Agnipath Scheme नुकसानदायक, इसे लाना ही था तो पहले केंद्रीय बलों में लागू करते : रि. मेजर जनरल

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Agnipath Scheme : अग्निपथ योजना को लेकर विपक्ष के भारत बंद (Bharat Bandh) के बीच रिटायर्ड मेजर जनरल का बड़ा बयान आया है। रक्षा विशेषज्ञ और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) पी के सहगल (PK Sehgal) ने सेना में नियुक्ति की नयी अल्पकालिक ‘‘अग्निपथ योजना’’ (Agnipath Scheme Protest) को सेना के लिए नुकसानदायक बताते हुए कहा कि अगर सरकार को यह योजना लाना ही था तो पहले इसे केंद्रीय बलों में लागू करना चाहिए था।

Rtd major general PK Sehgal : उन्होंने यह भी कहा कि इस योजना को देश में स्वीकार्यता नहीं मिल रही है, लिहाजा सरकार इसे तीन-चार महीने के लिए वापस ले और फिर सभी हितधारकों से परामर्श के बाद छोटे स्तर पर इसे लागू करे। इसके परिणाम देखने के बाद ही सरकार को इस बारे में आगे कोई फैसला लेना चाहिए।

Agnipath Scheme Latest News : पीटीआई-भाषा को रविवार को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने दावा किया यह योजना सुरक्षा की दृष्टि से ‘‘त्रासदी’’ है और इससे दुनिया की सबसे पेशेवर व बेहतरीन फौज ‘‘सेकेंड ग्रेड’’ यानी दोयम दर्जे की हो जाएगी। उन्होंने कहा ‘‘नयी योजना ही लानी थी तो इसे पहले केंद्रीय बलों में लागू करना चाहिए था।

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इसके बाद फौज के लिए विचार होना चाहिए था। पिछले ढाई-तीन साल से सेना में कोई भर्ती नहीं हुई। अब सरकार कह रही है कि वह अगले डेढ़ साल में 10 लाख लोगों को रोजगार देगी। डेढ़ साल के बाद चुनाव भी तो हैं। यह वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर किया गया है।’’

करीब 40 साल सेना में विभिन्न पदों पर सेवा दे चुके और 1962 से लेकर 1971 तक युद्ध में भागीदारी कर चुके जनरल सहगल ने ‘‘अग्निपथ योजना’’ की तारीफ करने वाले नेताओं से कहा कि ऐसा ही है तो उन्हें सबसे पहले अपने बच्चों व रिश्तेदारों को सेना में भेजने की घोषणा करनी चाहिए।

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उन्होंने कहा, ‘‘सुरक्षा की दृष्टि से यह एक बड़ी त्रासदी है। इस समय हिंदुस्तान की फौज दुनिया में सबसे पेशेवर और बेहतरीन फौज है। जो आज बेहतरीन है, वह इस योजना के माध्यम से ‘सेकेंड ग्रेड’ हो जाएगी।’’

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पिछले 75 सालों में हुए युद्धों के दौरान भारतीय फौज के पराक्रम और उनकी विभिन्न उपलब्धियों को गिनाते हुए सहगल ने इस योजना की खामियां बताईं। उन्होंने कहा कि इसकी घोषणा से पहले सरकार को सभी हितधारकों को विश्वास में लेना चाहिए था, विपक्ष से चर्चा करनी चाहिए थी, स्कूलों कॉलेजों व अन्य संस्थानों में जाना चाहिए था और युवाओं से मश्विरा करना था लेकिन ‘‘दुर्भाग्य’’ है कि ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र में बड़ा लाजमी है कि आप ऐसी योजना लाएं, जिसकी स्वीकार्यता हो। नहीं तो परिणाम नागरिकता संशोधन कानून या फिर कृषि सुधार कानूनों जैसा होता है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति बहुत जरूरी है, क्योंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा है।’’

सहगल ने कहा कि इस योजना के मुताबिक, कुल नियुक्त सैनिकों में से चार साल बाद सिर्फ 25 प्रतिशत ही आगे नौकरी में बने रह सकेंगे और शेष 75 प्रतिशत को नए सिरे से अपने करियर की शुरुआत करनी होगी।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे सैनिकों को ना तो अपनी वरिष्ठता का फायदा मिलेगा और ना ही पेंशन का फायदा मिलेगा।’’ उन्होंने कहा कि अब जब देश भर में इस योजना का विरोध होने लगा है तो सरकार की ओर से तमाम प्रकार के ‘‘आश्वासनों को पिटारा’’ खोला जा रहा है।

सहगल ने इस योजना की घोषणा के पीछे सरकार के दो मकसद बताए। उनके मुताबिक, सेना के आधुनिकीकरण के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं इसलिए वेतन और पेंशन के व्यय को कम करने की कोशिश के तहत उसने यह कदम उठाया है जबकि उसका दूसरा मकसद बेरोजगारी को लेकर युवाओं की नाराजगी की काट ढूंढना है।

उन्होंने कहा कि सेना में सुधार के लिए गठित शेकटकर समिति ने रक्षा विभाग के सिविल कर्मचारियों को 60 साल तक की सेवा के बाद पेंशन की आवश्यकता नहीं जताई थी लेकिन सरकार उनको छूना नहीं चाहती है, क्योंकि इससे ‘‘बवाल’’ मच जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘नयी योजना ही लानी थी तो इसे पहले केंद्रीय बलों में लागू करना था। इसके बाद फौज के लिए विचार होना चाहिए था। पिछले ढाई-तीन साल से सेना में कोई भर्ती नहीं हुई। अब सरकार कह रही है कि वह अगले डेढ़ साल में 10 लाख लोगों को रोजगार देगी। डेढ़ साल के बाद चुनाव भी तो हैं। यह वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर किया गया है।’’

ज्ञात हो कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी विभागों और मंत्रालयों में रिक्त पड़े पदों की समीक्षा के बाद अगले डेढ़ साल में 10 लाख लोगों की भर्ती के निर्देश दिए थे।

सहगल ने चिंता जताते हुए कहा कि भारत के दो प्रमुख दुश्मन देश हैं, दोनों परमाणु संपन्न हैं तथा वे हमेशा भारत को कमजोर करने की ताक में रहते हैं, ऐसे में सरकार ऐसी योजना क्यों लेकर आ रही है, जिससे सेना कमजोर हो।

उन्होंने कहा, ‘‘जो इस योजना के फायदे गिना रहे हैं, मैं उन सबसे एक बात पूछना चाहूंगा। क्या उनमें से एक भी चाहे वह रक्षा मंत्री हों या फिर सेनाओं के प्रमुख हों या फिर कोई वरिष्ठ अधिकारी या नेता व मंत्री, क्या उनमें से एक भी अपने बेटे को या अपनी बिटिया को इसमें दाखिल करेगा? या फिर अपने भाई-बंधु या रिश्तेदारों को भेजेगा? अगर उनका जवाब हां है तो निश्चित तौर पर मैं मान लूंगा कि इस योजना में दम है। नहीं तो बौद्धिक विमर्श यही कहता है कि वे युवाओं को गुमराह कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों से स्पष्ट है कि इस योजना की स्वीकार्यता नहीं है। सहगल ने कहा, ‘‘ऐसे में जबरदस्ती इसे लागू करने से बेहतर है कि इसे तीन-चार महीने के लिए स्थगित किया जाए। इसके बाद सरकार व्यापक पैमाने पर सभी हितधारकों से इस पर चर्चा करे तथा सभी की सहमति के बाद वह इसे छोटे स्तर पर इसे लागू करे। फिर इसके फायदे और नुकसान देखकर योजना में बदलाव करे।’’

उन्होंने कहा कि जिस फौज में एक हेलमेट या फिर नयी वर्दी को लागू करने से पहले भी ट्रायल किया जाता है, उस सेना में सरकार सीधे इस नयी योजना को लागू करने जा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार इतना बड़ा ‘‘क्रांतिकारी’’ कदम उठा रही है, वह भी बिना किसी जांच-परख के। उन्होंने इसे पूरी तरह से ‘‘अतार्किक’’ करार दिया।

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