Death Suspence : भारत को परमाणु ताक़त बनाने के ऐलान के सिर्फ तीन महीने बाद हुआ था भाभा के विमान का हादसा, ये कैसा इत्तेफ़ाक़?

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57 Year Old Death Mystery: ‘’भारत सिर्फ 18 महीने में परमाणु बम बना सकता है, बशर्ते पूरी छूट मिले’’  ये बात किसी और ने नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले होमी जहांगीर भाभा ने कही थी, और वो भी ऑल इंडिया रेडियो पर एक इंटरव्यू के दौरान।

ये वाकया 1965 के नवंबर महीने का है...लेकिन सिर्फ तीन महीने के बाद ही 24 जनवरी 1966 को एक विमान हादसा होता है। एअर इंडिया का बोइंग 707 विमान लंदन जाते वक़्त फ्रांस में एल्प्स की पहाड़ियों से टकराकर क्रैश हो गया और हिन्दुस्तान गम के समंदर में डूब गया क्योंकि इस विमान हादसे ने हिन्दुस्तान के सबसे बड़े वैज्ञानिक और परमाणु कार्यक्रम में भारत को खुदमुख्तार बनाने का सपना देखने वाले होमी जहांगीर भाभा की जान ले ली थी।

देखने में एक आम विमान हादसा क्या वाकई हादसा था या फिर ये एक गहरी साज़िश? इस सवाल की जंजीर में हिन्दुस्तान पिछले 57 सालों से जकड़ा हुआ है। क्योंकि शक तो है, कि ये हादसा नहीं बल्कि एक साज़िश है, मगर उस साज़िश को साबित करने के लिए जिन सबूतों की जरूरत है, वो हिन्दुस्तान के पास पूरे के पूरे मौजूद नहीं हैं। और एल्प्स की माउंटेन रेंज की सफेद बर्फ की तह में कहीं न कहीं इस साजिश की असलियत सांस ले रही है।

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Bhabha Death Suspence: 57 साल हो गए, होमी जहांगीर भाभा की मौत को, लेकिन हिन्दुस्तान आज तक ये बात साबित नहीं कर सका कि असल में ये महज इत्तेफाक से हुआ हादसा नहीं था बल्कि दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्कों की बदनाम खुफिया एजेंसी और उसका साथ निभाने वाली दूसरी ताकतों की एजेंसियों की मिलीभगत से किया गया एक प्लान था जिसे एल्प्स की पहाड़ियों में अंजाम दिया गया और भारत को हमेशा हमेशा के लिए उसके परमाणु कार्यक्रम में बरसों पीछे धकेल दिया गया।

1909 में एक अमीर पारसी परिवार में जन्में होमी भाभा ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद एटॉमिक फिजिक्स में दिलचस्पी दिखाई और उसी क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1939 में होमी भाभा विलायत से हिन्दुस्तान वापस आ गए। उस दौर में हिन्दुस्तान की सियासत दूसरी करवट ले रही थी और मुल्क आजादी के रास्ते पर आगे बढ़ रहा था।

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हिन्दुस्तान के लीडरों में जवाहरलाल नेहरा की जगह अग्रिम पंक्ति के नेताओं में होती थी। ऐसे में होमी भाभा की जवाहर लाल नेहरू के साथ अच्छी दोस्ती हो गई। और ये दोस्ती वक़्त गुज़रने के साथ साथ और गहरी होती चली गई।

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देश के आजाद होने के बाद 1948 में जब हिन्दुस्तान के तमाम वैज्ञानिक कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार हो रही थी, तभी होमी जहांगीर भाभा ने जवाहर लाल नेहरू से भारत को परमाणु की ताकत और उसकी संपन्नता के बारे में चर्चा की और मुल्क को परमाणु संपन्न देश होने के फायदे बताए। तब 1948 में ही भारत में परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन किया गया और होमी जहांगीर भाभा को इस कार्यक्रम का डायरेक्टर भी बना दिया गया।

Indian Scientist Suspecious Death: होमी जहांगीर भाभा की काबिलियत से अमेरिका अच्छी तरह वाकिफ था। और अमेरिका उस वक़्त बुरी तरह से चौंक गया था जब 1955 में एक परमाणु कार्यक्रम के सिलसिले में होमी जहांगीर भाभा ने यूनाइटेड नेशन यानी संयुक्त राष्ट्र की एक सभा की अध्यक्षता की और वहां अपने सपने के बारे में बताया। इस कार्यक्रम में करीब 73 देशों के डेढ़ हज़ार नुमाइंदे मौजूद थे।

भाभा की बातों से अमेरिका के भीतर बेचैनी बढ़ने लगी थी। इसी बीच 60 के दशक में चीन ने सबसे पहले तो भारत के साथ युद्ध करने के बाद उसे हराया और फिर एक परमाणु परिक्षण करके पूरी दुनिया को दहलाकर रख दिया। खासतौर पर अमेरिका को, क्योंकि अमेरिका और रूस के बाद अब चीन भी एक परमाणु संपन्न देश बन चुका था।

इसी बीच भारत में होमी जहांगीर भाभा ने अपने परमाणु कार्यक्रम को रफ्तार देनी शुरू कर दी थी। और ये बात अमेरिका जान चुका था। भारत सरकार भी होमी जहांगीर भाभा के कार्यक्रम को पूरा सहयोग करने लगी। और इसी बीच भारत ने राजस्थान में अपना पहला परमाणु पावर प्लांट लगाने के अंतरराष्ट्रीय समझौते पर दस्तखत भी कर दिए थे।

Homi Jahangir Bhabha Death: लेकिन होमी जहांगीर भाभा अपने काम में लगे रहे और 1963 में उन्होंने भारत को अमेरिका और सोवियत संघ के साथ साथ चीन के बेहद करीब पहुँचा दिया था। बस एक परमाणु परिक्षण करने की जरूरत थी। और उसकी भी तैयारी क़रीब करीब पूरी हो चुकी थी। इसी बीच 1964 के मई के महीने में जवाहर लाल नेहरा का निधन हो गया। इसने होमी जहांगीर भाभा के तेज रफ्तार कदमों को कुछ धीमा कर दिया...।

केंद्र में सरकार की कमान अब लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में आ गई। चीन की हार का सदमा पहले ही भारत की सरकार को गहरा लगा हुआ था। इसी बीच पाकिस्तान ने एक बार फिर हमला करके भारत की ताकत को आजमाने की हिमाकत कर डाली।

हिन्दुस्तान ने पाकिस्तान को जंग में जबरदस्त पटखनी दी। मगर उसके तमाम वैज्ञानिक कार्यक्रमों की रफ्तार धीमी पड़ गई। तभी होमी जहांगीर भाभा ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से मुलाकात की। और उन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रम के साथ साथ उसकी जरूरत और फायदे भी उनको बताए।

लाल बहादुर शास्त्री को पहले से ही अंदाजा था कि होमी भाभा किस कार्यक्रम के लिए इतनी शिद्दत से लगे हुए हैं। लिहाजा उन्होंने बिना एक पल गवाएं होमी जहांगीर भाभा को हरी झंडी दे दी।

बताया जाता है कि होमी जहांगीर भाभा को लाल बहादुर शास्त्री ने यहां तक कह दिया था कि वो जब चाहें तब यानी आधी रात के बाद भी बिना संकोच उनसे न सिर्फ बात कर सकते हैं बल्कि वो चाहें तो घर भी आ सकते हैं। होमी जहांगीर भाभा और लाल बहादुर शास्त्री के बारे में खबर अमेरिका तक पहुँच चुकी थी।

और अमेरिका जान चुका था कि लाल बहादुर शास्त्री कितने पक्के और दृढ़ निश्चय वाले प्रधानमंत्री हैं। और होमी भाभा से उनकी नजदीकी ने अमेरिका की नींद उड़ा दी थी। अमेरिका को अंदाजा हो गया था कि भारत बहुत जल्द परमाणु परिक्षण कर सकता है और अगर ऐसा हो गया तो भारत को आगे बढ़ने से रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा।

होमी जहांगीर भाभा की तैयारी और उनके आयोग की प्रगति वाकई ऐसी थी जिसका इशारा उन्होंने 1965 के नवंबर महीने में उस वक़्त कर दिया था जब ऑल इंडिया रेडियो के एक इंटरव्यू में उन्होंने ये बात कही थी कि भारत सिर्फ 18 महीने के भीतर ही दुनिया की परमाणु ताकत की लीग में शामिल हो सकता है। ये बात उन्होंने उस ठोस आधार पर कही थी जिसकी तैयारी का वो जायजा ले चुके थे। यानी भारत करीब करीब परमाणु परीक्षण की दहलीज तक पहुँच चुका था।

Father Of India’s Nuclear Programme: कहते हैं कि जनवरी 1966 के महीने की शुरुआत में ही होमी जहांगीर भाभा ने किसी बड़े कार्यक्रम को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से हरी झंडी ले ली थी।  और इसी बीच उन्हें एक इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसीज़ साइंटिफिक एडवाइजरी कमेटी का हिस्सा बनने के लिए विएना जाना था।

यानी ये बात अब हवा में तैरने लगी थी कि होमी जहांगीर भाभा अब पूरी तरह से फ्री हैंड होकर भारत में परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे हैं। और उसके बाद ही अचानक हिन्दुस्तान को एक ही महाने के भीतर और वो भी महज 13 दिनों के अंदर दो बड़े और तगड़े झटके लगे। 11 जनवरी को ताशकंद में बड़े ही रहस्यमयी हालात में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई। जबकि उनकी मौत के ठीक 13 दिन के बाद होमी जहांगीर भाभा एल्प्स की पहाड़ी में विमान दुर्घटना का शिकार हो गए।

24 जनवरी को मुंबई से एअर इंडिया की कंचनजंघा फ्लाइट ने उड़ान भरी। उसमें 11 क्रू मेंबर के साथ साथ 106 मुसाफिर थे। ये विमान सुबह 8.02 मिनट पर लंदन के लिए रवाना हुआ था। ये रास्ते में बेरूत और जेनेवा होते हुए लंदन पहुँचने वाला था। लेकिन विएना में उतने से पहले ये विमान इटली और फ्रांस की सीमा पर मौजूद एल्प्स के माउंटेन रेंज में मोंट ब्लांक के पास बर्फीली पहाड़ियों से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

Mystery Of Alps: इस दुर्घटना के बाद रेस्क्यू टीम जब तक मौके पर पहुँची तब तक विमान का नामो निशान खत्म हो चुका था। बात ये निकलकर सामने आई कि प्लेन का जला हुआ मलबा पूरी तरह से ग्लेशियर में धंस गया। मगर जहां तक विमान के टुकड़े बिखरे थे वहां विमान के सामान में मौजूद रोज मर्रा के इस्तेमाल की चीजें अखबार और कागजों के टुकड़े और चिट्टियां वगैराह ही पड़ी मिली थीं। इतना ही नहीं उस विमान का न तो आज तक ब्लैक बॉक्स मिला और न ही बडे हिस्से का मलबा ही मिल सका।

इसके बाद इस पूरे मामले में कई जांच तो हुईं लेकिन कोई भी अपने अंजाम तक नहीं पहुँच सकी। आखिर में फ्रांस की सरकार ने एक रिपोर्ट बनवाई जिसमें लिखा था कि बेरूत से उड़ान भरते समय ही इस विमान के कुछ उपकरणों ने काम करना बंद कर दिया था।

और उन्हीं उपकरणों में से एक था वो यंत्र जिससे VHFOR भी शामिल था, जिसे वैरी हाई फ्रिक्वेंसी ऑमिनी रेंज भी था। ये वो उपकरण है जिससे हवाई जहाज से जमीन की दूरी नापी जाती है। और रिपोर्ट के मुताबिक उस विमान का यही सबसे जरूरी उपकरण खराब बताया गया। और इसी को हादसे की सबसे बड़ी वजह। क्योंकि कंट्रोल रूम के मुताबिक पायलट ने अपनी ऊंचाई 19000 फीट बताई थी...यानी मोंट ब्लांक में पहाड़ियों से क़रीब 3000 फीट ऊपर ।

तब कंट्रोल रूम ने विमान की पोजिशन को क्लियर करते हुए पायलट को विमान उतारने को कहा। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि पायलट ने इस बात को समझने की भूल कर दी कि उसका विमान पहाड़ी को पार कर चुका है जबकि ऐसा नहीं हुआ था। तभी लैंडिंग के वक़्त एल्प्स की पहाड़ियों में विमान टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि ये थ्योरी भरोसे लायक तो नहीं थी, मगर इस पर भरोसा करने के सिवाय फिलहाल कोई चारा भी नहीं था।

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