संविधान दिवस स्पेशल : संविधान कैसे हमारी रक्षा और सुरक्षा करता है, ये जान लीजिए

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संविधान दिवस स्पेशल (Constitutional day 26 November)- आज 26 नवंबर है. ये दिन हम भारतीयों के लिए बहुत खास है. क्योंकि आज की तारीख का संबंध है भारत के संविधान से. वही, संविधान जो आपको संरक्षण प्रदान करता है. जीवन जीने के बेसिक अधिकारों की रक्षा करता है.

संविधान (Constituition) केवल वकीलों का दस्‍तावेज नहीं है बल्कि यह जीवन का एक माध्‍यम है. जो जीने के अधिकार से लेकर, शिक्षा, समानता और जीवन निर्वहन को स्वतंत्र रूप से चुनने का अधिकार देती है. आपके साथ हुए गलत के खिलाफ आपको लड़ने के लिए ताकत देता है. कम शब्दों में कहें तो ये आपकी रक्षा और सुरक्षा दोनों करता है.

9 दिसंबर 1946 से संविधान को लिखने की शुरुआत हुई थी, जिससे भारत की जनता को एक आजाद भारत में सुकून से जीने का अधिकार प्राप्त हो सके. इसके लिए संविधान सभा (Constituent assembly) के पहले सभापति थे सच्चिदानंद सिन्हा. इसके बाद फिर डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को सभापति निर्वाचित किया गया. इसके साथ ही लॉ के जानकार डॉक्टर भीमराव आम्बेंडकर को ड्राफ़्टिंग कमेटी का अध्यक्ष चुना गया था.

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लगभग 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में भारतीय संविधान (Indian Constitution) बनके तैयार हो गया. जबकि इसे लागू 26 जनवरी 1950 को किया गया. इसीलिए इसी तारीख यानी 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के तौर पर मनाते हैं. वो दिन जब दिल्ली वाले इंडिया गेट जाते हैं ताकि इस सौंदर्य दृश्य का आंनद ले सके.

अब बात करते है संविधान दिवस (Constitution day ) की. आज ही के दिन यानी 2015 से पहले 26 नवंबर को सिर्फ़ नेशनल लॉ डे के रूप में मनाया जाता था. लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद डॉक्टर आम्बेंडकर की 125वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में 2015 से केंद्र सरकार ने इसे संविधान दिवस के रूप में मनाना शुरू किया.

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एक आदर्श लोकतांत्रिक देश के लिए सभी के पास अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए एक स्वतंत्र संवैधानिक तरीक़ा हो. जिससे लोग अपनी रक्षा के लिए लड़ सके और उनके अधिकारो के हनन पर अपने आप को शोषण से बचा सके. सामाजिक हक़ की लड़ाई के लिए लोकतंत्र में संवैधानिक उपाय मौजूद रहेंगे तभी समाज सशक्त रहेगा.

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हमें ये भी जानना चाहिए कि संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) के तहत भारत के नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी मिली हुई है. इसी के साथ शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार भी मिला हुआ है. इसलिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बात असंवैधानिक तो वैसे भी नहीं हो सकती. जैसे कि किसान आंदोलन का अब तक चलना इस बात का सबुत है कि हम गलत या असहमती पर अपना मत ब्यक्त कर सकते है साथ ही प्रदर्शन कर सकते है.

फिर भी संविधान और संविधान सभा को लेकर बहुत से सवाल भी उठे थे. जिसका डॉ भीमराव आम्बेडकर ने कठोर निंदा किया था.उन्होंने इस आलोचना का जवाब भी दिया जिसमें कहा जा रहा था कि संविधान बनाने में काफ़ी वक्त बेकार हुआ है साथ ही देशवासियों के पैसे की भी बहुत बर्बादी हुई है.

डॉक्टर आम्बेडकर ने इस आलोचना का जवाब देते हुए कहा, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के संविधान निर्माताओं को संशोधनों की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा था. जिस रूप में प्रस्तुत किए गए, वैसे ही पास हो गए. इसके विपरित भारत को इस प्रक्रिया के लिए कई देशो के संविधान को पढ़ना पड़ा और उन सबमे से कुछ-कुछ पार्ट्स को लिया गया था.

इससे ही देरी और अधिक खर्च हमे झेलना पड़ा था. इस संविधान सभा को 2,473 संशोधनों का निपटारा करना पड़ा था. इन सबसे भी अगर लगता हो कि इस सभा ने गलती की तो ये आपकी भूल ही है. इतने कठीन कार्य को इतने कम समय में पूरा करने के लिए ये सभा खुद को बधाई तक दे सकती है.

जब संविधान सभा में डॉक्टर आम्बेडकर ने अपने एक भाषण मे कुछ ऐसा कहा जिसे जानना आपके लिए जरूरी है. उन्होंने उसमे आनेवाली पीढ़ी को कुछ चेतावनियां दी थी. जो बहुत सुर्खियों मे भी रही थी. ‘ग्रामर ऑफ़ एनार्की’ नाम से मशहूर इस भाषण में डॉक्टर आम्बेडकर ने ये चेतावनी दी थी.

संविधान की कमियों और खूबियों पर अपना मत ब्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि मैं संविधान की खूबियों पर बात नहीं करूंगा. क्योंकि मैं समझता हूं कि संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वो बुरा साबित हो सकता है, अगर इस्तेमाल करनेवाले लोग बुरे हों.

आंबेडकर की चेतावनी, देश के लोकतंत्र में ‘विरोध के तरीकों’ के बारे में थी. उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा, हमें पहला काम ये करना चाहिए कि अपने सामाजिक और आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिए संवैधानिक तरीको का ही सहारा लेना चाहिए.

अब कोई भारतीय आजादी के बाद से कुछ भी गलत होने पर अंग्रेजों को दोषी नहीं ठहरा सकता. अगर अब कुछ गलत होता हैं, तो हमारे पास खुद को छोड़कर, दोष देने के लिए कोई नहीं होगा.ये कहना था आंबेडकर का.

आम्बेडकर ने ये भी कहा था कि इस देश में धर्म का आधार ही भक्ति और आस्था है. धर्म और राजनीति के साज-गांठ से भारत की राजनीति में भी भक्ति और आस्था का जो प्रभाव पड़ता है. वैसा किसी और देश में नहीं पड़ता. इसीलिए भारत की जनता को इसके प्रति आगाह किया जाना चाहिए कि वो चाहें तो किसी महान व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता ज़ाहिर कर सकते हैं. लेकिन उसकी क़ीमत किसी भी तौर पर उनकी अपनी स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए.

कहते है कानून के हाथ बड़े लंबे होते है ,ये शायद आपको सच भी लगे .लेकीन कानून भी उसी की मदद कर पाता है जो कानूनी प्रक्रिया को समझता हो,और जानता हो जिससे वो उससे लाभ ले सके जरूरत पड़ने पर खुद की और अपने जानने वालों की कानूनी मदद कर सके .

NOTE : ये स्टोरी Crime Tak के साथ इंटर्नशिप कर रहीं अश्विनी सिंह ने लिखी है.

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