जब सामने आई रॉत्सोव के कसाई की हक़ीक़त, एक डॉक्टर ने क़बूल करवाया सीरियल किलर का गुनाह

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Shams Ki Zubani: यूं तो गुनाह का चेहरा ही ख़ौफ़नाक होता है, लेकिन कुछ ऐसी वारदात होती हैं जिसका ज़िक्र आते ही सारा शरीर झनझना जाता है। सिर से लेकर पांव तक सिहरन दौड़ जाती है, और उस गुनाह को ख़तरनाक अपराध की फेहरिस्त में शायद सबसे ऊपर ही रखा जाता है जहां इंसानियत के तार तार होने की पूरी दास्तां क़ैद हो जाती है।

क्राइम की कहानी (Crime Ki Kahani) में आज का क़िस्सा भी एक ऐसे ही अपराधी का क़िस्सा है जिसने घिनौनी वारदात करने में शायद तमाम हदों को पार किया (Butcher of Rostov)। ये क़िस्सा है रूस के एक ऐसे शातिर क़ातिल का है (Butcher of Rostov) जिसने एक दो नहीं और न ही एक दो दर्जन बल्कि क़रीब साढ़े चार दर्जन महिलाओं और बच्चियों को मौत के घाट उतारने से पहले अपनी हवस का शिकार भी बनाया। शायद यही वजह है कि क़िस्से और कहानी में उस शातिर को रूस का कसाई (Butcher of Rostov) भी कहा जाता है।

Shams Ki Zubani: ये क़िस्सा 70 और 80 के दशक का है। ये वो दौर था जब सोवियत संघ का रुआब पूरी दुनिया पर छाया हुआ था और दुनिया भर के तमाम लोगों को निगाहें रूस की हर छोटी बड़ी ख़बर और वारदात पर लगी रहती थी। इसी दौर में अपराध की एक खबर ने पूरी दुनिया के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। हुआ ये कि रूस के मीडिया और अखबारों में क़रीब क़रीब हर महीने एक अजीब सी खबर छपती रही।

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जिसमें किसी शहर में सड़क के किनारे, जंगल के भीतर, शहर के किसी वीरान पार्क में या फिर रेल के पटरियों के किनारे किसी महिला या लड़की की लाश मिलने का सिलसिला शुरू हुआ। जो लाश मिलती उसकी हत्या किसी चाकू या तेज़ धारदार हथियार से की गई होती थी। लेकिन जिस बात ने सभी को बुरी तरह चौंकाया था वो ये था कि हत्या से पहले क़ातिल उस लड़की या महिला के साथ अपनी हवस मिटाता था और फिर मौत के घाट उतार देता था। (sexually motivated killings of women)

Shams Ki Zubani: लेकिन पुलिस की तलाश तब तेज़ी से शुरू हुई जब सोवियत संघ के एक रूसी शहर रोत्सोव से एक 20 साल की लड़की अचानक ग़ायब हो गई। लड़की का नाम था लारिसा तकाशेन्को। लड़की के लापता होने की इत्तेला मिली तो पुलिस ने तफ्तीश शुरू कर दी। शुरुआती छानबीन में पता चला कि उस लड़की को आखिरी बार लाइब्रेरी से बाहर निकलते देखा गया था।

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पुलिस ने जब लारिसा की तलाश तेज़ की तो 24 घंटे के बाद ही पुलिस को उस लारिसा की लाश एक जंगल से बरामद हो गई। लाश को देखते ही समझ में आ गया था कि वो किसी दरिंदे का शिकार हुई है क्योंकि उसके शरीर पर ज़ख़्मों के गहरे निशान थे। लाश को देखकर ही पता चलता था कि लारिसा के साथ जमकर मारपीट की गई है और क़ातिल ने उसे दांतों से बुरी तरह काटा भी है।

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Shams Ki Zubani: अभी पुलिस लारिसा की लाश की गुत्थी को सुलझा भी नहीं पाई थी कि तभी सितंबर 1978 में पुलिस को रॉस्तोव शहर की नदी के किनारे एक और लाश मिली। ये लाश एक नौ साल की बच्ची की थी। जिसकी हत्या गला दबाकर की गई थी। लेकिन उसके शरीर पर चाकू से गोदे जाने के भी निशान थे।

पुलिस की पड़ताल में उस बच्ची की पहचान येलेना के तौर पर हुई। पुलिस चौंक कई कि हत्या से पहले उस बच्ची को भी क़ातिल ने अपनी हवस का शिकार बनाया था। पुलिस की तफ्तीश में पुलिस को वहीं नदी के किनारे येलेना का स्कूल का बैग भी मिल गया। जब पुलिस इस तफ़्तीश के सिलसिले में आगे बढ़ी तो उसी नदी के किनारे एक वीराने में पुलिस को एक उजाड़ घर नज़र आया, जहां मिले खून के धब्बों ने पुलिस को बुरी तरह से चौंका दिया।

लिहाजा पुलिस ने उस घर के आस पास बने मकानों में रहने वालों से जब पूछताछ की तो उन्हें एक शख्स का अक्स मिला, जिसके बारे में लोगों का कहना था कि उसे ही उस बच्ची के साथ बस स्टॉप के पास जाते हुए देखा गया था। इस सिलसिले में पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ़्तार तो किया मगर उसे कामयाबी नहीं मिली।

Shams Ki Zubani: ऐसी लावारिस लाशों के मिलने का सिलसिला तेजी से बढ़ता जा रहा था। पुलिस लाचार और बेबस नज़र आ रही थी। लेकिन लगातार लाशों की वजह से पुलिस बुरी तरह से दबाव में आ गई थी। तब पुलिस अपनी तफ्तीश की दिशा और तरीक़ा दोनों ही बदलने का इरादा किया। लाशों की गुत्थी को सुलझाने के लिए पुलिस ने अब मनोवैज्ञानिक का सहारा लिया और लाशों की दशा को दिखाते हुए क़ातिल की मानसिक हालत को समझने की कोशिश की।

महिलाओं और लड़कियों की लाशों के आधार पर मनोवैज्ञानिकों ने एक अनजान क़ातिल का अक्स तैयार किया। लेकिन उस अक्स और उसकी डिटेल में एक बात का ज़िक्र देखकर पुलिस भी बुरी तरह से चौंक गई। क्योंकि मनोवैज्ञानिकों के आधार पर जो भी क़ातिल है वो नंपुसकता का शिकार है, लिहाजा वो खुद को संतुष्ट करने के लिए ही हत्या की वारदात को अंजाम देता है। इस जानकारी के बाद पुलिस ने अब अपनी तफ़्तीश और तलाश का दायरा भी बदला और तरीक़ा भी। पुलिस ने अब अपने जासूसों का जाल शहर के आस पास रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप और शहर के सूनसान इलाक़ों की तरफ फैला दिया।

Shams Ki Zubani: इसी कोशिश में पुलिस को एक दिन रेलवे स्टेशन के पास एक शख्स नज़र आया जो कुएं के पानी से खून से सने हाथ साफ कर रहा था। पुलिस उसे देखकर चौंक गई क्योंकि उसके चेहरे पर भी घाव नज़र आ रहा था। पुलिसवालों ने जब उस शख्स से बात करनी चाही तो अंदाज़ा लगा कि उसकी दिमागी हालत भी ख़राब है। पुलिस को दाल में काला नज़र आया। लिहाजा पुलिस ने उस शख्स का पीछा करना शुरू कर दिया। और कुछ दिनों के बाद उस शख्स को पकड़कर पुलिस उसी मनोवैज्ञानिक के पास ले गई जिसने एक अनजान क़ातिल की तस्वीर बनाई थी।

उस शख्स को पकड़ने के बाद पुलिस ने तो नहीं अलबत्ता मनोवैज्ञानिक डॉक्टर ने उससे पूछताछ का सिलसिला शुरू किया। शुरू शुरू में तो यही लगा कि उस शख्स से क़त्ल के सिलसिले में कोई पूछताछ नहीं की जा रही, बल्कि ऐसे दूसरे सवाल और उनके जवाब पूछे गए जिसमें उस शख्स का अपना अतीत छुपा हो। जब उस शख्स को भी यकीन हो गया कि पुलिस उससे क़त्ल के बारे में कुछ नहीं पूछ रही तो वो सारे सवालों के जवाब देने लगा।

Shams Ki Zubani: तब पुलिस ने उससे पूछा कि इस शहर में जो क़त्ल हुए उस दौरान उस वक़्त वो कहां था, और क्या उसे इन क़त्ल के बारे में कोई जानकारी है भी नहीं। तभी वो शख्स अचानक खड़े होकर ऐलानिया कहता है कि वो ही वो सीरियल किलर है जिसकी तलाश शहर की पुलिस को लंबे समय से थी। उसके बाद जो राज़ खोलता है तो सुनने वाले दंग रह जाते हैं।

क्योंकि अब पुलिस के हाथों एक ऐसा शख्स लग चुका था जिसने अपने हाथों से दुनिया का ऐसा कोई गुनाह था ही नहीं जो न किया हो। पुलिस तब बुरी तरह चौंक जाती है जब उन्हें उस सीरियल किलर का सच पता चलता है। पुलिस इस बात से भी हैरत में थी कि जिस शख्स को वो अक्सर देखकर अनदेखा कर देती थी, उसकी तलाश में पुलिस ने न जाने कितने शहरों की धूल छान ली थी।

Shams Ki Zubani: अब पुलिस के सामने वो क़ातिल आ गया था जिसने शहर भर में 52 औरतों और महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाते हुए उनका क़त्ल कर दिया था। उसकी पहचान पुलिस के सामने आई आंद्रे चिकातिलो (Andrei Chikatilo) के रूप में। तब पुलिस और मनोवैज्ञानिक डॉक्टर ने खुद आंद्रे से उसके अतीत का सच जानना चाहा। आंद्रे ने जो अपना अतीत सुनाया तो वो और भी ज़्यादा दिल दहलाने वाला साबित हुआ।

आंद्रे का जन्म दूसरे विश्वयुद्ध के दौर में हुआ था। बचपन से ही आंद्रे ने बेहद ग़रीबी को बहुत नज़दीक़ से देखा था। उसके पिता को दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजी सेना से लड़ने के लिए सोवियत सेना में भर्ती तो कर लिया गया था लेकिन बग़ावत करने के इल्ज़ाम में उन्हें जेल में डाल दिया गया था। उधर आंद्रे का जहां पालन पोषण हो रहा था वहां बेहद ग़रीबी का आलाम था। लोगों के पास खाने तक का सामान नहीं था। जिसकी वजह से वहां के लोग अपनी भूख शांत करने के लिए मरे हुए लोगों को अपना निवाला बनाने लगे थे। इसी बीच आंद्रे की मां ने उसे एक क़िस्सा सुनाया कि इसी भुखमरी की वजह से यहां के लोगों ने उसके भाई को भी अपना निवाला बना लिया।

Shams Ki Zubani: इस बात की सच्चाई का पता किए बगैर ही आंद्रेई के ज़ेहन में ये बात पूरी तरह से छप गई। अपने अतीत से पीछा छुड़ाते हुए आंद्रेई अपने शहर को छोड़कर दूसरे शहर में पहुँच गया। वहां उसकी एक गर्लफ्रेंड बनी। और तभी पहली बार आंद्रेई को पता चला कि वो नपुंसकता का शिकार है। इसी बीमारी की वजह से उसे उसकी गर्लफ्रेंड से अलग होना पड़ा।

उसकी ज़िंदगी में एक दूसरी गर्लफ्रेंड आई लेकिन वो भी ज़्यादा दिनों तक रह नहीं सकी। इसी बीच आंद्रेई की बीमारी के बारे में उसके आस पड़ोस और दोस्तों को पता चल गया जिसकी वजह से उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।

इसी बीच उसने ज़िल्लत से बचने के लिए वो शहर भी छोड़ दिया और कई शहरों से धक्के खाने के बाद वो रॉस्तोव आ गया। यहां पहुँचने के बाद उसने एक टीचर की नौकरी कर ली। इतना सब कुछ होने की वजह से उसके ज़ेहन में एक अजीब से कैफियत पैदा हो गई। मां की सुनाई बचपन की उसके भाई का सच, उसकी गर्लफ्रेंड और उसके दोस्तों का उसका मज़ाक उड़ाना, ये सारी यादें भी उसके साथ इस शहर में चली आईं।

Shams Ki Zubani: इन तमाम चीजों ने आंद्रेई को इतना बेचैन कर दिया कि उसने गुनाह को अंजाम देने का इरादा कर लिया। अपनी नपुंसकता के लिए लोगों का हंसना उसे सबसे ज़्यादा चुभता था लिहाजा उसने गुनाह के इस रास्ते में सबसे पहले एक नौ साल की बच्ची को अपनी हैवानियत का शिकार बनाया।

हालांकि आंद्रेई के ख़िलाफ़ सिर्फ महिलाओं और लड़कियों के साथ दुष्कर्म करने के साथ साथ उनकी हत्या का इल्ज़ाम लगा लेकिन उसने कई लड़कों को भी अपना शिकार बनाया और उनके निजी अंगों को बुरी तरह से कुचला। इसके बाद तो जैसे आंद्रेई को जुनून सा सवार हो गया, उसने 12 साल की बच्ची से लेकर 45 साल तक की महिला को अपना शिकार बनाया। उसने खुद भी कुबूल किया कि शहर में अलग अलग वक़्त में उसने क़रीब 55 महिलाओं को अपना शिकार बनाया।

आंद्रेई के अपने गुनाहों को कुबूल करने के बाद उसके ख़िलाफ मुकदमा चला और पहली सुनवाई 14 अप्रैल 1992 को हुई। उसे रॉस्तोव का कसाई और जंगली क़ातिल, रेड रिपर और रॉस्तोव रिपर के नाम से उसे बदनामी मिली। आखिर कार 1992 में आंद्रे को 52 मामलों में दोषी करार देकर फरवरी 1994 को सज़ा-ए-मौत दे दी गई। आंद्रे को रूसी क़ानून के मुताबिक़ उसे गोली मारकर मौत के घाट उतारा गया।

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