मगर ख़ौफ़नाक चेहरा उन्हें लगातार नज़र आता है...एकटक घूरता हुआ...शायद ये पूछता हुआ कि इतने लोगों की मौत के बाद भी क्या हिम्मत बाक़ी है. यहां रहने की...मगर रमिया आख़िर क्यों इतक़ाम की आग में झुलस रही है...क्यों उसे मासूम बच्चों पर भी तरस नहीं आता...क्या हुआ था उसके साथ..

आख़िर कौन थी रमिया बाई

रमिया बाई...उसकी पायल जब छनकती थी...तो लोग दीवाने हो जाया करते थे...हर हवेली का मालिक ये सपना पाला करता था कि एक दिन ये घुंघरु उनके सिर्फ़ उनके लिए खनकेंगे..बात क़रीब दो सौ साल पुरानी है जब रमिया इसी हवेली में मुजरा किया करती थी...रमिया के दीवानों की फ़ेहरिस्त में इसी इलाक़े के दो सगे भाइयों का नाम भी शुमार हुआ करता था...जो तक़रीबन हर शाम उसी के पास गुज़ारा करते थे...

मगर रमिया उस बला का नाम था जिसकी ख़ूबसूरती और हुनर के आगे क्या रिश्ते और क्या नाते...पल भर में बिखर जाते थे...औऱ यही हुआ उन दोनों भाइयों के साथ भी...रमिया को लेकर दोनों इस क़दर ज़ज़्बाती हुए कि एक दूसरे की ही जान के दुश्मन बन गए...

और जब रमिया ने बेक़ाबू हालात क़ाबू में करने की कोशिश की...तो ग़ुस्से से लहराता एक ख़ंजर रमिया के ही शरीर में उतर गया..दरअसल, ये कहा जाता है कि दोनों भाइयों की लड़ाई में रमिया बीच-बचाव करने आ गई थी.

उसकी दीवानगी ही उसका कसूर बना

वो चाहती थी कि दोनों में खून-खराबा ना हो. लेकिन हुआ इसके ठीक उलट. खून तो हुआ लेकिन उन दो भाइयों में से नहीं बल्कि रमिया का. जिसका कोई कसूर नहीं था. अगर कोई कसूर था तो वो उसकी ख़ूबसूरती की. कसूर था तो उसकी दीवानगी. और कसूर था कि उसकी मचकती कमर और बलखाती चाल की.

जिस पर वहां से सात कोस दूर तक वाले भी खींचे चले आते थे. लेकिन आज उसी ख़ूबसूरती पर दो भाई ऐसे टूटे कि आपस में ही भिड़ गए और ख़ंजर रमिया के सीने में घुस गया. वो ख़ंजर बहुत गहरा ज़ख़्म छोड़ गया था...ज़िंदगी की सांसें उसकी टूटी हुई पायल के घुंघरुओं की तरह बिखरती जा रही थीं...मौत दस्तक दे चुकी थी...

और फिर रमिया के साथ ही नाच गाना मस्ती ठिठोली सब कुछ ख़त्म हो गया था उसकी मौत के साथ ही. और ये मौत इस हवेली पर बहुत भारी पड़ी..वक़्त बीतता गया मगर उसकी यादें कभी धुंधली नहीं पड़ीं...पड़ती भी कैसे...क्योंकि रमिया ने तो इस हवेली को छोड़ा ही नहीं था. वो आज भी लोगों को नज़र आती है...

मगर गाती गुनगुनाती नहीं...बदहवास घूमती हुई...याद करती हुई उन सुनहरे दिनों की. जब एक महफ़िल उठती नहीं कि दूसरी सजाने को बेताब लोग वहां पहुंच जाते...फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि दो सौ साल पहले इस ड्योढ़ी से निकला हर क़दम मस्ती से झूमता हुआ निकलता था...मगर आज यहां से लाशें निकलती हैं...

आज भी यहां मरने वालों का दिखता है साया

इस बारे में हवेली मालिक सतेंद्र तोमर बताते हैं कि मेरी मां को एक दिन साया दिखाई दिया था. इसके बाद उनकी मौत हो गई थी. इस तरह रमिया का प्रकोप हमारी हवेली पर हमेशा ख़ौफ़नाक साये की तरह पड़ता गया है..एक एक कर मेरे तीन बच्चे..फिर मेरी पत्नी की भी जान जा चुकी है.

हालांकि, अब इस हवेली को बचाने की जिम्मेदारी सतेंद्र पर ही है. वो एक पढे लिखे इंसान हैं. और इससे पहले वो भूत प्रेत जैसी बातों को मानते भी नहीं थे...मगर आज जब वो अपने परिवार पर नज़र दौड़ाते हैं..तो हर रिश्ता अधूरा नज़र आता है...वो ज़िंदा है..मगर पत्नी नहीं रही...कोई बच्चा ज़िंदा है...तो मां मर चुकी है...भाभी है...मगर भाई जान गंवा चुका है.

कहते हैं कि तोमर परिवार से पहले इस हवेली में गुप्ता परिवार रहा करता था. लगातार हुई मौतों ने गुप्ता परिवार को इतना तोड़ दिया...कि उन्होंने कौड़ियों के दाम ये हवेली बेच दी...ख़रीदी तोमर परिवार ने...और ख़रीदते ही...बच्चे बूढ़े जवान एक एक करके आठ लोग मौत के मुंह में समा गए...फिर सहारा लिया...पूजा पाठ का...नतीजा..इस बार उसकी जान गई..जिसने पूजा कराई थी.

रमिया बाई की कहानी का पूरा वीडियो देखिए ख़ौफ़ सीरीज में :

आज भी हवेली में नहीं आती है कभी रौनक

इस हवेली के बारे में पुरानी मालकिन आखिर क्या सोचती हैं. इस बारे में पुरानी मालकिन ओमवती गुप्ता बताती हैं कि आगरा रोड पर बसा चमकरी गांव है. वक़्त के पलों को बुनते-बुनते आज तक़रीबन दौ सौ साल गुज़ार चुका है लेकिन उस हादसे के बाद यहां कुछ नया नहीं हुआ.

सिवाय रमिया की दास्तान के. जो यहां के ताने बाने में बुन सी गई है. कुछ इतनी शिद्दत से कि बाक़ायदा नज़र भी आती है. अनमनी सी...भटकती हुई...हवेली के बाहर भी..और अंदर भी...नतीजतन इसके मालिकान इसे बेच देना ही बेहतर समझते रहे.

यही वजह है कि आज इस हवेली में किसी के चेहरे पर रौनक नहीं नज़र आती...बच्चे गुमसुम से रहते हैं. बड़े...जैसे बस..ज़िंदा हो...घर घर सा नहीं लगता...और लगे भी कैसे क्योंकि घर ने उन्हें कभी अपनाया ही नहीं...अलबत्ता छीना ज़रूर...उनके तमाम अपनों को...अचानक...

रमिया का सच क्या है..हम नहीं कह सकते...हां इतना ज़रूर कह सकते हैं कि यहां रहने वाले दोनों परिवारों में बेहिसाब बेवजह मौतें हुईं हैं...और अगर ये सब कुछ इत्तिफ़ाक है तो यक़ीनन बहुत ख़ौफ़नाक इत्तिफ़ाक है..शायद रमिया के ख़ौफ़ से कहीं ज़्यादा ख़ौफ़नाक.

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