अगवा बेटे की तलाश में पिता बने जासूस : लेटर भेज किडनैपर ने मांगी फिरौती, पेड़ पर टांगने थे पैसे

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UP Agra Crime Story : किडनैपिंग की ये रियल कहानी किसी सस्पेंस थ्रिलर (Suspense Thriller) से कम नहीं है. इस जुर्म को अंजाम देने वाले इतने शातिर थे कि पुलिस को भी चकमा दे दिया. ऐसा भी वक्त आया कि पुलिस ने हाथ खड़े कर लिए. लेकिन उस पिता ने हार नहीं मानी जिनका बेटा किडनैप हुआ था. 9 साल के बेटे का अपहरण हो जाए. कुछ पता ही नहीं चले. तमाम कोशिशों के बाद भी ना सुराग मिला. और ना पुलिस ही कोई प्रयास कर पा रही थी. तब वही पिता बन गया जासूस. फिर ऐसा चक्रव्यूह बनाया कि किडनैपर खुद उनके बिछाए जाल में आकर फंस गए. लेकिन अफसोस की वो अपने बेटे को बचा नहीं सके. आज क्राइम स्टोरी में एक किडनैपिंग, जासूसी और कत्ल की अजीब कहानी. 

Murder Mystery Story : यूपी का आगरा शहर. यहां के इरादतनगर में हज्जुपुरा इलाके में एक किराने की दुकान है. इस दुकान को गब्बर सिंह चलाते हैं. जैसा नाम वैसा काम भी. सच बात को कभी छुपाते नहीं. जो गलत करता तो उसका जवाब जरूर देते. लेकिन कभी कोई बड़ा विवाद भी नहीं हुआ. हाल के दिनों में तो और भी कोई विवाद नहीं हुआ था. परिवार में भी सबकुछ ठीक था. उस दिन तारीख थी 23 जनवरी 2022. शाम का वक्त हुआ था. गब्बर सिंह का 9 साल का बेटा कुलदीप घर के बार खेलने गया था. लेकिन देर शाम तक नहीं लौटा. काफी खोजबीन हुई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

हर जगह तलाशी हुई. आस पड़ोस और दूर दराज के रिश्तेदार तक. मगर कोई सुराग नहीं. आखिरकार अगले दिन यानी 24 जनवरी को इरादतनगर थाने में कुलदीप की गुमशुदगी की एफआईआर दर्ज कराई गई. पुलिस ने खोजबीन का दावा तो किया. लेकिन मिला कुछ नहीं. ना सुराग. ना किडनैपिंग की वजह. पुलिस ने पूछा कि कोई फिरौती की कॉल आई. पिता गब्बर सिंह ने कहा कि नहीं. कोई फिरौती कॉल नहीं आई. फिर पुलिस ने पूछा कि किसी से कोई दुश्मनी. बोले, नहीं कोई दुश्मनी नहीं. ऐसा कोई विवाद भी नहीं है कि कोई बच्चे को अगवा कर ले. पुलिस ने जाना कि कहीं बच्चे से किसी का लड़ाई झगड़ा हुआ है. पर ऐसा भी नहीं था. इस तरह एक-एक दिन करके वक्त निकलता गया. पर कुलदीप नहीं मिला. ना ही कोई फिरौती की कोई कॉल आई.

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ऐसे में सवाल ये था कि कुलदीप को किडनैप किसने किया होगा. कोई दुश्मनी भी नहीं थी तो. ऐसे में पुलिस ने तो यही मान लिया कि किसी बात से नाराज होकर कुलदीप खुद ही कहीं चला गया होगा. क्योंकि अपहरण होता तो फिरौती के लिए कॉल जरूर आती. इस तरह एक-एक करके कई दिन बीत गए. पुलिस शांत हो गई. पर वो पिता कहां चुप रहने वाला था. उनकी बेचैनी तो दिनोंदिन बढ़ती गई. रात की नींद भी उड़ गई. जाहिर है एक पिता के लिए उसके बच्चे से ज्यादा जरूरी क्या हो सकता है.

उसी दौरान 2022 वाले यूपी के चुनाव भी आ गए. पुलिस उसी में ज्यादा व्यस्त हो गई. इधर, गब्बर सिंह और इनके आसपास के लोग उनका पूरा साथ दे रहे थे. उस इलाके के लोगों ने नाराजगी जताते हुए चुनाव बहिष्कार का ही ऐलान कर दिया. पुलिस और दूसरे अफसरों ने काफी समझाया. बच्चे की खोजबीन का भी वादा किया. पर नतीजा वही रहा. कुछ नहीं मिला.

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बेटा नहीं मिला तो खुद ही ऐसे जासूस बन गए थे गब्बर सिंह

Crime Ki kahani : अब हर तरीके से गब्बर सिंह अपने बच्चे को खोजने में नाकाम रहे. अब एक हफ्ता निकल भी चुका था. कुलदीप को गायब हुए. इसलिए उन्होंने खुद ही जांच करने का फैसला किया. खुद ही बच्चे को तलाशने के लिए जासूस बन गए. अपने एक करीबी रिश्तेदार की मदद से बेटे कुलदीप की खोजबीन में जुट गए और एक नई तरकीब निकाली. आसपास के इलाके में खुद ही पोस्टर लगवाए. सोशल मीडिया पर पोस्टर पोस्ट किया. उसमें कुलदीप की फोटो लगाने के साथ लिखा कि अगवा हुए इस बच्चे का सुराग देने वाले को 5 लाख रुपये का इनाम मिलेगा. अब ये पोस्टर आसपास के इलाके में पहुंचा तो उसका नतीजा भी निकला.

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...घर में आया एक खत, मांगी गई 35 लाख की फिरौती

 गब्बर सिंह के घर पर अचानक एक दिन रहस्यमयी खत मिलता है. उस खत को पढ़ने पर गब्बर सिंह चौंक गए. उसमें लिखा था कि अगर तुम  अपने बेटे को जिंदा चाहते हो तो 35 लाख रुपये तैयार कर लो. ये लेटर 5 फरवरी 2022 को मिला था. यानी अपहरण होने के करीब 13 बाद. इस लेटर में एक खास जगह का जिक्र करते हुए लिखा था कि वहां पर शीशम का पेड़ है. उसी पेड़ पर पैसों से भरा बैग लटका देना.

अब ये लेटर आने के बाद गब्बर सिंह ये बात तो समझ गए कि उनका मैसेज किडनैपर्स तक पहुंच गया है. लेकिन वो कौन हैं. बेटे के साथ क्या किया. अभी वो कहां है. ऐसा कुछ नहीं पता चला. लेकिन उस लेटर के बाद आसपास के लोग उनके साथ मिलकर और सरगर्मी से तलाश में जुट गए. उसी दौरान हुई बैठक में गब्बर सिंह ने कहा कि 35 लाख रुपये तो बड़ा मुश्किल है. और सबसे बड़ी बात ये है कि मेरा बेटा उन लोगों के पास ही है. ये कैसे मान लें. कोई फोटो या वीडियो मिले तो समझ लूं. भरोसा भी करूं. लेकिन वैसा कुछ नहीं है.

गब्बर ने कहा, कैसे यकीन करूं तो किडनैपर्स ने कुलदीप की कब्र से टोपी निकालकर दी

इसके बाद 9 फरवरी को दूसरा लेटर मिला. उस लेटर में फिरौती की रकम 25 लाख कर दी गई थी. और साथ में सर्दियों में जिस टोपी को पहनकर कुलदीप निकला था वही टोपी भी फेंकी गई थी. लेकिन ये लेटर किसने और कब फेंका, कुछ पता नहीं चला. मेन गेट पर तमाम पहरेदारी के बाद भी कुछ पता नहीं चला. ना ही उस इलाके में कोई नया संदिग्ध दिखाई दिया. इससे उम्मीदें तो कम हो रहीं थीं. लेकिन एक यकीन बढ़ रहा था कि किडनैपर जो कोई भी हो वो हम पर नजर जरूर रख रहा है. तभी उसने फिरौती की रकम कम कर दी. और बच्चे की टोपी भी सबूत के तौर पर दे दी.

अब गब्बर सिंह ये समझ गए कि कुलदीप को किडनैप करने वाला जरूर मुझे और मेरे परिवार को अच्छे से जानता है. हो सकता है कि मेरे साथ रोज बच्चे की तलाश में शामिल भी होता हो. लेकिन वो कौन हो सकता है. क्योंकि जितने लोगों से वो बात करते थे उनमें से कोई शक के दायरे में नहीं था. अब इसी बात का पता लगाने में जुटे थे. तभी 11 फरवरी को फिर से एक लेटर मिला. ये तीसरा लेटर था. इसमें साफ लिखा था कि अगर जल्दी पैसे उसी जगह पर शीशम के पेड़ पर नहीं लटकाए तो बेटा जिंदा नहीं मिलेगा.

3 लेटर मिले, लेकिन बेटा कुलदीप नहीं, पर मिला ये बड़ा सुराग

इस तरह गब्बर सिंह के घर पर 3 लेटर मिल चुके थे. लेटर में फिरौती की रकम बदली गई. बच्चे की टोपी दी गई. पर एक खास और अलग बात थी. वो थी फिरौती की रकम देने की जगह. वो तीनों लेटर में एक ही जगह रखी गई. वो जगह थी कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव सरैंधी का पेट्रोल पंप. उस पेट्रोल पंप से कुछ दूरी पर सुनसान जगह पर एक शीशम का पेड़ था. अब गब्बर सिंह ये पता लगाने लगे कि आखिर जगनेर के पास सरैंधी गांव से हमारे गांव में रहने वाले किसी का कोई नाता है क्या.

या फिर सरैंधी के आसपास के गांव का ही कोई मेरे आसपास रहने वाला हो. इस पता लगाने के लिए वो सरैंधी गांव पहुंचे. वहां जाकर पूछने लगे कि क्या कोई यहां का रहने वाला हज्जुपुरा यानी मेरे गांव में रहता है क्या. काफी खोजबीन के बाद एक नाम मिला. वो नाम था आशु उर्फ कालिया का एक रिलेटिव सरैंधी गांव में रहता है. आशु वो शख्स है जो गब्बर सिंह के घर के ठीक पास में रहता था. अब गब्बर सिंह पता लगाते हुए आशु के उस रिश्तेदार के पास पहुंचे. पता लगा कि वो किराए पर गाड़ी चलाता है. इसलिए उससे गाड़ी बुकिंग के बहाने मुलाकात की.

जब गाड़ी बुक कराने की बात कही तो उसने मना कर दिया. लेकिन उसके हावभाव से लगा कि वो कुछ परेशान है. उन्हें देखकर. इसके बाद गब्बर सिंह दूसरी किराए की गाड़ी लेकर ऑटो स्टैंड की तरफ जाने लगे. ये देखकर आशु का रिश्तेदार शांत हुआ. लेकिन गब्बर सिंह कुछ दूर जाने के बाद चुपचाप फिर से लौट आए. जहां आशु का रिश्तेदार खड़ा था उसी के पास वो भी अपना चेहरा छुपाकर तैनात हो गए. तब उन्होंने उसे फोन पर बात करते हुए सुना. वो फोन पर कह रहा था कि अभी कुछ लोग मेरे पास आए थे. वो लोग कुछ जानकारी पता कर रहे थे. लेकिन मैंने कोई बात नहीं की.

ये बातें सुनकर गब्बर सिंह समझ गए कि उनके बेटे कुलदीप के अपहरण में आशु का हाथ जरूर है. अब ये पूरी बात गब्बर सिंह ने पुलिस को बताई. क्योंकि पुलिस ही उससे अच्छे से पूछताछ कर सकती थी. इसके बाद पुलिस ने भी आशु पर शक जताते हुए उसे हिरासत में ले लिया. इसके बाद पूछताछ की तो पूरी घटना का खुलासा हो गया.

असल में एक रंजिश को लेकर 3 लोगों ने मिलकर गब्बर सिंह से बदला लेने के लिए उनके बेटे कुलदीप को अगवा किया था. इसके बाद उसी दिन उसकी हत्या कर दी थी. इस केस में पुलिस ने मुकेश, आशु और कन्हैया को गिरफ्तार किया. असल में मुकेश और आशु की मामूली रंजिश गब्बर सिंह से थी. इन लोगों ने आशु को साथ मिलाकर कुलदीप को अगवा किया फिर मार डाला था.

इस वजह से गब्बर सिंह से बदला लेने के लिए बेटे का किया था मर्डर

Crime ki Kahani : पुलिस की जांच में पता चला कि मुकेश नामक आरोपी पहले गब्बर सिंह के मकान में किराएदार था. बात करीब 2 साल पहले की है. उस समय मुकेश की बहन की शादी तय हुई थी. कहा जाता है कि जहां शादी तय हुई थी वहां के लोगों को गब्बर सिंह ने कोई ऐसी बात बता दी थी जिससे वो रिश्ता टूट गया था. इसी बात से मुकेश नाराज था. कुछ समय बाद मुकेश की बहन ने शादी टूटने से आत्महत्या कर ली थी. इसी बात को लेकर मुकेश मन में ही गब्बर सिंह अपना दुश्मन मानने लगा था. वो उसे बड़ा सबक सिखाना चाहता था. लेकिन समय का इंतजार करता रहा. मकान छोड़कर दूसरे मकान में शिफ्ट हो गया. लेकिन कभी इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि वो गब्बर सिंह को दुश्मन मानता है.

वहीं, दूसरा आरोपी कन्हैया की भी गब्बर सिंह से दुश्मनी थी. कुछ साल पहले गांव में चोरी करते हुए वो पकड़ा गया था. उसके पकड़े जाने पर गब्बर सिंह ने लोगों से कन्हैया की जूतों से पिटाई कराई थी. तब से वो दुश्मन मानता था. पर अकेला कुछ नहीं कर पाता था. लेकिन बातों ही बातों में जब उसकी बात मुकेश से हुई तो दोनों ने मिलकर गब्बर सिंह से बदला लेने की ठान लिया. फिर इन लोगों ने आशु को भी अपने साथ मिला लिया. जिसका गब्बर सिंह से कोई लेना देना नहीं था. लेकिन तीनों आरोपी गब्बर सिंह के पड़ोसी थी. कुलदीप के गायब होने पर तीनों खोजबीन भी करते थे. मुकेश और आशु तो खासतौर पर अक्सर साथ ही रहते थे. इसीलिए इन्हें हर बात की जानकारी मिल जाती थी.

लेकिन लेटर कैसे घर में पहुंचाया गया. तो पता चला कि गब्बर सिंह के घर के पास में ही कन्हैया का मकान है. कन्हैया का घर और गब्बर सिंह की दुकान दोनों एक दूसरे से सटे हुए थे. जबकि आशु का घर कन्हैया के घर के सामने ही था. मुकेश इसी कन्हैया के घर में रहता था. इसीलिए दोनों आपस में बात कर लेते थे. इसके साथ ही कन्हैया की घर की दीवार की रोशनदान गब्बर सिंह के घर के खुले एरिया से जुड़ी हुई थी. इसलिए रात के वक्त चुपके से कन्हैया के घर की रोशनदान से ये लेटर फेंक देते थे. इसलिए पुलिस और गब्बर सिंह के परिवार के लोग घर के बार चौकीदारी करते रह जाते थे और लेटर आसानी से फेंक दिया जाता था.

इस तरह संदिग्ध भी नहीं मिलता था. इन तीनों आरोपियों ने ये भी बताया कि जब गांव में गब्बर सिंह ने पहला लेटर मिलने के बाद कहा था कि कैसे मान लें कि फिरौती असली किडनैपर मांग रहे हैं. इसीलिए हत्या के बाद जहां कुलदीप के शव को गाड़ा था वहां की मिट्टी खोदकर उसकी टोपी निकाल लाए थे. तीनों आरोपियों ने बताया कि 23 जनवरी को कुलदीप को अगवा करने के बाद गांव से दूर जंगल इलाके में ले गए थे. वहां पर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी.

इसके बाद गड्ढा खोदकर उसी में शव को दफना दिया था. जिसे बाद में पुलिस ने उनकी निशानदेही से लाश को बरामद भी कर लिया था. भले ही आखिर में पुलिस ने इस केस को सुलझाने का दावा किया लेकिन एक पिता के लिए उसका बेटा हमेशा के लिए मौत के आगोश में समा चुका था.

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