निर्भया कांड : कुछ कानून बदले, कुछ नये आए, वजूद में आया था POCSO एक्ट

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परवेज सागर के साथ चिराग गोठी की रिपोर्ट

NIRBHAYA CASE : 16 दिसंबर 2012 की घिनौनी वारदात ने देश में रेप की परिभाषा पूरी तरह से बदल कर रख दिया। दरअसल, साल 2012 तक भारत में कानून के मुताबिक अगर किसी भी पीड़िता के साथ सैक्सुएल पेनिट्रेशन नहीं हुआ हो, तो उसे रेप नहीं माना जाता था, लेकिन निर्भयाकांड के बाद हालात बदल गए और कानून भी। नए कानून के अनुसार किसी महिला को गलत तरीके छूना, उससे छेड़छाड़ करना और अन्य किसी भी तरीके से यौन शोषण करना भी रेप में शामिल कर दिया गया। साथ ही एक नया कानून भी वजूद में आया, जिसका नाम है पॉक्सो एक्ट।

पॉक्सो एक्ट क्या है?

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कितना असरदार है ये एक्ट ?

प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून में सबसे अहम बात ये है कि अगर किसी शख्स के खिलाफ पॉक्सो एक्ट लगाया जाता है, तो उसकी गिरफ्तारी तुरंत होती है। इस एक्ट के तहत गिरफ्तार गए आरोपी को जमानत भी नहीं मिलती है। इस एक्ट में पीड़ित बच्ची अथवा बच्चे को प्रोटेक्शन दिए जाने का भी प्रावधान हैं।

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देश की सबसे बड़ी अदालत ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान साफ कर दिया कि किसी नाबालिग को कपड़ों के ऊपर से छूना या फिर उसके शरीर को छूना, दोनों ही यौन शोषण के तहत आता है, इसलिए ऐसे मामलों में भी आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई सुनिश्चित है। पॉक्सो एक्ट से जुड़े मामलों की सुनवाई फास्ट-ट्रैक कोर्ट में किए जाने का प्रावधान किया गया ताकि कम से कम समय में पीड़ित पक्ष को कानूनी मदद मिले और उसे इंसाफ मिलने में देरी ना हो।

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जुवेनाइल जस्टिस एक्ट

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 181 और 182 में बदलाव के अलावा 22 दिसंबर 2015 को राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हो गया था, जिसके तहत प्रावधान किया गया कि 16 साल या उससे अधिक उम्र के किशोर को जघन्य अपराध करने पर एक वयस्क मानकर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए और उस पर मुकदमा चलाया जाए।

IPC की धाराओं में बदलाव

निर्भया कांड के बाद कानून में बदलाव की ज़रूरत महसूस हुई। लिहाजा 3 फरवरी 2013 को क्रिमिनल लॉ अम्नेडमेंट ऑर्डिनेंस आया, जिसके तहत भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 181 और 182 में बदलाव किए गए। इनमें रेप से जुड़े नियमों को सख्त किया गया। इस संशोधन के तहत ऐसा प्रावधान भी किया गया कि बलात्कारी को फांसी की सजा मिल सके।

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