SUPREME COURT : हाईकोर्ट के फैसले को जब सुप्रीम कोर्ट में दी जाती है चुनौती तब लगता है कम से कम इतना वक़्त!

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हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

LATEST COURT NEWS: केंद्रीय राज्य मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को लखीमपुर कांड में हाईकोर्ट (HIGH COURT) से ज़मानत तो मिल गई। मगर मामला ज़मानत ऑर्डर (BAIL ORDER) में लिखी धाराओं की वजह से थोड़ा अटका हुआ है।

लेकिन इसी बीच इस बात को लेकर बहस छिड़ गई है कि कहीं ये टेक्निकल (TECHNICAL) पेच आशीष मिश्रा उर्फ मोनू के लिए मुसीबत की वजह न बन जाए। कहीं ऐसा न हो कि उनकी ज़मानत को सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) में चुनौती मिल जाए। और अगर ऐसा हुआ तो कम से कम कितने दिन तक उन्हें रिहाई के लिए इंतज़ार करना पड़ सकता है।

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सभी जानते हैं कि हाईकोर्ट(HIGH COURT) के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) में चुनौती दी जा सकती है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर उसकी पूरी प्रक्रिया क्या है? और सुप्रीम कोर्ट में पिटिशन दाखिल करने के बाद क्या क्या होता है? ये समझना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि पूरी प्रक्रिया को समझने के बाद ही ये समझा जा सकता है कि क्यों हाई कोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में पूरी सुनवाई में कितना वक़्त लगता है तो क्यों?

कम से कम इतना वक़्त तो लगना तय है

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COURT NEWS IN HINDI: सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) के एक वकील के मुताबिक हाईकोर्ट जिस मामले में ज़मानत आदेश (BAIL ORDER) देता है उसके ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही अपील याचिका दायर हो सकती है जिसके लिए एक खास और लंबी प्रक्रिया है।

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इस मामले में होगा ये कि किसान पक्ष की ओर से जब सुप्रीम कोर्ट में पिटिशन फाइल की जाएगी, तो सुप्रीम कोर्ट उस बारे में पहले विचार करेगा कि किसानों की वो गुहार स्वीकार करने के योग्य है भी या नहीं। पिटिशन दाखिल होने और उसके स्वीकार या खारिज होने में तीन से पांच दिन का वक़्त लग ही जाता है।

सुप्रीम कोर्ट अगर पिटिशन स्वीकार कर लेता है तो सभी पक्षों को नोटिस भेजा जाता है। नोटिस भेजने के बाद दूसरी तारीख कम से कम 15 दिन बाद ही मिल पाती है। उस तारीख में सभी पक्षों को अपना अपना लिखित जवाब देना होगा। जवाब दाखिल होने के बाद बहस पर एक और तारीख मिलेगी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज सारे पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला देंगे। यानी मोटे तौर पर देखें तो इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 20 से 25 दिन से लेकर क़रीब एक महीना तक लग सकता है।

ऐसे में अब ये कहा जा सकता है कि अगर जब तक हाईकोर्ट का संशोधित ज़मानत ऑर्डर आने में थोड़ा भी वक़्त लग गया, और इस बीच मामला कहीं से सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया तो कहीं ऐसा न हो कि आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की जेल की सलाखों के ताले में अटकी चाबी कहीं फंस कर न रह जाए।

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