मैं 8 साल की थी तब उस अंकल ने ऐसे की थी गंदी हरकत, पर मुझे क्यों लगा मैं ही हूं गंदी लड़की

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My Story : वो मेरे पड़ोसी थे. अक्सर घर आते रहते थे. शरीर से काफी भारी भरकम थे. और खानी-पीने के शौकीन. घर में घुसते ही कुछ खाने की फरमाइश जरूर करते. कुछ खाने को ना भी मिले तो चाय तो जरूर ही पीते. घर में खासकर वो मेरी बुआ से जरूर बात करते. क्योंकि मेरे फूफा जी गुजर चुके थे. बुआ अकेलीं थीं. ऐसे में उन्हें मोरल सपोर्ट भी मिल जाता था.

असल में उस शख्स की बातें इतनी अच्छी थीं. बात करने का तरीका. कोई भी उस पर यकीन कर लेता था. इसी वजह से शायद बुआ को उनकी बातें अच्छी लगती थीं. पर उसकी यही हरकतें परिवार में बुआ को छोड़ दूसरे को पसंद नहीं आती थी.

पर बुआ की वजह से कोई कुछ कह भी नहीं पाता था. वो बुआ के ससुरालवालों की तरफ से दूर के रिश्तेदार भी लगते थे. इसलिए भी शायद ऐसा होता हो. वो दिन मुझे अच्छे से याद है. बारिश हो रही थी. जोरदार. झमाझम. बारिश देख मम्मी ने स्कूल जाने से मना कर दिया.

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My Story in Hindi : अब बचपन में स्कूल ना जाने के लिए मम्मी ही कह दें. तो कौन खुश नहीं होगा. इसलिए मैं भी खुश हो गई. साथ-साथ मेरे भाई भी बारिश में स्कूल नहीं गए. वैसे मेरा एक छोटा भाई था. जो हमेशा मुझसे बड़ा बनने की कोशिश में लगा रहता. और दूसरा बड़ा भाई भी था. खैर हमने बारिश के मौसम का लुत्फ उठाया और रूम में टेंट बना कर खूब खेला. खेलते-खेलते मैं सो गई.

और जब उठी तो दोपहर के 3 बज रहे थे. बारिश तब तक रूक चुकी थी. मौका मिलते ही भाई भी घर से बाहर घूमने निकल गया. मम्मी सो चुकी थीं. मौका देख मैं भी घर से बाहर निकल गई. मुझे लगा मेरा भाई और बाकी पड़ोस के बच्चे बाहर खेल रहे होंगे. लेकिन जब बाहर गई तो वहां कोई नहीं था. मैंने वो सारी जगह छान मारी जहां वो हो सकते थे. पर मेरे हाथ कुछ नहीं लगा.

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मैं उनका इंतजार करने लगी. बहुत देर तक कोई नहीं दिखा. बगल में एक बांस की करची पड़ी थी. मैंने उसे उठाया और गीली मिट्टी में कुछ-कुछ ड्राइंग बनाने लगी. तभी पीछे से अचानक भारी आवाज आई. मैंने पलट के देखा तो वही अंकल थे. वही जो बुआ से अक्सर बात करने आते थे. मैंने कहा जी अंकल.

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उन्होंने पूछा, अरे तुम्हारी फौज कहां है. आज अकेली खेल रही हो. मैंने कहा पता नहीं, बाकी लोग कहां चले गए हैं. क्या आपने देखा वो कहां खेल रहे हैं. कहीं आपके घर की तरफ वाले मैदान में तो नहीं खेल रहे.

लेकिन वहां तो मम्मी ने जाने से मना किया है. उन्होंने मेरी बातों का जवाब दिया. नहीं वो वहां नहीं हैं, पर मैं जानता हूं वो कहां खेल रहे हैं. मैंने कहा सच में आप जानते हैं. वो कहां हैं. उस अंकल ने अपनी गर्दन हिलाई और कहां चलो. मैं ले चलता हूं. पर मैंने मना कर दिया.

मेरे घर के बगल में एक दुकान थी. वो अंकल वहीं जाकर बैठ गए. दुकान वाले से कुछ बात करने लगे. थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे फिर आवाज लगाई. मैं उनके पास गई. उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाया और फिर कुछ-कुछ बात करने लगे. दुकानदार से. धीरे-धीरे उन्होंने अपना हाथ मेरे फ्राक के ऊपर फेरना शुरू किया.

वो मुझे नीचे छूने लगे. मुझे अजीब लगा. कुछ गंदा भी महसूस होने लगा. मैंने थोड़ा तेजी से पैर हिलाया. फिर वे संभल गए. मैं उनसे खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी. पर उन्होंने मुझे जाने नहीं दिया.

कहने लगे कि अरे क्या हुआ तुम्हें. अभी तो तुम्हें खेलने जाना था. चलो मैं लेकर चलता हूं. फिर वो दुकानदार गुप्ता जी से कहते हैं, ठीक है मैं चलता हूं. बच्ची को खेलना है भाइयों के साथ. गुप्ता जी ने कुछ नहीं कहा. जैसे वो जानते हो सारी चीजे.

मैं उस अंकल के साथ नहीं जाना चाहती थी. पर उन्होंने मुझे जबरदस्ती गोद में उठा लिया. और कहीं लेकर जाने लगे. मैंने उनको मना किया. पर उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी. पहले मुझे वो एक दुकान ले गए. वहां कुछ चॉकलेट खरीदकर मेरे हाथ में पकड़ा दिया और कुछ जबरदस्ती मेरे मुंह में डाल दिया. ताकि मैं कुछ बोल ना सकूं. फिर मुझे वो एक सुनसान रास्ते की तरफ ले जाने लगे.

मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था. मुझे कुछ कुछ समझ में आ रहा था. मेरे साथ कुछ बुरा होने वाला है. चलते-चलते वो मुझे आम के बगीचे तक ले गए. और वहां जबरदस्ती मुझे चूमने की कोशिश करने लगे. मैंने अपना मुंह घुमा लिया. और जिद करने लगी मुझे घर जाना है. घर जाना है. जिस रास्ते से वो मुझे लेकर जा रहा थे. वहां मैं कई बार अपनी दोस्त के साथ जा चुकी थी.

वहां के कुछ लोग मुझे पहचानते थे. मैंने कहा अंकल मुझे छोड़ दीजिए. घर जाना है. मम्मी ढूंढ रही होगी. वो मुझे और अंदर की तरफ लेकर जाने लगा. मानों जैसे उस दिन उसने तय कर लिया था कि वो अपनी गंदी मंशा को पूरी करके रहेगा. उस उम्र में मुझे नहीं पता था कि हवस क्या चीज होती है.

लेकिन उसकी आंखों को देखकर समझ गई थी कि ऐसी हरकत करने वालों की नजरें कैसे होती हैं. पता नहीं उस दिन उसके अंदर कौन सा जानवर था. जो बाहर आना चाहता था. और मुझे नोच खाना चाहता था. उसकी आंखें आज भी मुझे डराती हैं. वो अपनी प्यास बुझाना चाहता था. मेरा रेप करना चाहता था.

वो रेप करने की जगह तलाशने लगा. मेरे मुंह में कपड़ा ठूस दिया. मेरे शरीर को गंदी तरह छूने लगा. मेरे फ्रॉक उठाकर उसने मेरे प्राइवेट पार्ट पर जोर से काटा. मैं चिल्लाई. जोर से चीखी. पर आवाज बाहर नहीं गई. वो मेरे तक ही रह गई. क्योंकि उसने मेरे मुंह में कपड़ा जो ठूंस रखा था.

मेरे हाथ से उसने चॉकलेट छीना. फिर चॉकलेट का पॉकेट फाड़ा. मेरे प्राइवेट पार्ट पर लगाया और कुछ करने की कोशिश की. तब तक कोई बगीचे की तरफ उसे कोई आता हुआ दिखा. उसने मुझे छोड़ दिया. मेरे मुंह से कपड़ा भी निकाल दिया. और मेरे आंसू पोछ दिए. मुझे गोद में उठाया. और आगे ले जाकर छोड़ दिया.

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कहा खुद से घर चली जाओ. कहीं रुकना मत. सीधा रास्ता है. मैं रोते-रोते अपने घर पहुंच गई. मम्मी ने देखा. पहले दो थप्पड़ लगाए. और गुस्से में पूछने लगी. कहां थी. शाम हो गई है. किससे पूछकर बाहर गई थी. मैंने कोई जवाब नहीं दिया.

बोलती भी क्या. मेरी हालत उस वक्त कुछ बोलने की थी भी नहीं. मेरे साथ क्या हुआ. और क्या हो सकता था. मुझे इसका इल्म भी नहीं थी. मैंने कुछ नहीं बोला. पैर धोए. कमरे में गई और सो गई.

मम्मी को मेरा व्यवहार कुछ अजीब लगा. उन्होंने मुझे जगाया. और पूछा क्या हुआ. मैंने कुछ नहीं बोला. कई महीने बीत गए. मैंने अपनी बात किसी को भी नहीं बताई. मेरे साथ क्या हुआ है. मैं किस चीज से गुजर रही हूं.

मैं क्या महसूस करती हूं. हर रोज किसी दर्द से गुजर रही हूं. क्या मेरी उम्र इतनी थी कि मैं दर्द को छुपा पाती. सिर्फ 8 साल की थी. सिर्फ आठ साल. क्या सच में बता पाना इतना मुश्किल होता है. बचपन में ही मैंने कैसे ये तय कर लिया कि मेरे साथ जो हुआ. उसमें मेरी गलती थी. मेरे साथ बिल्कुल ठीक हुआ. और तो और उस घटना के बाद मुझे लगता था मैं एक गंदी लड़की हूं.

ये गंदी लड़की क्या होती है? ये सब मेरे दिमाग में आया कहां से. मैं 14 सालों से इस हादसे को अपनी अंदर क्यों दबाए हूं. मैंने कभी किसी को बताया क्यों नहीं. या शायद मैंने बताया. पर किसी ने समझा नहीं.

मैं ये दावे के साथ कह सकती हूं कि मुझ जैसी ऐसी हजार लड़कियां हैं जो खुद को अपने साथ हुई प्रताड़ना का शिकार मानती हैं. उस बात को 14 साल बीत चुके हैं. पर खुद को कैसे समझाऊं जो हुआ उसे भूल जाओ. क्या भूलने से सब ठीक हो जाएगा?

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