रॉक स्टार बाबा का 'मायालोक'

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शुक्र कीजिए कि पूरी दुनिया में सिर्फ 7 अजूबे हैं, अगर आठवां होता। तो ज़रूर वो बाबा राम रहीम ही होता, वरना चार दशक पहले शाह सतनाम सिंह ने तो अपनी गद्दी इस उम्मीद में 7 साल के गुरमीत को सौंपी थी कि वो लोगों में मोहब्बत का पैग़ाम पहुंचाएगा। लेकिन गुरमीत ने ही उस विरासत के गलत मायने निकाल लिए। सतनाम सिंह तो फकीरी सिखा गए थे, मगर बाबा बनकर राम रहीम ही लोगों को फकीर बनाता चला गया। उन्होंने तो सोचा था कि राम रहीम आस्था की ताकत से लोगों को जीने का सलीका सिखाएगा, लेकिन ये तो जीवन की ज्य़ोति ही बुझाता चला गया।

बाबा राम रहीम ने अपनी अय्याशी के लिए सिरसा में ऐसा रिज़ॉर्ट बनाया था जहां ऐश के तमाम सामान एक छत के नीचे जमा होते हैं, न जाने कितने ही रिज़ॉर्ट बाबा ने देश औऱ दुनिया में अपनी अय्याशी के बना लिए थे। बाबा के रिज़ॉर्ट में अय्याशी के लिए 58 कमरे है, जिसमें 16 आलीशान विला बनाए गए हैं। यूं तो बाकी कमरों और विला दूसरे लोगों को भी अच्छी खासी कीमत के बदले दिया जाता था मगर उनमें से एक ताजमहल विला को उसने अपने लिए बनवाया था।

राम रहीम का ताजमहल वो विला था जिसमें वो खुद आकर रुकता था, जब उसे अपनी किसी साध्वी को दिव्यज्ञान देना होता था। उसके अलावा और किसी को उस विला को देखने की मनाही थी, हूबहू ताजमहल जैसा बाबा ने बनवाया था अपना विला। इतना खूबसूरत कि देखते ही बनता है, इसके लिए खास अलग स्वीमिंग पूल और आराम कुर्सियां थीं। विला की एक एक चीज़ें इतनी मंहगी और इतने करीने से सजाई गई थी कि किसी को भी रश्क हो जाए।

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बाबा के विला के अंदर खास गोल आकार का बेड बनाया गया था। जब भी गुरमीत राम रहीम वहां जाता तो उस बेड पर या तो लाल रंग की या फिर गुलाबी रंग की बेडशीट बिछाई जाती थी। ऐसा क्यों किया जाता है था इसका पता नहीं चल सका है, इतना ही उसके यहां रहने के दौरान रिसार्ट के सारे सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए जाते थे, और सिर्फ कुछ ही स्टाफ को रिसोर्ट में उसके साथ रुकने की इजाज़त होती थी। बताया जाता है कि इस सारी शान-ओ-शौकत को राम रहीम अपनी अय्याशी के साथ साथ अपनी फिल्मो की शूटिंग में भी इस्तेमाल करता था।

ये रिसोर्ट सिर्फ बाबा की अय्याशी का ठिकाना ही नहीं था बल्कि उसके रेवेन्यू का भी बड़ा ज़रिया था, सूत्रों के मुताबिक राजनीतिक लोगों को खुश करने के लिए और उनकी अय्याशी के लिए इन सुपर लग्ज़री कमरों का इस्तेमाल किया जाता था। साथ ही रईस और वीवीआईपी लोगों को इस रिजॉर्ट में कमरे किराए पर दिए जाते थे, रूम की पांच कैटगरी थी उसके रिसोर्ट में,

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  1. रिज़ार्ट में 32 प्रीमियम रूम हैं जिसका एक दिन का किराया 3500 रुपये + taxes था

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  • इसी तरह 8 सुपर प्रीमियम रूम थे जिनका किराया 5500 रुपये + taxes

  • 2 अल्ट्रा प्रीमियम रूम का किराया 6500 रुपये + taxes था

  • वही रिजॉर्ट में 12 सुइट वंडर विलाज़ थे जिसका किराया 30,000 रुपये से ज़्यादा था

  • और सिर्फ 3 थीम रॉयल विलाज थे जिनका एक दिन का किराया 1,25,000 रुपये था

  • इन सभी कमरों में फाइव स्टार होटल की सभी सुविधाएं उपलब्ध थीं, मगर इस रिसोर्ट की एक खास बात ये थी कि यहां पर नॉनवेज और शराब नहीं परोसी जाती थी। लेकिन हर तरह के खाने से लेकर हाई क्लास जिम यहां बना हुआ है।

    इस रिजॉर्ट का रास्ता एक गुफा के रूप में था, ये गुफा रंगीन पत्थरों से बनाई गई थी। इसके बाद एक आलीशान एलीफैंट हाउस इस रिजॉर्ट में बना है, राम रहीम के अय्याशी के इस अड्डे में विसालिता की ऐसी -ऐसी तस्वीरें हैं, जो देखकर ही किसी समर्थक, किसी भक्त को पहले ही समझ आ जाना चाहिए था कि ये दुनिया से वैराग का पाठ पढ़ाने वाला बाबा असल में क्या है? यहां एफिल टॉवर की आकृति का एक विला है, तो ताजमहल जैसा विला तो खैर इसने खुद के लिए बनाया था, रिजॉर्ट में पूरा डिज्नीलैंड बना रखा था इस अय्याश बाबा ने।

    दुनिया के तमाम अजूबों की शक्ल में इस अजूबे ने रिज़ॉर्ट में कई दर्जन लग्ज़री कमरे और न जाने क्या क्या बना रखा था, तफ्सील में ज़रूर जाएंगें, मगर उससे पहले इतना समझ लीजिए कि संत, गुरू, साधु या बाबा बेहद वज़नदार ओहदे हैं। जो सच्चा है उसी पर ये शोभा देते हैं, वरना सच्चा सौदा के नाम इन ओहदों की सौदागरी भारी बहुत पड़ती है।

    दुनिया के इस आठवें अजूबे ने सच का सौदा किया और रिश्तों से बाज़ीगरी, खुद तो वहीं पहुंचा जहां इसे जाना ही था। मगर अपने पीछे हज़ारों, लाखों, करोड़ों भक्तों को ठग ले गया। सिर्फ दौलत से नहीं, ईमान, धरम से भी। सोचिए क्या रहा झोली में भक्तों की, एक उदासी रह गई। खुद भी इस अजूबे को क्या मिला लोगों के विश्वास को तोड़कर।

    जो पीठ आलीशान डल्लब के गद्दों की आदी हो गई थी, वो अब पत्थरीले बिस्तर पर सो रहा है, जो निवाले बोन चाइना के महंगें बर्तनों में लज़ीज़ खाने समेटते थे, वो अब स्टील की थाली में पानी से पतली दाल को समेटने में जद्दोजहद कर रहे हैं। जिसे महंगी कुर्सियों पर बैठने की आदत थी, उनकी जगह ज़मीन पर ही पल्थी मारकर खाने को खाना पड़ेगा।

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