PFI Banned: विवादों से जुड़ा है पीएफआई का नाम, जानें कब-कब आया नाम सामने

ADVERTISEMENT

PFI Banned: विवादों से जुड़ा है पीएफआई का नाम, जानें कब-कब आया नाम सामने
social share
google news

Central Government has banned the Popular Front of India (PFI): केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को गैरकानूनी संगठन बताते हुए पांच साल के लिए बैन कर दिया है. केंद्रीय गृह मंत्री (Union Home Minister) की ओर से जारी गजट नोटिफिकेशन (gazette notification) में कहा गया है कि पीएफआई की विध्वंसक गतिविधियों (involvement in anti-national or terrorist activities) को देखते हुए सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 1 (Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967) यानी की धारा 3 के तहत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग किया है.

कौन-कौन से संगठनों से पीएफआई का टाईअप

Popular Front of India Kyu Hua Ban: पीएफआई का देश के कई सारे संगठनों के साथ जुड़ा हुआ है. संगठन गोवा सिटीजंस फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशन सोसायटी, मणिपुर में लीलांग सोशल फोरम, आंध्र प्रदेश में एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस और पश्चिम बंगाल के नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति के साथ मिलकर काम करता है.

ADVERTISEMENT

2003 केरल के कोझीकोड में मराड समुद्र तट पर सांप्रदायिक झड़पें हुईं. हिंसा में आठ हिंदू मारे गए थे. हत्या के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोग बाद में पीएफआई में शामिल हो गए.

2010 में PFI के लोगों ने ईशनिंदा के आरोप में एक मलयालम प्रोफेसर टीजे जोसेफ का कलाई के काट दिया था. मार्च 2010 में, केरल के थोडुपुझा में न्यूमैन कॉलेज में मलयालम भाषा के प्रोफेसर टीजे जोसेफ ने बी.कॉम के द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए एक प्रश्न पत्र तैयार किया. जोसेफ पर ईशनिंदा (blasphemy) का सवाल प्रश्नपत्र में डालने का आरोप लगा था. बाद में जोसेफ को नौकरी से निकाल दिया गया.

ADVERTISEMENT

जुलाई 2010 में, केरल पुलिस ने PFI कार्यकर्ताओं से देशी बम, हथियार, सीडी और तालिबान और अल-कायदा को बढ़ावा देने वाले कई दस्तावेज जब्त किए.

ADVERTISEMENT

केरल सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि 6 सितंबर 2010 तक पुलिस को हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा या अल-कायदा (Hizbul Mujahideen, Lashkar-e-Taiba or al-Qaeda,) के साथ संबंधों के आरोपों की जांच में कोई सबूत नहीं मिला था, लेकिन अप्रैल 2013 में, उत्तरी में पीएफआई केरल पुलिस द्वारा केरल के केंद्रों पर छापेमारी में घातक हथियार, विदेशी मुद्रा, बम, कच्चा विस्फोटक सामग्री, बारूद, तलवारें और अन्य चीजें मिलीं. केरल पुलिस ने दावा किया था कि छापेमारी से पीएफआई का 'आतंकवादी चेहरा' सामने आया है.

2012 में, केरल सरकार (Kerala government ) ने केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) में एक हलफनामा प्रस्तुत किया जिसमें कहा गया था कि 27 हत्या के मामलों में PFI की सक्रिय भागीदारी थी मारे गए लोगों में ज्यादातर माकपा और आरएसएस कार्यकर्ता थे.

कन्नूर के छात्र की हत्या और असम दंगों में आया नाम

6 जुलाई 2012 को कन्नूर निवासी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad) के छात्र एन सचिन गोपाल को कथित तौर पर सीएफआई और पीएफआई के लोगों ने चाकू मार दिया था, बाद में 6 सितंबर को गोपाल की इलाज के दौरान मौत हो गई. पीएफआई के लोगों पर विशाल नाम के एक छात्र की हत्या का भी आरोप था. मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन किया गया था.

जुलाई 2012 में असम में बोडो समुदाय (Bodo community) और मुस्लिम समुदाय के बीच दंगे भड़क उठे. दंगों के पीछे PFI का भी नाम आया.

इन दंगों के कारण उत्तर भारतीयों को दक्षिण भारत से निकालने के लिए एक अभियान शुरू किया गया था. इसके लिए पीएफआई और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी यानी हूजी संगठन पर आरोप लगाए गए थे. 13 अगस्त 2012 को 6 करोड़ से ज्यादा भड़काऊ SMS भेजे गए, जिनमें से 30 फीसदी पाकिस्तान से आए. रिपोर्ट्स के मुताबिक तीन दिन में 30 हजार से ज्यादा उत्तर भारतीयों को बेंगलुरु से लौटना पड़ा.

केरल सरकार ने पीएफआई के खिलाफ हाईकोर्ट में दी जानकारी

2014 में, केरल सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि एनडीएफ और पीएफआई कार्यकर्ता राज्य में 27 सांप्रदायिक हत्याओं, 86 हत्या के प्रयास के मामलों और 106 सांप्रदायिक मामलों में शामिल थे. हत्या के छह मामलों में आबिद पाशा नाम के एक बढ़ई को गिरफ्तार किया गया था. उसके पीएफआई से संबंध थे.

नवंबर 2017 में, केरल पुलिस ने पीएफआई के 6 सदस्यों की पहचान की, जो खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISI) में शामिल हो गए थे, जो नकली पासपोर्ट का उपयोग करके सीरिया गए थे.

पीएमके सदस्य रामलिंगम की फरवरी 2019 में कुछ मुसलमानों के साथ धर्मांतरण गतिविधियों को लेकर बहस के बाद हत्या कर दी गई थी, जिसके लिए पीएफआई के एक सदस्य को गिरफ्तार किया गया था. अगस्त 2019 में इस मामले में पीएफआई के 18 सदस्यों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे.

2017 में, इंडिया टुडे ने पीएफआई के संस्थापक सदस्य अहमद शरीफ का एक स्टिंग ऑपरेशन किया, जिसमें उन्होंने हवाला चैनल के माध्यम से मध्य पूर्व के देशों से धन प्राप्त करने की बात स्वीकार की थी और कहा था कि न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया इस्लामिक होना चाहती है.

हाल के विवाद

संगठन का नाम 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में आया. PFI पर देश भर में हुए विरोध प्रदर्शनों को फंड करने का आरोप लगाया गया था। पटना के फुलवारीशरीफ में 'गजवा-ए-हिंद' साजिश का पर्दाफाश हुआ.

इसी साल 4 जुलाई को तेलंगाना के निजामाबाद थाने में पीएफआई से जुड़े 25 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. प्राथमिकी में बताया गया कि आरोपी हिंसक-आतंकवादी गतिविधियों में शामिल थे और धर्म के आधार पर समाज में हिंसा को बढ़ावा दे रहे थे. इसके लिए आरोपी ट्रेनिंग कैंप आयोजित कर रहे थे. कराटे की ट्रेनिंग के नाम पर लोगों को हथियार चलाना सिखाया जा रहा था.

उसी साल कर्नाटक हिजाब विवाद और राज्य में भाजपा के युवा नेता प्रवीण नेतरू की हत्या में पीएफआई का नाम सामने आया था.

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT

    ऐप खोलें ➜