लिव-इन में पैदा हुआ बच्चा.. तो देना होगा प्रॉपर्टी में हिस्सा.. सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला..

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सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन-रिलेशन (live-in-relation) में रहने वाले कपल के लिए एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कपल लिव-इन में रह रहा है तो बिना शादी के पैदा हुए बच्चे को भी प्रॉपर्टी में हिस्सा मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि अगर कपल लंबे समय तक लिव-इन में रहता है तो उसे शादी जैसा ही माना जाएगा और ऐसे में अगर बच्चा पैदा होता है तो बच्चा पिता की प्रॉपर्टी का हक़दार होगा।

केरल हाईकोर्ट (High Court of Kerala) ने क्या कहा था?

इससे पहले केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि बिना शादी के पैदा हुए बच्चे को परिवार का हिस्सा नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के इस फ़ैसले को पलटते हुए कहा कि एक साथ रह रहे कपल का ही ये बच्चा है ये अगर DNA में साबित हो जाए तो पिता की संपत्ति पर बच्चे का पूरा हक़ होगा।

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पहले लिव-इन को लेकर क्या थे नियम?

आज के दौर में लिव इन रिलेशन का ट्रेंड (trend) चल रहा है। लिव-इन रिलेशन में रहने वाले लोगों के बीच भी आम रिश्तों की तरह कुछ-झगड़े और दिक्कतें आती हैं। ऐसे में इस तरह के मामले जब भी पुलिस या अदालत के पास जाते तो किस आधार पर इन मामलों में कार्रवाई की जाए वो आधार नहीं मिल पाता था। लिव-इन में रह रहे लोगों को अक्सर परेशानियों का सामना करना पड़ता था क्योंकि इसे लेकर कोई हमारे देश में कोई क़ानून नहीं था। जिसके बाद इस तरह की परेशानियों से निपटने के लिए और लिव-इन में रहने वाले लोगों के साथ हुई घरेलू हिंसा या किसी भी विवाद के निपटारे को आधार देने के लिए एक क़ानून आया।

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लिव-इन-रिलेशन (live-in-relation) को कब मिली मान्यता?

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साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन-रिलेशन (live-in-relation) को मान्यता दी। इसके साथ-साथ कोर्ट ने लिव-इन रिलेशन को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2(F) में जोड़ दिया। लिव-इन में रह रहे घरेलू हिंसा के शिकार लोगों के लिए ये फ़ैसला राहत वाला था। अब वो भी ऐसे मामलों में रिपोर्ट दर्ज करवा सकते हैं। लिव-इन रिलेशन का मतलब है कि एक कपल पती-पत्नी की तरह एक साथ एक ही घर में रहते हैं लेकिन को इसकी कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होती।

महत्वपूर्ण जानकारी

- लिव-इन रिलेशन को सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने 2010 में मान्यता दी।

- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में इसका ज़िक्र किया गया है।

- महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए घरेलू हिंसा अधिनियम लागू।

- रेप के मामले IPC की धारा 376 में दर्ज होते हैं।

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