LATA MANGESHKAR : जैसे बच्चे की आवाज होती है, वैसी ही आवाज थी लता दीदी की !

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LATA MANGESHKAR : जैसे बच्चे की आवाज होती है, वैसी ही आवाज थी लता दीदी की !
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LATA MANGESHKAR DEATH : महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के बारे में कहा गया था कि , cricket is our relegion and sachin is our god. यानी क्रिकेट हमारा धर्म है और सचिव भगवान है। ठीक इसी तरह लता दीदी के बारे में भी कहा जाता था ''मेरी आवाज ही मेरी पहचान है।'' यानी लता दीदी को जीवन में शायद वो सब कुछ मिले, जो जीवन में कई लोगों को सपना होता है।

वो भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं, जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। लता दीदी को भारत सरकार ने 'भारतरत्न' से सम्मानित किया गया था।

उन्हें भगवान ने ऐसा गला दिया था, जिसका उन्होंने भरपूर इस्तेमाल किया। साथ साथ कैसे गले को ठीक रखना है, इसको लेकर भी लता दीदी बहुत मेहनत करती थी। चाहे खानपान की बात हो या फिर गले को तंदुरुस्त रखने के लिए जरूरी दवाओं का सेवन करने की बात हो या फिर अन्य चीजों के इस्तेमाल करने की बात हो। वो सब चीजों पर ध्यान देती थी।

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लता दीदी की आवाज पैदाइशी सुरीली थी

यही वजह थी उनकी आवाज को लेकर ये कहा जाता था कि ये कोई सुरीली बच्ची गा रही है। लता दीदी पर भगवान का बहुत आशीर्वाद था। पैदाइशी उनकी आवाज सुरीली थी। इसके पीछे क्या साइटिफिक वजह रही, ये तो नहीं मालूम लेकिन इसे भगवान का आशीर्वाद जरूर कहा जा सकता है। लता दीदी को गाना गाने में मजा आता था। उनके बारे में ये कहा जाता था कि जब भी वो गाना गाती थी बस दिल से गाती थी। उनका सारा ध्यान सिर्फ गाने पर होता था, गाने की परिस्थितियों पर होता था। वो भूल जाती थी कि आसपास कौन है ? किसको ये गाना कैसा लगेगा ? उनको बस एक ही एहसास होता था कि जब वो गाना गाएगी वो लोगों को जरूर पसंद आएगा, क्योंकि उनके जीवन में उन्हें इतना सम्मान सिर्फ गाने की ही वजह से मिला था। लता दीदी में वो आत्मविश्वास सिर्फ इसलिए था कि क्योंकि इसी की वजह से उन्हें ख्यातियों मिली थी, जिसने उनके जीवन में बूस्टर का काम किया और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।

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इसीलिए तो कहा जाता है कि 90 साल से ज्यादा उम्र में उनकी आवाज इतनी मधुर और सुरीली थी कि जैसे कोई बच्चा गा रहा हो। इसे भगवान का आशीर्वाद ही कहे कि इतनी उम्र में जब शरीर का हरेक अंग जवाब देने लगता है, उनके गले ने उनका साथ नहीं छोड़ा।

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... जब नेहरू जी रो दिए थे

जवाहरलाल नेहरू के बारे में मशहूर था कि वो न तो कभी सार्वजनिक तौर पर रोते थे और न ही किसी दूसरे का इस तरह रोना पसंद करते थे, लेकिन 27 जनवरी, 1963 को जब लता मंगेशकर ने कवि प्रदीप का लिखा गाना 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया तो वो अपने आँसू नहीं रोक पाए। गाने के बाद लता स्टेज के पीछे कॉफ़ी पी रही थीं तभी निर्देशक महबूब ख़ाँ ने लता से आ कर कहा कि तुम्हें पंडितजी बुला रहे हैं। महबूब ने लता को नेहरू के सामने ले जा कर कहा, "ये रही हमारी लता। आपको कैसा लगा इसका गाना?"

नेहरू ने कहा, "बहुत अच्छा। इस लड़की ने मेरी आँखों में पानी ला दिया।" और उन्होंने लता को गले लगा लिया। कहते है, ''एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।'' तो लता दीदी के जीवन को गायिकी और गायिका को लता जी के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।

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