मारपीट के मामले में इंसाफ़ को लग गए 27 साल! जब मारपीट हुई.. तब वकील थीं, 27 सालों में जज बन कर रिटायर भी हो गईं, तब जाकर मिला इंसाफ

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एक पुरानी अंग्रेजी कहावत है – जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनायड। यानी देर से हुआ इंसाफ, इंसाफ़ ना होने के बराबर है। दिल्ली में एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें पूरे 27 साल बाद एक अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष को एक महिला वकील से मारपीट का दोषी करार दिया है।

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सितम देखिए कि जब महिला वकील के साथ मारपीट हुई थी, तब वो नई-नई काम पर आई थी और अब जब अदालत ने उनके हक में फैसला सुनाया है, तो वो जिला एवं सत्र न्यायाधीश के तौर पर काम करने के बाद रिटायर भी हो गई हैं। अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजीव खोसला को मारपीट के मामले में दोषी ठहराया है और साथ ही कहा है कि पुलिस अक्सर कार्रवाई करने में "बहुत धीमी" होती है। जब वकीलों की बात आती है तो कार्रवाई भी हो जाती है, अन्यथा यह टेढ़ी खीर ही साबित होती है।

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शिकायतकर्ता सुजाता कोहली 1990 के दशक में तीस हजारी कोर्ट में वकील थीं, जब उनके साथ मारपीट की वारदात हुई थी। यह मामला मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के तीस हजारी कोर्ट में चल रहा था। मामले की सुनवाई में खोसला को आईपीसी की धारा 323 यानी जानबूझकर चोट पहुंचाना और 506 (i) यानी धमकी देने का गुनहगार करार दिया गया। अब इस मामले में 15 नवंबर को सज़ा पर बहस होगी।

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यह घटना 5 अगस्त 1994 को हुई थी, जबकि यह मामला 7 जुलाई 1995 को अदालत के सामने आया था। महिला वकील कोहली ने 1994 में अपनी शिकायत में कहा था कि दिल्ली बार एसोसिएशन तत्कालीन सचिव खोसला उन पर विभिन्न मुद्दों पर जुलूसों और प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए अक्सर दबाव डालते थे। जिसे वह मना कर देती थीं।

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5 अगस्त, 1994 को सुजाता कोहली को खोसला और उसके साथी वकीलों ने घेर लिया। कोहली की शिकायत के अनुसार, खोसला ने उसके बाल खींचे, उसे घसीटा, उसकी बाँहों को घुमाया, गालियाँ दीं और उसे धमकाया भी। इस सिलसिले में पुलिस ने 8 अगस्त 1994 को सब्जी मंडी थाने में मामला दर्ज किया था। जून 1995 में जांच पूरी हो गई थी।

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कोहली पुलिस जांच से संतुष्ट नहीं थी, इसलिए उन्होंने मामले में मुकदमा चलाने के लिए पहले ही एक निजी शिकायत भी की थी। हालांकि इस मामले में कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं थी।

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मेडिकल रिपोर्ट के ना होने के बारे में अदालत ने कहा कि, शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसके साथ केवल हाथापाई की गई और उसके बाल खींचे गए। इस प्रकार उसे केवल शारीरिक पीड़ा भी हुई। देरी पर कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि यह एक असाधारण मामला है, जहां आधे घंटे के भीतर हुई घटना के संबंध में, एक व्यक्ति से लगभग 10 वर्षों तक सिर्फ तर्क किए गए।

बचाव पक्ष ने इस मामले में सुजाता कोहली के बयानों में आए मामूली फर्क पर सवाल उठाए, लेकिन कोर्ट का कहना था कि दस सालों में इतना फ़र्क आना लाज़िमी है। इस पर सवाल अनुचित है। गुनहगार वकील खोसला ने यह तर्क भी दिया था कि कोहली ने पिछली दुश्मनी और महिला संगठनों के बीच सुर्खियों में आने की इच्छा की वजह से ये कहानी गढ़ी थी।

हालांकि, अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति के लिए इतनी बारीकी से कहानी बनाना असंभव है। बहरहाल, अब दस साल बाद इस मामले में क्या सज़ा होती है, ये देखनेवाली बात है।

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