बाहुबली डॉन बृजेश जिसने दूसरे बाहुबली मुख़्तार अंसारी पर AK47 तानकर गोलियां बरसाईं

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POLITICAL CRIME NEWS ABOUT BRIJESH SINGH

देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.. लेकिन सभी की नजरें यूपी चुनाव(UP ELECTION) पर टिकी हुई हैं क्योंकि ये वही यूपी है जहां से जुर्म जगत के कई गैंगस्टर राजनीति के रास्ते सदन में जाकर बैठै हैं.

इन बाहुबली गैंगस्टर की पहचान किसी जाति या धर्म तक सीमित नहीं होती. ये कोई उन्मादी या दंगाई भी नहीं, बहुत नाप-तौल के बोलते हैं. मुंह पर कभी किसी को धमकाते तक नहीं, पर इनका रुतबा ऐसा कि आप इनके सामने खड़े तक न रह पाएं, घबरा के मैदान छोड़ दें…

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ऐसे ही एक ख़ूंख़ार गैंगस्टर का नाम है बृजेश सिंह.. ये वहीं बृजेश सिंह है जिसका 20 सालों तक यूपी पुलिस एक फोटो तक नहीं खोज पाई और उसे ठूंठने के लिए यूपी पुलिस ने इस पर इनाम 2 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया. लेकिन किसी को ये तक पता नहीं लग सका कि वो अरुण कुमार सिंह के नाम से भुवनेश्वर में रहता था.

इतना ही नहीं गैंगस्टर ने राजनीति में भी अपना परचम लहराया यूपी में जब बृजेश ने एमएलसी का चुनाव लड़ा, और रिकॉर्ड मतों से जीत भी हासिल की… इस गैंगस्टर का नेटवर्क इस कदर मज़बूत की सिर्फ़ पूर्वांचल ही नहीं पूरे भारत में इसने दहशत के क़िस्से दिख डाले थे.

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दरअसल बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह का जन्म यूपी के वाराणसी में हुआ था. उसके पिता रविन्द्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे और सियासी तौर पर उनका काफी रुतबा था. बृजेश को अपने पिता रविंद्र सिंह से काफी लगाव था. पिता चाहते थे कि बृजेश पढ़ लिखकर अच्छा इंसान बने, लेकिन नियत को कुछ और ही मंजूर था.

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पढ़ाई में होनहार बृजेश के जीवन में ये बदलाव तब आया जब 27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में बृजेश के पिता रविन्द्र सिंह की हत्या कर दी गई. हत्या को अंजाम देने वाले हरिहर सिंह और पांचू सिंह दोनों बृजेश के पिता के सियासी विरोधी थे. दोनों ने अपने साथियों के साथ मिलकर रविन्द्र की हत्या कर दी.

पिता की मौत के बाद बृजेश के मन में बदले की भावना को जन्म दे दिया और वो अपने पिता की हत्या का बदला लेने लिए बेताब हो गया. इसी दौरान 27 मई 1985 को रविंद्र सिंह का हत्यारा हरिहर सिंह बृजेश के सामने आ गया. उसे देखते ही बृजेश ने उसे मौत के घाट उतार दिया. और यहीं से उसने जुर्म की दुनिया में दस्तक दे दी!

बृजेश ने हरिहर को मौत के घाट तो उतार दिया था लेकिन उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ. उसे अभी उन सभी लोगों की तलाश थी जो उसके पिता की हत्या में शामिल थे.

इसके बाद 9 अप्रैल 1986 के दिन अचानक बनारस का सिकरौरा गांव गोलियों की आवाज़ से गूंज उठा और हर तरफ दहशत फैल गई. बाद में पता चला कि बृजेश सिंह ने अपने पिता की हत्या में शामिल रहे सभी पांच लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला था.

इस वारदात को अंजाम देने के बाद पहली बार बृजेश गिरफ्तार हुआ. यहीं वो सामूहिक हत्याकांड था. जिसने बृजेश का खौफ लोगों के दिलों में पैदा कर दिया था. इसी कांड के बाद उसकी छवि माफिया डॉन की बन गई.. और लोग उसके नाम से भी खौफ खाने लगे...

वैसे तो बृजेश सिंह के कई यादगार क़िस्से है पर उनमें से कुछ क़िस्सों का मेल विधायक मुख़्तार अंसारी (MUKHTAR ANSARI) से है…

दरअसल बृजेश सिंह को जब अपनी ताकत का अहसास हुआ तो उसने ठेकेदारी और रंगदारी जैसे काम शुरु कर दिए. इसी दौरान उसकी दुश्मनी बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी से हो गई. जो बृजेश को काफी महंगी भी पड़ी. बृजेश को मुख्तार की ताकत का अंदाजा नहीं लगा. इस गैंगवार में उसके भाई का मर्डर भी हुआ था.

दरअसल बृजेश ने पश्चिम बंगाल, मुंबई, बिहार, और उड़ीसा में भी अपना नेटवर्क बना लिया था. वो अंडरग्राउंड रहते हुए भी एक्टिव था. उसी दौर में मकनू सिंह और साधू सिंह का गैंग तेजी से उभर रहा था. अक्टूबर 1988 में साधू सिंह ने कांस्टेबल राजेंद्र को मौत की नींद सुला दिया, जो बृजेश सिंह के साथी त्रिभुवन सिंह का भाई था. हेड कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की हत्या के मामले में कैंट थाने पर साधू सिंह के अलावा मुख़्तार अंसारी और गाजीपुर निवासी भीम सिंह को भी नामजद किया गया था.

त्रिभुवन के भाई की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने पुलिस की वर्दी पहनकर गाजीपुर के एक अस्पताल में इलाज करा रहे साधू सिंह को गोलियों से छलनी कर दिया था. फिर इसी तरह से बृजेश सिंह ने मुंबई के जेजे अस्पताल में घुसकर गावली गिरोह के शार्प शूटर हलधंकर समेत चार पुलिस वालों की हत्या कर दी थी.

जूर्म की दुनिया में इतने कुख्यात अपराधी बनने के बाद बृजेश सिंह ने राजनीति शरण ले ली.

साधू सिंह की हत्या के बाद साधूँ के गैंग की कमांड सीधे मुख्तार अंसारी के पास चली गई थी. वो पहले ही बृजेश के लिए एक बड़ी चुनौती था. इसी दौरान बृजेश ने बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय का दामन थाम लिया था. राजनीतिक संरक्षण मिलने से बृजेश को राहत तो मिली लेकिन मुख्तार गैंग लगातार उसका पीछा कर रही थी.

बृजेश ने मुख्तार पर शिकंजा कसने की कोशिश की, लेकिन मुख़्तार गैंग इससे भी आगे निकला और विधायक कृष्णानंद राय की ही हत्या कर दी. इसके बाद बृजेश सिंह को यूपी छोड़कर फरार होना पड़ा था. उसका गैंग कमजोर पड़ गया. और अंत में 2008 में बृजेश सिंह को उड़ीसा से गिरफ्तार कर लिया गया…

मगर इन सब के बाद साल 2015 के दौरान यूपी में एमएलसी के चुनाव दौरान माफिया डॉन बृजेश सिंह ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी. हालांकि इसके बाद साल 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ.. तो बृजेश ने भारतीय समाज पार्टी से सैयदराजा विधानसभा (चंदौली) से चुनाव लड़ा था. लेकिन तब बृजेश को हार का सामना करना पड़ा था.

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