छत्तीसगढ़ का चर्चित अभिषेक मिश्रा हत्याकांड: हत्या के बाद लाश के ऊपर उगा दी थी गोभी! इस वजह से आरोपियों को बरी किया कोर्ट ने

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रघुनंदन पंडा के साथ चिराग गोठी की रिपोर्ट

Chhattisgarh Abhishek Mishra Murder Case: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के भिलाई में शंकराचार्य इंजीनियरिंग कालेज के चेयरमैन आई.पी मिश्रा के इकलौते बेटे अभिषेक मिश्रा की हत्या के दो आरोपियों को उच्च न्यायालय ने दोष मुक्त कर दिया है। दोनों आरोपी विकास जैन और अजीत सिंह को दुर्ग जिला अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। एक अन्य आरोपी विकास जैन की पत्नी किम्सी जैन को जिला अदालत ने पहले ही दोष मुक्त कर दिया था।

2015 में हुआ था हत्याकांड 

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10 नवंबर 2015 की शाम शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज के चेयरमेन आईपी मिश्रा के इकलौते बेटे अभिषेक मिश्रा का अपहरण कर हत्या कर दी गयी थी। पुलिस ने देशभर के एक करोड़ मोबाइल फोन की डिटेल निकालने के बाद भिलाई में रहने वाले सेक्टर 10 निवासी विकास जैन को गिरफ्तार किया था। विकास की पत्नी किम्सी के चाचा अजीत सिंह के स्मृति नगर निवास के बगीचे में अभिषेक की सड़ी गली लाश बरामद हुई थी।

अजीत सिंह के घर में लाश किसने दबाई?

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मृतक अभिषेक 9 नवंबर 2015 को घर से निकला था। 10 नवंबर 2015 को दुर्ग के जेवरा चौकी में अभिषेक की गुमशुदगी दर्ज करवाई गई थी। 22 दिसंबर 2015 को पुलिस ने संदेह के आधार पर विकास जैन और उसके चाचा ससुर अजीत सिंह को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी। इसके अगले दिन अजीत सिंह के स्मृति नगर स्थित बगीचे में अभिषेक की सड़ी गली लाश मिली थी।

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क्यों जिला अदालत ने दोषी करार दिया और हाईकोर्ट ने बरी किया?

मामले में पुलिस ने जिन्हें आरोपी बनाया उनमें से विकास जैन और अजीत सिंह को जिला अदालत ने सजा 10 मई 2021 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। विकास की पत्नी किम्सी को दोषमुक्त कर दिया था। फैसले को दोनों आरोपियों ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई। खास बात यह कि मुख्य आरोपी विकास जैन ने खुद पैरवी खुद करते हुए तर्क रखें।

अधिवक्ता अनिल तावड़कर और उमा भारती साहू ने भी आरोपियों के पक्ष में पैरवी की। अधिवक्ताओं ने कहा कि ये पूरा मामला परिस्थिति जन्य साक्ष्य पर टिका हुआ था। दूसरी और अभियोजन पक्ष सुनवाई के दौरान घटना की कड़ियों को जोड़ नहीं पाया, जिसका लाभ आरोपियों को मिला। इसके साथ ही अभिषेक मिश्रा के पिता आईपी मिश्रा ने किम्सी जैन की रिहाई को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। किम्सी के मामले में उच्च न्यायालय ने जिला न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए आईपी मिश्रा का आवेदन खारिज कर दिया था।

क्या कहा कोर्ट ने अपने आदेश में?

अभिषेक मिश्रा हत्याकांड में पूरे मामले में विवेचना की लापरवाही सामने आई है। हाई कोर्ट में पुलिस और शासन हत्या का उद्देश्य ही साबित नहीं कर सका। इसका लाभ आरोपियों को मिल गया। इस हत्याकांड का एक भी चश्मदीद गवाह नहीं था। साथ ही प्रार्थी की ओर से सिर्फ गुमशुदगी दर्ज करवाई गई थी। पुलिस ने जांच के दौरान हत्या का मामला तो दर्ज किया पर ना तो गवाह और ना ही साक्ष्य जुटा पाई। जिस दिन हत्या की बात कही जा रही है, उस दिन 2015 को धनतेरस था। पूरे क्षेत्र में भीड़ भी थी। पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए कोर्ट को बताया गया कि अभिषेक मिश्रा को किम्सी ने चौहान टाउन स्थित घर पर 9 नवंबर 2015 को बुलाया। घर पहुंचने के बाद किम्सी और अभिषेक के बीच विवाद हुआ। वहां पहले से मौजूद विकास और अजीत सिंह ने अभिषेक के सिर पर पीछे से रॉड से वार किया जिससे वह कमरे में गिर गया। इसके बाद अभिषेक को अजीत सिंह स्मृति नगर में अपने किराए के मकान में ले गया और पहले से किए गए 6 फीट के गहरे गड्ढे में दफना दिया। कोर्ट को बताया गया कि चौहान टाउन स्थित घर और स्मृति नगर भिलाई की दूरी 3 किलोमीटर से ज्यादा है। इसके बाद भी पूरे केस में कोई चश्मदीद नहीं मिला।

लाश के ऊपर फूलगोभी की सब्जियां, अदालत ने 'सबूतों' को किया खारिज

आरोपियों के वकील ने तर्क दिया कि पुलिस की जांच में कोई ठोस सबूत नहीं है। पुलिस के मुताबिक, लाश के ऊपर फूलगोभी की सब्जियां उगा दी थी। पुलिस ने हाथ का कड़ा, अंगूठी और लाकेट देखकर अभिषेक की लाश को पहचाना था। साथ ही यह भी कहा गया था कि शव से बदबू ना आए इसलिए 100 किलो से ज्यादा नमक डाला गया था। अदालत ने माना कि पुलिस के पास कॉल डिटेल्स के अलावा कोई सबूत नहीं है। अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ अपराध जोड़ने के लिए कोई अन्य कानूनी साक्ष्य पेश नहीं किया है।

घटना से लगभग 28 दिन पहले किम्सी ने 12 अक्टूबर 2015 को धनवंतरी अस्पताल नेहरू नगर भिलाई में सिजेरियन ऑपरेशन से एक बेटे को जन्म दिया था। उसे 15 अक्टूबर 2015 को अस्पताल से छुट्टी मिली थी। घटना की तारीख से 1 दिन पहले जब उसके बेटे की तबीयत ठीक नहीं थी तो उसे लेकर धनवंतरी अस्पताल गई थी। यह मानना बहुत मुश्किल है कि 28 दिन पहले जिस महिला ने सिजेरियन ऑपरेशन से बच्चे को जन्म दिया, वह इस तरह के हत्याकांड में शामिल हो सकती है और साजिश रच सकती है। आरोपी विकास जैन ने मामले की पैरवी करते हुए बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई इंजरी नहीं है। रॉड से सर में वार की बात कही जा रही है पर कोई चोट नहीं है। अभियोजन पक्ष हत्या का मकसद साबित नहीं कर सका, जिसके चलते आरोपियों को अदालत ने दोषमुक्त कर दिया।

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