Shraddha Case : अदालतों ने श्रद्धा जैसे मर्डर को रेयर ऑफ रेयरेस्ट कम ही माना है, वजह ये है

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Shraddha Murder Case : श्रद्धा वालकर हत्याकांड मामले में श्रद्धा के पिता ने आफताब पूनावाला के लिए मौत की सजा की मांग की है। लेकिन पूर्व में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहां अदालतों ने समान प्रकृति के मामलों को ‘दुर्लभतम’ मानने से इनकार करने के बावजूद दोषियों को मृत्युदंड दिया।

पूनावाला ने कथित तौर पर श्रद्धा का गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी और उसके शरीर को 35 टुकड़ों में काट दिया, जिसे उसने इस साल मई में दक्षिणी दिल्ली के महरौली में अपने आवास पर लगभग तीन सप्ताह तक फ्रिज में रखा और कई दिनों में समूची दिल्ली में फेंका। विकास वालकर ने शुक्रवार को अपनी बेटी की हत्या करने वाले को फांसी देने की मांग की।

अदालत में मामले को पुख्ता करने के लिए दिल्ली पुलिस परिस्थितिजन्य साक्ष्य जुटाने का काम कर रही है। हालांकि, पूर्व में अदालतों ने इसी तरह के मामलों को ‘दुर्लभतम’ मानने से परहेज किया, जो न्यायपालिका को धारा 302 के तहत हत्या के अपराध के लिए उम्रकैद और मौत की सजा के बीच चयन करने में सक्षम बनाता है।

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गौरतलब है कि 1995 के कुख्यात तंदूर हत्याकांड में मौत की सजा को कम करते हुए उच्चतम न्यायालय ने पिछले मामलों के कई निर्णयों का विश्लेषण करने के बाद कहा, ‘‘...जिस तरह से शरीर के टुकड़ों को ठिकाने लगाया गया, ऐसे मामलों में अदालत ने हमेशा मौत की सजा देने पर विचार नहीं किया।’’

कांग्रेस के पूर्व युवा नेता और विधानसभा सदस्य (विधायक) सुशील शर्मा ने दो जुलाई, 1995 की रात अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर से अपनी पत्नी नैना साहनी को गोली मार दी थी और शव को एक रेस्तरां में ले गए तथा शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उन्हें रेस्तरां के तंदूर में जलाने का प्रयास किया। इस मामले को बहुचर्चित ‘तंदूर हत्याकांड’ कहा जाने लगा।

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शीर्ष अदालत ने कहा कि अपराधी की उम्र, उसकी सामाजिक स्थिति, उसकी पृष्ठभूमि, वह पक्का अपराधी है या नहीं, क्या उसका अपराध का पूर्व में इतिहास रहा है आदि जैसे कई कारकों की प्रत्येक मामले में स्वतंत्र रूप से जांच करनी होगी।

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दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए तत्कालीन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अमरजीत सिंह चंडियोक ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष तथ्यों और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के साथ यह साबित करने में विफल रहा है कि अपराध दुर्लभ से दुर्लभतम प्रकृति का है। वे अक्सर एक ढीली कड़ी छोड़ देते हैं और आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है।’’ तंदूर मामले में अभियोजन पक्ष यह स्थापित नहीं कर सका कि शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे।

2001 में संतोष कुमार सतीशभूषण ने फिरौती के लिए अपने दोस्तों के साथ एक लड़के का अपहरण किया और बाद में रस्सी से गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी। उन्होंने लड़के के शरीर को कई हिस्सों में काट दिया, उन्हें बैग में डालकर अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया। उच्चतम न्यायालय ने उनकी मौत को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

उच्चतम न्यायालय में वकील आनंद एस. जोंधले ने कहा, ‘‘भारतीय कानून में शरीर को काटना सबूतों को नष्ट करने के तहत आता है, जिसके लिए आरोपी को अधिकतम सात साल की सजा हो सकती है। सिर्फ हत्या के लिए उम्रकैद या मौत की सजा हो सकती है।’’

दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर ने कहा, ‘‘जब अदालतें ऐसे मामलों की सुनवाई करती हैं, तो वे केवल कानून नहीं देखती हैं। उन्हें अपराध की ओर ले जाने वाली सभी परिस्थितियों और तथ्यों को देखना होता है।’’

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