अशरफ ने नहीं, इस शख्स ने किए महालक्ष्मी के 50 टुकड़े! मर गया काटकर फ्रीज में रखने वाला कातिल, जाते-जाते बता गया सच

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अशरफ ने नहीं, इस शख्स ने किए महालक्ष्मी के 50 टुकड़े! मर गया काटकर फ्रीज में रखने वाला कातिल, जाते-जाते बता गया सच
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भुवनेश्वर से अजय नाथ के साथ सगाय राज की रिपोर्ट

Bangalore News: बेंगलुरु के इस घर की इस फ्रिज से जो कहानी 21 सितंबर को शुरु हुई थी वो 25 सितंबर की सुबह ओड़िसा के भदरक जिले के एक गांव में इस पेड़ पर लटकी लाश के साथ खत्म हुई. जी हां, बेंगलुरु की 29 साल की महालक्ष्मी का कातिल मिल तो गया लेकिन मुर्दा. क्योंकि उसने पुलिस के आने से पहले ही इसी पेड़ से लटककर खुदकुशी कर ली.. लेकिन खुदकुशी से पहले न सिर्फ उसने महालक्ष्मी के कत्ल की बात कबूली बल्कि कत्ल की वजह भी बता गया. 

ये मुक्ति रंजन रॉय है. 31 साल का मुक्ति ओड़िशा के इसी भदरक जिले का रहने वाला था. लेकिन नौकरी बेंगलुरु में किया करता था. बेंगलुरु के जिस मॉल में मुक्ति काम किया करता था उसी मॉल में महालक्ष्मी भी काम किया करती थी. वहीं दोनों की मुलाकात हुई. और फिर दोस्ती और फिर प्यार. और यही प्यार महालक्ष्मी की जान ले गया. पूरी कहानी सुनाऊं उससे पहले आइए जान लेते हैं कि खुदकुशी से पहले मुक्ति ने सुसाइड नोट में क्या लिखा था.

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महालक्ष्मी को 59 टुकड़ों में क्यों काटा?


''मैंने अपनी प्रेेमिका महालक्ष्मी को 3 सितंबर को मार डाला.. मैं उसके बर्ताव से ऊब चूका था. कुछ पर्सनल मैटर पर हम दोनों के बीच झगड़ा हुआ और इसी झगड़े के दौरान मैंने उसे मार डाला.. कत्ल के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए मैंने उसके टुकड़े किए थे.''  इस सुसाइड नोट से साफ है कि मुक्ति और महालक्ष्मी रिलेशनशिप में थे लेकिन महालक्ष्मी कुछ और लोगों के भी करीब थी और यही बात दोनों के बीच झगड़े की वजह बनी.. 

अब खुद पेड़ से लटकता मिला आरोपी

यहां तक कि दोनों की लड़ाई पुलिस तक भी पहुंच गई थी. और पुलिस से चंगुल से छूटने के लिए 10 हजार रुपये की रिश्वत देनी पड़ी। मुक्ति ने सुसाइड नोट में लिखा है कि पहले महालक्ष्मी ने उसे मारने की कोशिश की थी, लेकिन गुस्से में उसी ने महालक्ष्मी का क़त्ल कर दिया और मुक्ति के लाए हुए चाकू से ही उसकी लाश के टुकड़े कर डाले। एक खास बात ये भी है कि मुक्ति ने ये सुसाइड नोट क़त्ल के दस रोज़ बाद यानी 13 सितंबर को ही लिख लिया था। लेकिन उसने खुदकुशी 25 सितंबर को की।

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अब आइए आपको बताता हूं कि आखिर मुक्ति रंजन राय का सुराग़ बेंगलुरु पुलिस को कैसे मिला.. 

21 सितंबर को जब महालक्ष्मी की टुकड़ों में बंटी लाश फ्रिज से बरामद हुई तब पुलिस को महालक्ष्मी का एक फोन भी मिला था. ये फोन 3 सितंबर से स्विच ऑफ था.. महालक्ष्मी के कॉल डिटेल रिकॉर्ड से पहली बार मुक्ति का नंबर मिला. उधर जब पुलिस ने मॉल के उस शॉप में जब पूछताछ की जहां महालक्ष्मी काम किया करती थी तो पता चला महालक्ष्मी आखिरी बार वहां 1 सितंबर को गई थी. उसी शॉप के बाकी मुलाजिमों से जब पूछताछ की गई तो पता चला कि एक और मुलाजिम भी गायब है.. वो भी उसी 1 सितंबर से जब से महालक्ष्मी गायब थी. वो मुलाजिम मुक्ति रंजन था. अब पुलिस ने जब मुक्ति रंजन के कॉल डिटेल रिकॉर्ड को खंगालना शुरु किया. तो पता चला कि 2 और 3 सितंबर को उसके मोबाइल का लोकेशन महालक्ष्मी के घर के आसपास का ही था. यहीं से पुलिसो को मुक्ति पर शक हुआ. तफ्तीश के दौरान पता चला कि मुक्ति महालक्ष्मी के घर से कुछ दूरी पर ही अपने छोटे भाई के साथ किराए के एक घर में रहता है. अब पुलिस मुक्ति के बेंगलुरु वाले घर में पहुंचती है.

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मुक्ति की मौत के बाद भी अनसुलझे रह गए सवाल

घर पर मुक्ति का भाई मिलता है. वो पुलिस को बताता है कि 3 सितंबर को मुक्ति ने उसे फोन किया था. और फोन पर ये कहा था कि ये घऱ फौरन खाली कर कहीं और शिफ्ट हो जाओ. पूछने पर उसने कहा कि बाकि बाते वो फोन पर नहीं बल्कि मिलकर बताएगा. इसके बाद मुक्त भाई से मिलता है और बताता है कि उसके हाथों एक खून हो गया है. इसलिए अब वो बेंगलुरु में नहीं रह सकता और वो गांव जा रहा है.. फिर उसने उसी वक्त बेंगलुरु छोड़ दिया.

पुलिस की लंबी तलाश और अंत में पेड़ पर लटका मिला कातिल

अब बेंगलुरु पुलिस ने मुक्ति के मोबाइल से उसके लोकेशन का पता लगाना शुरु किया.. पहला लोकेशन भुवनेश्वर का मिला. फिर कोलकाता. लोकेशन पता चलते ही बेंगलुरु पुलिस की कई टीमें ओड़िशा और पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हो गईं. लेकिन इसी बीच मुक्ति ने अपना सिम बदल दिया. पर अच्छी बात ये थी की नया सिम उसने अपने उसी पुराने फोन में डाला था. यानि उसका लोकेशन अब भी ट्रेस हो रहा था.

भुवनेश्वर में बेंगलुरु की तीन-तीन टीमें पहुंच चुकी थी. भुवनेश्वर पुलिस को मुक्ति की जानकारी भी दे दी थी. लेकिन उधर इसी बीच 24 सितंबर के रात क़रीब 10 बजे मुक्ति बड़ी खामोशी से भदरक जिले के अपने गांव पहुंचता है. घर आने के बाद मुक्ति अपनी मां के सामने भी ये कबूल करता है उसके हाथों महालक्ष्मी का कत्ल हो गया है. मुक्ति की मां ने ये भी इल्जाम लगाया कि उसे सैलरी के जो पैसे मिलते थे उनमें से ज्यादातर वो महालक्ष्मी पर ही खर्च कर देता था.. फिर भी महालक्ष्मी उससे और पैसों और तोहफों की डिमांड करती थी.

महालक्ष्मी और मुक्ति की दर्दनाक दास्तां

करीब 6 घंटे घर में गुजारने के बाद तड़के 4 बजे जब घरवाले सो रहे थे मुक्ति कपड़ों का अपना बैग और लैपटॉप लिए अपने पिता की मोटरसाइकिल लेकर निकल जाता है. घर से करीब 3 किलोमीटर दूर जाकर रात के अंधेरे में ही वो इस पेड़ से लटक कर खुदकुशी कर लेता है. मुक्ति की मौत के बाद जब पुलिस उसके बैग की तलाशी लेती है. तो उसमें से एक डायरी मिलती है. उसी डायरी के एक पन्ने पर मुक्ति के हाथों लिखा वो सुसाइड नोट था. 

क्या कभी मिलेगा साजिश का पूरा सच?

पोस्टमार्टम के बाद ओडिशा पुलिस ने मुक्ति की लाश उसके घरवालों को सौंप दी.. जिसके बाद उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया. बेंगलुरु पुलिस भी अब वहां पहुंच चुकी है. अदालत के जरिए वो मुक्ति के सुसाइड नोट को अपने कब्जे में लेकर अब आगे की जांच करेगी. हालाकि मुक्ति की मौत के साथ कायदे से महालक्ष्मी के कत्ल का केस अब लगभग क्लोज हो चुका है.. लेकिन अब भी ऐसे कई सवाल रह गए हैं जिनका जवाब अब शायद ही कभी मिले. यहां तक की महालक्ष्मी की लाश के टुकड़े करने के लिए जिस तेज धार हथियार का इस्तेमाल किया गया वो भी पुलिस बरामद नहीं कर पाई है और अब शायद कभी बरामद कर भी ना पाए. इसके अलावा अगर महालक्ष्मी के कत्ल में मुक्ति की मदद किसी और ने भी की तो अब शायद उसका भी सच कभी बाहर ना आ पाए. 

महालक्ष्मी के कत्ल और लाश के 59 टुकड़ों की कहानी अब चाहे कोई कैसे भी सुनाए पर हकीकत यही है कि महालक्ष्मी और मुक्ति के रिश्ते. झगड़े की असली वजह.. और इस कहानी की पूरी साजिश का सच अब सामने लाना नामुमकिन है. क्योंकि इस साजिश, इस कहानी, इस रिश्ते और इस कत्ल के दो ही किरदार थे. एक महालक्ष्मी और एक मुक्तिर रंजन राय. और दोनों ही इस दुनिया में नहीं हैं. यानि केस क्लोज.

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