नहाने का वीडियो बनाकर ठेकेदार करता रहा ब्लैकमेल और रेप, रूह कंपाने वाला किस्सा

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सांकेतिक तस्वीर
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Kanpur Crime: दस साल पहले एक बेरहम खूनी कहानी सामने आई थी। वो तारीख थी 27 मई, दिन था मंगलवार और साल था 2014। ये वो कहानी थी जिसने हर छोटे बड़े अमीर गरीब हरेक को झकझोरकर रख दिया था। तब दो मासूम और नाबालिग लड़कियों को आम के पेड़ पर मौत के बेरहम पंजों ने दबोच लिया था। वक्त बदला, तारीख बदली, साल बदला और दिन भी बदला और पेड़ भी बदल गया लेकिन उत्तर प्रदेश में हालात नहीं बदले। इस बार बदायूं की जगह ली है कानपुर ने। बदली हुई तारीख है 28 फरवरी और बदला हुआ साल है 2024 और इसके साथ बदला हुआ पेड़ है बेर का। 

दो लाशों का बेरहम इत्तेफाक

दस साल पहले बदायूं के उस किस्से को सुनकर उत्तर प्रदेश में संतरी से लेकर मंत्री तक हर कोई हिलकर रह गया था। खेत तब भी था...और खेत इस बार भी है... पेड़ तब भी था और पेड़ अब भी है, बस फर्क इतना है कि उस समय वो एक आम का पेड़ था और इस बार बेर का पेड़ है। लाशें तब भी दो ही थीं...और बेरहम इत्तेफाक, लाशें अब भी दो ही हैं। और दोनों ही नाबालिग, वो भी दो बहनें थीं इस बार भी दो ही बहनों को बेरी की डाली पर दुपट्टे से लाश बनकर झूलते हुए सारे जमाने ने देखा है। 

बेर के पेड़ से झूलती दिखी दो लाशें

बुधवार की रात कानपुर पुलिस को इत्तेला मिली थी कि घाटमपुर कोतवाली इलाके में बरौली गांव के पास एक ईंट के भट्टे के नजदीक बेर के पेड़ पर दुपट्टे से झूलती दो लाशें दिखाई पड़ी हैं। इस खबर को सुनते ही पुलिस भी हैरत में पड़ गई और उसे बदाऊं में दस साल पहले हुई दो नाबालिग लड़कियों की हत्या का वो किस्सा याद आ गया जिसमें लाशों को पेड़ों से लटका दिया गया था और उसके बाद जो बवाल हुआ था तो दुनिया भर का मीडिया बदायूं के उस पेड़ के इर्द गिर्द जाकर खड़ा हो गया था। लिहाजा इस बार ऐसा कुछ न हो और हालात बेकाबू न होने पायें इसी ख्याल से पुलिस तेजी से मौके पर पहुँची। साथ में फॉरेंसिक टीम भी थी और वीडियोग्राफी करने वाले भी साथ गए थे। 

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गले में दपट्टे का फंदा 

मौके पर पहुँची पुलिस ने देखा कि गेहूं के खेत में एक बेरी के पेड़ की एक शाख पर दो नाबालिग लड़कियों की लाशें लटकी हुई थीं। दोनों के गले में दपट्टे का फंदा था। और दोनों के बीच बस चंद फुट का फासला था। पुलिस के लिए ये सब कुछ हैरान करने वाला था। पुलिस ने मौके की वीडियोग्राफी करते हुए दोनों नाबालिग लड़कियों के शवों को पेड़ से उतारा। जल्दी ही दोनों बच्चियों की पहचान भी पुख्ता हो गई। लेकिन इसके साथ जो सच पुलिस को पता चला तो उसके होश उड़ गए। 

ठेकेदार पर रेप करने का आरोप

पुलिस को जो पता चला उसके मुताबिक दोनों बच्चियां अपने माता पिता के साथ इसी भट्टे के पास बने मकान में रहती थीं। बच्चियों के पिता ईंट के भट्टे पर ही मजदूरी का काम करते थे। बच्चियों की उम्र 16 साल और 14 साल थी। ये बात खुली है कि ईंट के भट्टे पर रहने वाले मजदूर और उनके परिवार के लोग खुले में ही बने बाथरूम का इस्तेमाल करते थे। ऐसा बाथरूम जो कि बस आड़ के नाम पर ईंट की दीवार होती है जिस पर न तो छत और न ही दरवाजा लगा होता है। इल्जाम है कि ईंट के ठेकेदार ने एक रोज नहाते समय दोनों बच्चियों के वीडियो बना लिए। और उसके बाद उसी वीडियो को दिखाकर वो बच्चियों को डराने और धमकाने लगा। बताया जा रहा है कि उस ठेकेदार ने कई दिनों तक उन्हीं वीडियो को दिखा दिखाकर बच्चियों के साथ मनमर्जी करता रहा। डर के मारे बच्चियां ये बात न तो घर में बता पा रही थीं और न ही अपना दर्द किसी से साझा कर पा रही थीं। बस अकेले में दोनों बच्चियां रोती रहती थीं। 

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भट्टा मजदूरों की बेटियां, तीन गिरफ्तार

बीते बुधवार की रात वहीं भट्टे में रहने वाले दूसरे मजदूरों ने दोनों बच्चियों के शवों को बेर की डाली से लटके हुए देखा। पेड़ से बच्चियों के शवों को लटका देखकर पूरे इलाके में हड़कंप मच गया। तब इस मामले की पुलिस को इत्तेला की गई। पुलिस को यही बताया गया कि दो नाबालिग बच्चियों ने दुपट्टे से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। मगर इल्जाम यही है कि बच्चियों की हत्या करने के बाद उनके शव को दुपट्टे से पेड़ पर लटकाया गया है। शुरुआती तफ्तीश में यही बात भी सामने आई है। जबकि परिवार के लोगों ने ईंट भट्ठे के ठेकेदार समेत तीन लोगों पर बच्चियों संग बलात्कार के बाद हत्या का आरोप लगाया है। पुलिस ने बाकायदा नामजद रिपोर्ट दर्ज करने के बाद तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। तीन आरोपियों पर गैंग रैप, पास्को, आईटी एक्ट और आत्महत्या के लिए उकसाने जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया है। 

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घाटमपुर कोतवाली इलाके की सनसनीखेज वारदात

दस साल पुरानी कहानी याद आई

दस साल पहले बदायूं में भी ऐसा ही एक किस्सा उजागर हुआ था। जहां आम का एक पेड़ काफी पहले से बदायूं के उस गांव का हिस्सा रहा होगा। और शायद ही गांव के लोगों ने कभी उस पेड़ को नज़र उठा कर भी देखा हो। लेकिन जब उस पेड़ पर दो इंसानी जिस्मों को झूलते हुए देखा तो बदायूं के उस गांव का वो पेड़ पूरे हिन्दुस्तान के साथ साथ पूरी दुनिया की नज़रों में चढ़ गया। जिस पेड़ के इर्दगिर्द गांव के बच्चों का बचपन बीत रहा था वहीं पेड़ गांव के नन्हें नन्हें बच्चों को डराने लगा। गांव के बड़े बच्चों को उस पेड़ के नजदीक न जाने की नसीहतें देने लगे। क्या अजीब इत्तेफाक है कि जिस पेड़ की छांव में किस्से कहानियों के दौर चलते थे...वही पेड़ अब इस गांव की आने वाली पीढ़ियों के लिए किस्से कहानियों की जड़ बन गया।  

बदायूं में भी लगा था तमाशबीनों का मेला

बदायूं के उस गांव से उठे इस शोर ने सियासत की नींद उड़ा दी। सूबे की राजधानी लखनऊ से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक में उसी मुद्दे को लेकर हलचल देखी गई। जिस गांव की तरफ शायद कोई झांकता भी नहीं रहा होगा, वहां देखते ही देखते तमाशबीनों का मेला लग गया। सियासत के रणबांकुरे अपने अपने बयानों की पतंग उड़ाते रहे, ताकि टीवी के पर्दे पर उनके चेहरे चमक सकें। मगर अफसोस उस भीड़ में से किसी ने भी उस बाप को नहीं देखा जो अपनी सयानी होती बेटी की डोली के बजाए अर्थी को कंधा देने के बाद हाथ पर हाथ धरे बस इस तमाशों को देखता रहा और आंसू पोंछता रहा।  

बदायूं की घटना पर बनी फिल्म ‘आर्टिकल 15’

वही मंजर पूरे दस साल के बाद 275 किलोमीटर का फासला तय करके बदायूं से कानपुर जा पहुँचा। इस बीते वक्त में अगर कुछ बदला है तो तारीख और किस्से में शामिल किरदार। उसी बदायूं की कहानी को आधार बना कर बॉलीवुड में एक फिल्म भी बनाई गई थी, नाम था आर्टिकल 15। 

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