क्या अब कभी भी आरोपी को रिमांड पर लिया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट करेगी तय

CHIRAG GOTHI

10 Aug 2023 (अपडेटेड: Aug 10 2023 10:30 AM)

Supreme Court Verdict: क्या किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार आरोपी को पुलिस जांच पूरी होने के दौरान यानी मामलों के अनुसार 60 या 90 दिनों में कभी भी पुलिस रिमांड पर दिया जा सकता है ?

Supreme Court Verdict

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संजय शर्मा के साथ चिराग गोठी की रिपोर्ट

Supreme Court Verdict : क्या किसी आपराधिक मामले में गिरफ्तार आरोपी को पुलिस जांच पूरी होने के दौरान यानी मामलों के अनुसार 60 या 90 दिनों में कभी भी पुलिस रिमांड पर दिया जा सकता है ? सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है कि वो इस प्रक्रिया का न्यायिक परीक्षण करेगा। सुप्रीम कोर्ट 31 साल पुराने अपने ही फैसले पर नए सिरे से विचार करेगा।

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यानी 1992 के उस फैसले पर विचार करेगा जिसमें कहा गया था कि गिरफ्तारी के दिन से 15 दिनों के भीतर ही पुलिस या कोई भी जांच एजेंसी आरोपी को रिमांड पर ले सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में तुमिलनाडु के आरोपी मंत्री सेंथिल बालाजी को झटका देने वाला फैसला सुनाते हुए जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने इस मामले से जुड़े प्रक्रियागत पहलू को बड़ी पीठ के पास विचारार्थ भेज दिया है।  

बड़ी पीठ तय करे कि पुलिस हिरासत की अवधि आरोपी की गिरफ्तारी के बाद से शुरुआती 15 दिनों के भीतर ही हो या जांच की पूरी अवधि में कभी भी। यानी गिरफ्तारी के बाद से दो या तीन महीने यानी 60 या 90 दिन के दौरान कभी भी।  

सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में अनुपम जे कुलकर्णी बनाम सरकार मामले में कहा था कि किसी भी मामले में साफ साफ व्यवस्था दी थी कि किसी भी आरोप में गिरफ्तारी के दिन से 15 दिनों के भीतर ही आरोपी को पुलिस रिमांड पर लिया जा सकेगा। उसके बाद नहीं, लेकिन अब इस पीठ ने अनुपम जे कुलकर्णी मामले में दिए फैसले पर फिर से विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के पास धारा 167(2) सीआरपीसी के तहत हिरासत में लेने की शक्ति है। सीआरपीसी की धारा 41ए और पीएमएलए की धारा 19 के तहत गिरफ्तारी की वो शर्तें ईडी पर बाध्यकारी नहीं है, इसलिए गिरफ्तारी से पहले धारा 41ए के तहत नोटिस देने की भी जरूरत नहीं है।

मजिस्ट्रेट या विशेष न्यायाधीश के न्यायिक आदेश द्वारा रिमांड के बाद हैबियस कॉरपस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण सुनवाई योग्य नहीं है। एक्ट ऑफ गॉड या अन्य आकस्मिक परिस्थितियां पुलिस हिरासत की मांग की अवधि को बाहर करने की अनुमति दे सकती हैं। 

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