My Story : जब 8 साल की थी तब मुंहबोले भाई की वो गंदी हरकतें आज भी मुझे डराती हैं

ADITI SAH

30 Mar 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:16 PM)

My Story : जब मैं 8 साल की थी तो रिश्ते के भैया ने पहले सीने पर हाथ फेरा फिर पैंट में डाली थी हाथ my story, He touched my private part at the age of 8, For latest crime news in Hindi on Crime Tak.

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My Story : मैं उस वक्त बहुत छोटी थी. उम्र वही कोई 7-8 साल रही होगी. मुझे याद है कि मेरे दादा जी की उन्हीं दिनों डेथ हो गई थी. लिहाजा, घर में बहुत लोग आए थे. मेरे दादा जी को आखिरी विदाई देने. दूर के रिश्तेदार भी आए. अब वो तेरहवीं तक रुकने वाले थे. उन रिश्तेदारों में कई जाने-पहचाने तो कई अजनबी भी थे.

पर क्या अजनबी क्या पहचान वाले. इन सब बातों से मैं पूरी तरह थी अंजान. घर में सबसे छोटी और चुलबुली मैं ही थी. सबकी चहेती और लाडली भी. मेरे घर में क्या हो रहा है ये समझने के लिए मेरी उम्र बहुत कच्ची थी. लेकिन उस कच्ची उम्र में मेरे साथ जो हुआ उसकी याद आज भी वैसी ही हैं. बिल्कुल तरोताजा. जिसे सोचकर आज भी मैं कई बार सहम जाती हूं. तो कई बार खुद से घिन्न भी आ जाती है.

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उस सर्द के मौसम में वो अजीब सी खामोशी

My Story in Hindi : याद है वो दिन. मौसम काफी ठंड था. सारे लोग दादा जी के क्रियाक्रम में व्यस्त थे. मैं बाकी बच्चों के साथ घर में छुप्पन छुपाई खेल रही थी. हम बच्चों में एक बड़ा बच्चा भी था. जो हमारे साथ खेल रहा था. वो भी हम छोटे बच्चों की तरह ही. रिश्ते में तो वो भी मेरा भाई ही था. दूर का रिश्तेदार. दादा जी की बहन का पोता. हम सारे लोग उससे काफी घुल मिल गए थे.

मेरी भी उससे काफी दोस्ती हो गई. उसे भी मेरी तरह कार्टून नहीं बल्कि न्यूज देखना पसंद था. वो मुझे सबके सामने प्यार करता. छोटी हूं कह कर पुचकारता भी. मेरी होनहारी की तारीफ करता. कभी गोद में खिलाता. तो कभी गोद में उठाकर बाहर भी ले जाता.

कभी चॉकलेट खिलाने. तो कभी यूं ही घुमाने. पर उस दिन बहुत कुछ अजीब हुआ. इतना अजीब कि मैं आज भी उसे घटना को याद कर उसे महसूस कर सकती हूं. और फिर सारी तस्वीरें मेरी आंखों के सामने ऐसे आ जाती हैं जैसे कोई डरावनी फिल्म.

एक दिन अचानक कमरे में मैं उसके बगल में छुप गई. मैंने उनसे कहा भी. भैया किसी को बताना मत मैं आपके पास छुपी हूं. ठीक है... नहीं बताऊंगा. उसने यही कहा था. खेल का बहाना देकर उसने मुझसे कहा मेरे पास आ जाओ. मेरे इस कंबल में जहां मैं तुम्हें छुपा लेता हूं. और कोई भी तुम्हें नहीं ढूंढ़ पाएगा. फिर ठंड भी थी. और मैं छुप गई.

क्योंकि वो खेल मुझे जीतना था. और मैंने उसकी बात मान ली. उसने मुझे प्यार से पुचकारना शुरू किया. मुझे अच्छा लगा रहा था. पर धीरे-धीरे मुझे अजीब सा लगने लगा. वो प्यार से पुचकारना अब अच्छा नहीं लग रहा था. वो मेरे सीने को छू रहा था. उस वक्त तो मेरा सीने पर कुछ था भी नहीं.

बिल्कुल मैं आम बच्चों की तरह थी. उसने मेरे निप्पल पर ज़ोर से चूटी काटी. मैं चीख उठी. चिल्लाई पर शोर ज्यादा दूर नहीं जा सकी. क्योंकि उससे पहले ही उसने मेरा मुंह बंद कर दिया. जब उसे मेरे सीने पर कुछ नहीं मिला तो उसने कुछ और तलाशना शुरू किया.

वो मेरे प्राइवेट पार्ट को छू रहा था

Crime Story in hindi : उस समय तो नहीं समझ पाई. आखिर वो क्या चाहता था. लेकिन बचपन की उसकी तलाश को अब मैं समझ पाई. और अब मैं उसकी तलाश को भली भांती समझती भी हूं. वो अपना हाथ मेरे पैंट के अंदर की तरफ बढ़ाने लगा. और धीरे-धीरे उसने मेरे प्राइवेट पार्ट को छूना शुरू किया.

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. जिसे मैं खुद नहीं छूती थी उसे वो क्यों टच कर रहे हैं. आखिर मेरे साथ ये हो क्या रहा है. वो मेरे प्राइवेट पार्ट में ऊंगली क्यों डाल रहा है. मैंने अपना पूरा जोर लगाया. सारी ताकत झोंक दी.

खुद को छुड़ाने की. लेकिन नहीं छूट पाई. मैं नहीं बच पाई. मैंने जोर की आवाज लगाई. और फिर उसने मुझे छोड़ दिया. उसने मुझे छोड़ तो दिया पर मेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर दिया.

13 दिनों तक वो मुझे किसी ना किसी बहाने ऐसे ही छूता रहता. और मैं कुछ नहीं कर पाती. मैं अपनी मां को सब बता देना चाहती थी. पर नहीं बता पाई. वो मुझे और कहती सारे बच्चे भैया के साथ सोएंगे. मुझे तो उसका नाम भी नहीं पता था. मुझे अपनी मां से नफरत हो गई. वो क्यों नहीं मुझे सुन रहीं थीं.

बाहरी से ज्यादा अपनों से ही है हमें खतरा

आखिर मेरे अपनों ने ही मेरे बदलते व्यवहार को क्यों नहीं देखा. और अगर देखा भी तो नजरअंदाज क्यों किया? मां ने मुझे बाकी मम्मियों की तरह गंदे तरीके से छूने के बारे में क्यों नहीं बताया था. जिसे आजकल 'गुड टच और बैड टच' कहते हैं. मां मुझमें और मेरे भाइयों में कोई फर्क नहीं करती थी. पर क्या वो भूल गई थी मैं एक लड़की हूं. और कई वहसी दरिंदें आसपास ही हैं. सिर्फ बाहर ही नहीं अपने घर में भी.

मुझ जैसी ना जाने कितनी लड़कियां होंगी जो जिसने शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेली होंगी. और हो सकता है आज भी झेल रहीं होंगी. मैं ये दावे के साथ कह सकती हूं इसकी शुरुआत कहीं ना कहीं अपने घर से ही होती है. और अपनों से ही होती है. पर हम किसी को बता नहीं पाते हैं. ना जानें क्यों हम डर जाते हैं.

और तो और...हमारे घर में भी हमारी आवाज को अनसुना कर दिया जाता है. ऐसा करने से कई बार हम खुद को ही कसूरवार मान लेते हैं. लेकिन ऐसा कब तक चलेगा. और हमें अपनों के खिलाफ आवाज उठाने में हमारे अपने ही क्यों रोक लेते हैं. जिसकी वजह से उस गम को हम सारी उम्र साथ लेकर चलने को मजबूर हो जाते हैं. आखिर कब तक?

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