UP ELECTION: रेलवे के कुली बोले, हमारा भी दर्द सुन लो सरकार, हमारा बोझ कौन उठाएगा?

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सहारनपुर से फ़र्रूख़ हैदर, चिराग गोठी, प्रिवेश पांडे, विनोद शिकारपुरी के साथ गोपाल शुक्ल की रिपोर्ट

UP ELECTION IN HINDI : कुछ हमारी भी अरज सुन लो सरकार

लोग आते हैं लोग जाते हैं

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हम यहीं पर खड़े रह जाते हैं

सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं

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ये फिल्मी गीत जरूर है लेकिन यहां उसे न तो गुनगुनाया जा रहा और न ही कोई उसे फिल्मी गीत जैसी लय ताल में गाने की कोशिश कर रहा। बल्कि ये बोल तो उन कुलियों के हैं जो सहारनपुर के रेलवे स्टेशन के बाहर हमें खड़े दिख गए।

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और दिख क्या गए स्टेशन के सामने गुज़रती क्राइमतक की गाड़ी के पास आकर हमसे ही अपना दुखड़ा कहने की गुज़ारिश करने लगे।

सर्दी के मौसम में सुबह से ही बरसात हो रही थी, स्टेशन लगभग खाली सा दिख रहा था।जैसा आमतौर पर हरेक रेलवे स्टेशन के बाहर सर्दी के मौसम में चाय और पराठों की महक आवारा टहलती महसूस हो जाती है, ठीक वैसा ही कुछ कुछ माहौल सहारनपुर रेलवे स्टेशन के बाहर भी था।

चाय की सिप से लेकर सिसकारी तक

CHUNAVI RANGBAAZ:गरमा गरम पराठें सिक रहे थे। और लोग हाथों में चाय के कुल्हड़ लेकर सर्दी की सिसकारी के बीच चाय की सिप ले रहे थे। तभी लाल वर्दी में करीब करीब पूर तरह से भीगकर तरबतर हो चुके वो कुली क्राइमतक की गाड़ी को देखते ही उसकी तरफ लपके।

उन्हें पता तो था कि यहां भी बोहनी नहीं हो पाएगी, मगर अपनी बोली में ये लोग वो बातें क्राइमतक के माइक और कैमरे के सामने रख पाएंगे जो इनके दिलों पर भारी सामान की तरह बोझ बनती जा रही हैं।

अब फ़र्ज़ निभाने की ज़िम्मेदारी क्राइमतक की टीम की थी, लिहाजा बेहिलाज होकर हम उन सबकी बातों के बोझ को अपनी जिम्मेदारी समझकर अपने कंधे पर उठाने के लिए गाड़ी से उतर गए और वहीं भीगते हुए मौसम में भीगी भीगी बातें होने लगीं।

बात निकली और बतंगड़ तक पहुँची

CRIME TAK IN HINDI:उधर कुली का काम करने वाले मज़दूरों से क्राइम टीम बात ही कर रही थी। गाड़ी भी वहीं खड़ी थी, और बरसात के मौसम में खाली घूमने वाले कई और लोग भी वहां आकर खड़े होकर बातें सुनने लगे। मगर थोड़ी ही देर में वहां बातों ही बातों में बात इतनी बढ़ी कि कलह सी शुरू हो गई और देखते ही देखते कब दो पाले खिंच गए, पता ही नहीं चला।

एक महाशय चीख चीखकर सरकार की महिमा गाने लगे तो कुलियों को उनका रंग पसंद नहीं आया। कुली पहले से ही खिसियाए हुए थे और अपनी मज़दूरी के दर्द को लेकर भन्नाए हुए थे... बस फिर क्या था, बतकही शुरू हो गई।

हालांकि बात बातों की हद में ही रही, लेकिन ऊंची नीची आवाज़ की वजह से सर्दी के मौसम में गर्मी का अहसास करवा गई। और पता भी चल गया कि चुनाव के इस मौसम में हर कोई भरा हुआ है और अपनी भड़ास निकालने का कोई मौका छोड़ता नहीं।

भीगते मौसम में भिगो भिगोकर मारा

LATEST ELECTION NEWS:अच्छा मजेदार बात तो ये है कि मुसाफ़िरों के बोझ उठाने वाले कुलियों ने बड़े ही आसान शब्दों में उन लोगों को भिगो भिगोकर मारा जिन पर उनके हक़ और हुक़ूक के लिए कुछ करने की जिम्मेदारी है।

इन कुलियों की बातों को सुनकर 47 साल पहले अमिताभ बच्चन की मशहूर फिल्म दीवार का वो किरदार याद आ गया जिसके हाथों में था बिल्ला नंबर 786 और मुंह में दबी हुई होती थी एक अदद बीड़ी।

तभी एक कुली ने जैसे ही अपनी बात कहनी शुरू की तो दिमाग़ में एक दम से पिक्चर बदल गई और दीवार की जगह ले ली कुली ने। वो भी अमिताभ बच्चन की फिल्म थी जो 1983 में पर्दे पर आई थी यानी क़रीब 40 साल पहले। और उस फिल्म के किरदार इकबाल याद आ गया। जिसे अमिताभ बच्चन ने ही जिया था।

फिल्मी किरदार की असली ज़मीन

CRIME TAK IN SAHARANPUR:‘कुली’ फिल्म के किरदार इकबाल के ही लहजे में सहारनपुर का एक असली कुली बोला आज तक किसी ने भी हमारा बोझ नहीं उठाया, साहब। दोपहर हो गई मगर हमारी बोहनी को तरस रहे हैं। अभी तक बोहनी भी नहीं हुई है।

ये बात कुलियों के बीच मौजूद एक कुली ने बड़े ही उदासमन से मगर सलीके से कही। तभी वहां भीड़ के बीच में पीछे की तरफ खड़े एक कुली ने आगे बढ़कर जो कहा उसे सुनकर हम वाकई बुरी तरह से चौंक गए, क्योंकि जिन्हें पढ़े लिखे लोग अनपढ़ मान लेते हैं, उसने पढ़े लिखे लोगों को आइना दिखा दिया था।

उसने कहा साहब ये तो केंद्र सरकार का मसला है क्योंकि ये तो सेंटर का सब्जेक्ट है, स्टेट गवर्नमेंट इसमें क्या कर सकती है।

कुलियों की करुण कथा

CHUNAVI RANGBAAZ IN HINDI: सके बाद तो कुछ कुलियों ने लालू यादव गाथा शुरू कर दी। ये हमें कुलियों ने ही बताया कि लालू प्रसाद यादव जब रेल मंत्री थे तो उन्होंने कुलियों के हक़ में बहुत से बड़े फैसले किए थे। कुलियों को ग्रेड डी का दर्जा दे दिया था। लेकिन उसके बाद किसी भी सरकार के किसी भी रेल मंत्री ने कुलियों की कोई सुध नहीं ली।

किस्से कुलियों के थे, लेकिन क्राइम तक की टीम अपनी आदत के मुताबिक क्राइम और सहारनपुर के अपराध की तरफ दौड़ी और कुलियों से ये भी पूछ ही लिया कि आखिर शहर की आबो हवा में सियासत का रंग तो चढ़ ही रहा है, यहां जुर्म का क्या हाल चाल है।

तो एक कुली ने बड़ी ही तसल्ली से एक तस्वीर दिखा दी। उसने कहां कि बीते बरसों में गुनाह कम हुए। यहां शहर के आस पास के गांवों में कुछ साल पहले तक अंधेरा होने के बाद लोग शहर से बाहर गांव की तरफ जाने में डरते थे, लेकिन अब आधी रात को भी लोग बेखटके होकर चले जाते हैं।

लाल कुर्ता पीतल का बिल्ला

क्राइमतक की टीम तो कुलियों से क्राइम के निशानों का पता पूछ रही थी, तब कुलियों ने एक और अपना दर्द हमारे सामने रख ही दिया। एक कुली बोला, इस कोरोना का गुनाह किसी क्रिमिनल से कम नहीं। इसने सब चौपट कर दिया।

रेलवे स्टेशन पहुँचते ही किसी भी मुसाफिर की सबसे पहले किसी से भी मुलाक़ात होती है तो वो है लाल कुर्ता या क़मीज़ पहने, बाहों में पीतल का बिल्ला बांधे हुए कुली। हिन्दुस्तान में 19500 रजिस्टर कुली है।

कई तो ऐसे हैं जिनका शायद ये ख़ानदानी पेशा जैसा है। लॉकडाउन में इन्हीं कुलियों की भूखों मरने की नौबत आ गई थी, क्योंकि ट्रेन सब बंद हो गईं थी और इनकी कमाई का चक्का पूरी तरह से जाम हो गया, जो आज तक ढंग से नहीं चल पाया है।

फुटपाथ पर पड़ी व्यवस्था

सामान को उठाने के लिए कुलियों की एक खासतरह की ट्रॉली होती है, वो भी वहीं फुटपाथ के पास खड़ी टाइप की पड़ी पड़ी बरसात में भीग भीगकर अपनी क़िस्मत को कोस रही थी। एक कुली ने क्राइम तक की टीम को दिखाया कि उसे कैसे लेकर चलते हैं।

मगर एक बात में उसका पूरा दर्द समझ में आ गया, जब वो बोला, साहब सिर पर उठाने भर का बोझ नहीं मिल रहा, ये ठेला कब और कैसे चलाए, बस पड़ी हैं ज़ंग खा रही हैं।

150 से ज़्यादा पुराने रेलवे के ‘कुली’

163 साल पहले भारतीय रेल व्यवस्था का हिस्सा बनी थी और तभी से कुली भी इस रेल व्यवस्था का हिस्सा रहे हैं। और इतने बरसों बाद आज भी रेलवे के कुली मामूली मज़दूर से ज़्यादा नहीं। फर्क है तो बस एक बैज का, जो उनके कंधे पर लगा होता है जिसे रेलवे की तरफ से जारी किया जाता है।

कौन कौन आते हैं ग्रुप डी में-

भारतीय रेलवे में ग्रुप डी न्यूनतम भुगतान के साथ एक बेसिक रेलवे की नौकरी है। इस पोस्ट पर रहकर पटरियों की देखभालकर्ता या सहायक के तौर पर काम करते हैं। पटरियों के अलावा रेलवे कोच, डिपार्टमेंट, स्टोर जैसी जगहों का रखरखाव भी इसी में शामिल होता है।

इस ग्रुप डी के तहत - ट्रक मैन, केबिनमैन, गेटमैन, स्विचमैन, कुली, गनमैन, फिटर वेल्डर, यांत्रिकी में सहायक यानी मैकेनिक की मदद करने वाला, इंजीनियरिंग में सहायक और ख़लासी आते हैं।

कुलियों की दिक्कत यहां हैं-

स्टेशन पर कुलियों को कई तरह की समस्याओं से भी मुक़ाबला करना पड़ता है। रेलवे के लिए काम करने के बावजूद कुलियों के लिए ज़्यादातर रेलवे स्टेशन में कोई विश्रामालय या विश्रामगृह जैसी चीज है ही नहीं। उनकी देखभाल का कोई इंतज़ाम कहीं नहीं है।

वो रेलवे के मुसाफिरों का बोझ भी उठाते हैं और अगर उन्हें या उनके परिवार को कहीं आना जाना हो तो उसका भाड़ा भी उनकी ही जेब को उठाना पड़ता है। कुलियों की कोई भी जीवन बीमा योजना जैसी चीज़ किसी भी स्टेशन पर नहीं है।

किसी हादसे का शिकार होने पर या अचानक आई बीमारी से हुई मृत्यु के बाद रेलवे की तरफ से कुलियों के परिवार को कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती।

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