हेलमेट पहने डकैती करता मंगेश यादव कैसे पहचाना गया? इस तस्वीर में अटकी यूपी पुलिस के फर्जी एनकाउंटर की कहानी..

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हेलमेट पहने डकैती करता मंगेश यादव कैसे पहचाना गया? इस तस्वीर में अटकी यूपी पुलिस के फर्जी एनकाउंटर की कहानी..
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जौनपुर से आदित्य और लखनऊ से संतोष शर्मा के साथ अभिषेक मिश्र की रिपोर्ट

Lucknow: लखनऊ पुलिस मुख्यालय में टेबल, कुर्सी, माइक सब सेट हो चुका था। कैमरे के पीछे तमाम क्राइम रिपोर्टर अपनी-अपनी सीट पकड़ चुके थे। और तभी एक-एक कर यूपी पुलिस के तीन सबसे आला अफसर पहले से तय अपनी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। ये अफसर हैं- यूपी पुलिस के डीजीपी प्रशांत कुमार, यूपी के एडीजी लॉ एंड आर्डर और एसटीएफ चीफ अमिताभ यश और एडीजी लखनऊ ज़ोन एसबी शिरोडकर। हाल के वक़्त में यूपी क्या देश के किसी भी राज्य में किसी डकैती के केस को लेकर रिपोर्टरों के सवालों के जवाब देने के लिए एक साथ इतना बड़ा लाव-लश्कर शायद ही कभी इकट्ठा हुआ हो। पर यहां मामला थोड़ा दूसरा था। बात डकैती की नहीं, सवाल डकैती से जुड़े मंगेश यादव के उस एनकाउंटर का था, जिसे लेकर यूपी पुलिस पर ऊंगलियां उठ रही हैं। पर कमाल देखिए डकैती से लेकर राज्य की जीडीपी तक की बात डीजीपी साहब ने कर दी। लेकिन मंगेश यादव के एनकाउंटर पर उठ रहे सवालों का ऐसा एक भी जवाब नहीं दिया, जो असली या फ़र्ज़ी एनकाउंटर के शक को दूर कर सकता हो। 

एनकाउंटर के सवाल पर घुमाती रही पुलिस 

यूपी पुलिस ने पूरी तैयारी के साथ प्रेस कांफ्रेंस की थी। प्रेस कांफ्रेंस के बीच में बाकायदा कुछ वीडियो भी चलाए गए। इस वीडियो के ज़रिए 28 अगस्त की दोपहर करीब पौने एक बजे सुल्तानपुर के भरत ज्वेलर्स में डाका डालने वाले पांच लुटेरों की बिल्कुल क्लीयर तस्वीर भी दिखाई गई। इतना ही नहीं यूपी पुलिस ने इन तस्वीरों पर ग्राफिक्स का भी ठीक वैसे ही इस्तेमाल किया, जैसे अमूमन न्यूज चैनल वाले करते हैं। हर लुटेरे की इमेज को फ्रीज़ कर एक से पांच नंबर तक की गिनती दिखाई गई और सर्कल में उनके नाम भी। ये सारी मेहनत इसलिए थी ताकि ये दिखाया जा सके कि इस लूटपाट में जो पांच लुटेरे शो रूम के अंदर थे, उनमें से एक मंगेश यादव भी था। हालांकि चेहरा किसी का नहीं दिख रहा। खासतौर से जिस डकैत को पुलिस मंगेश बता रही है उसने तो हेलमेट पहना हुआ था। जाहिर है सवाल तो बनता था कि बिना चेहरे देखे कैसे मान लिया जाए कि ये मंगेश ही है? एक रिपोर्टर ने पूछ भी लिया। इस पर डीजीपी साहब झुंझलाते हुए सवाल न जाने कहां से कहां ले गए। 

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क्या मंगेश यादव का एनकाउंटर फ़र्ज़ी है?

मंगेश यादव के एनकाउंटर को लेकर उठ रहे सवालों के बीच शायद यूपी पुलिस ये भूल गई कि सुल्तानपुर के भरत ज्वेलर्स में हुई डकैती पर किसी को शक नहीं है। वहां डाका पड़ा, ये सच है। डकैत कैमरे में क़ैद हुए ये भी सच है। इन पांचों नक़ाबपोशों में एक मंगेश यादव हो सकता है। ये भी मुमकिन है। मंगेश यादव पर चोरी के आठ पुराने केस हैं, ये भी सही है। वो दो बार जेल गया, इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता। पर सवाल इस पर था ही नहीं। सवाल तो ये था कि क्या मंगेश यादव का एनकाउंटर फ़र्ज़ी है? क्या मंगेश यादव को दो दिन पहले ही उसके घर से उठा लिया गया था? तो इसका जवाब देने के बजाय प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मीडिया को वीडियो की शक्ल में मंगेश यादव की मां और उसकी बहन के ये बयान दिखाए गए। इस दावे के साथ कि ये वीडियो 3 सितंबर का है। यानी उस वक्त का, जब पुलिस मंगेश को उसके घर ढूंढने गई थी। 

अगर मुंबई में था मंगेश तो पुलिस किसे उठा ले गई?

मंगेश यादव की मां और बहन का ये बयान इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि इन्हीं दोनों ने मंगेश यादव के एनकाउंटर के बाद मीडिया के सामने ये दावा किया था कि सादे लिबास में कुछ पुलिस वाले दो सितंबर की रात मंगेश को घर से उठा कर ले गए थे। लेकिन अब यूपी पुलिस की तरफ से जारी तीन तारीख की इस वीडियो में दोनों ये बता रही हैं कि मंगेश तो पिछले दो-तीन महीने से घर पर ही नहीं था। मुंबई गया हुआ था। लेकिन यूपी पुलिस की तरफ से तीन सितंबर के इस वीडियो में एक पेच है। वो पेच ये है कि एक वीडियो में जब मंगेश यादव की बहन प्रिंसी से पुलिस वाला सवाल कर रहा है, तब प्रिंसी को देख कर ऐसा लग रहा है कि शायद वो सो रही थी और पुलिस वालों के जगाने पर अभी-अभी उठी है। इस वक्त प्रिंसी ने सफेद रंग का कोई शर्ट या कुर्ता पहन रखा है, लेकिन इसके बाद जैसे ही मंगेश की मां से पुलिस पूछताछ करती है, तभी प्रिंसी राउंड नेक की टी शर्ट में दिखाई देती है। यानी उतनी देर में उसके कपड़े बदल चुके थे। 

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सवालों के सीधे जवाब देने से बचते दिखे अफसर

वैसे राज्य के इन तीन सबसे आला अफसरों के हिसाब से डकैती की जो पूरी कहानी है, वो कुछ यूं है। इसकी साज़िश काफी पहले बुनी गई। फिर दो बार भरत ज्वेलर्स की रेकी भी की गई। प्रेस कांफ्रेंस में रेकी की तस्वीर भी दिखाई गई। इतना ही नहीं रेकी करने वालों के नाम भी बताए गए। हालांकि खुद यूपी पुलिस के मुताबिक दोनों ही रेकी में मंगेश यादव का नाम नहीं है। लेकिन लूट के लिए जिन दो मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया, उसकी चोरी में मंगेश का नाम जरूर लिया गया। लेकिन इन्हीं दो में से एक बाइक की चोरी को लेकर जब एक रिपोर्टर ने सवाल पूछा कि बाइक चोरी के आठ दिन बाद अचानक उसकी रिपोर्ट कैसे लिखी गई और ये रिपोर्ट पहले क्यों नहीं लिखी गई, तो इस सवाल के जवाब में भी डीजीपी साहब कुछ और ही बोलते सुनाई दिए। 

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हो जाती बाइक चोरी की FIR तो नहीं होता एनकाउंटर?

दरअसल, बकौल पुलिस जिस शख्स की चोरी हुई बाइक इस डकैती में इस्तेमाल हुई थी उसके मुताबिक ये चोरी 20 अगस्त को जौनपुर के एक अस्पताल के बाहर से हुई थी। बाइक का मालिक नसीम अगले कई दिनों तक थाने के चक्कर काटता रहा। उसने 112 नंबर पर पुलिस को कॉल भी किया। लेकिन किसी ने उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी। फिर 28 अगस्त को भरत ज्वेलर्स में डाका पड़ने के कुछ घंटे बाद ही अचानक उसकी बाइक चोरी की रिपोर्ट लिख ली जाती है। ये बात अजीब भी है और हैरान करने वाली भी। यहां सवाल ये भी है कि अगर नसीम की बाइक चोरी की रिपोर्ट वक़्त पर लिख ली जाती, अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज से बाइक चुराने वालों की निशानदेही कर ली जाती, तो क्या पता भरत ज्वेलर्स में पड़ने वाले डाके की साज़िश का खुलासा पहले ही हो जाता। फिर ना डाका पड़ता और ना यूपी पुलिस को मंगेश यादव का एनकाउंटर करना पड़ता। 

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