क्या है जौनपुर किडनैपिंग केस? जिसमें दोषी करार दिए गए पूर्व सांसद धनंजय सिंह, आज सुनाई जाएगी सजा

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Bahubali Dhananjay Singh: उत्तर प्रदेश के जौनपुर से पूर्व लोकसभा सांसद और बाहुबली नेता धनंजय सिंह को अपहरण और जबरन वसूली मामले में दोषी ठहराया गया है और अब उन्हें सजा सुनाई जाएगी. फिलहाल कोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया है और माना जा रहा है कि आज उन्हें इस मामले में सजा सुनाई जाएगी. एक समय था जब धनंजय सिंह की लोकप्रियता थी और वे पूरे यूपी में एक ताकतवर नेता के रूप में जाने जाते थे, लेकिन अब उनके प्रभाव पर अंकुश लगा दिया गया है.

क्या है जौनपुर किडनैपिंग केस?

दरअसल, उत्तर प्रदेश के जौनपुर से पूर्व सांसद और जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव धनंजय सिंह को नमामि गंगे के इंजीनियर से रंगदारी और अपहरण के मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया है. 2020, लेकिन आखिर ये पूरा मामला क्या है, जिसने एक बाहुबली को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, आइए ये भी बताते हैं.

चुनाव की तैयारियों में लगे धनंजय सिंह को जेल

आपको बता दें कि 10 मई 2020 को मुजफ्फरनगर के लाइन बाजार में रहने वाले नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने धनंजय सिंह और उनके साथी विक्रम के खिलाफ रंगदारी और अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था. अधिकारी का आरोप था कि विक्रम अपने दो साथियों के साथ उसका अपहरण कर धनंजय सिंह के घर ले गया था.

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धनंजय सिंह ने उनके घर पर जाकर धमकी दी थी

इसके अलावा पीड़ित ने आरोप लगाया था कि धनंजय सिंह पिस्तौल लेकर उनके घर आए और उनके साथ गाली-गलौज करने लगे और घटिया क्वालिटी का सामान इस्तेमाल करने का दबाव बनाने लगे. ऐसे में जब पीड़ित ने इन सब बातों से इनकार किया तो उससे बड़ी फिरौती भी मांगी गई. ऐसे में शिकायत के आधार पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर धनंजय सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

राजनीतिक सफर प्रभावशाली रहा है

हालाँकि बाद में उन्हें जमानत मिल गई, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. कल उन्हें दोषी करार दिया गया और संभव है की आज उन्हें सजा भी सुनाई जाएगी. गौरतलब है कि धनंजय सिंह 2002 के विधानसभा चुनाव में 27 साल की उम्र में निर्दलीय विधायक बने थे. इसके बाद 2007 में वह जेडीयू के टिकट पर विधायक बने. इतना ही नहीं, वह बसपा में भी शामिल हो गए और 2009 में लोकसभा चुनाव लड़कर जौनपुर के माननीय सांसद बने.

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पुलिस ने 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया

अपराध जगत में धनंजय सिंह का नाम तब तेजी से उभरा, जब 1997 में BSP नेता मायावती के शासनकाल में बन रहे अंबेडकर पार्क से जुड़े लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की ठेकेदारी के विवाद में हत्या कर दी गई. इस मामले में धनंजय सिंह पर आरोप लगा और वह फरार हो गए. सरकार ने उन पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया.

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दो साल बाद 1999 में धनंजय सिंह ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया, लेकिन इस दौरान उनका नाम 1997 में राजधानी के मशहूर लॉ मार्टिनियर कॉलेज के असिस्टेंट वार्डन फ्रेडरिक गोम्स हत्याकांड और संतोष सिंह हत्याकांड से भी जुड़ा. जो हसनगंज थाना क्षेत्र में हुआ. उन पर लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता अनिल सिंह वीरू की हत्या के प्रयास का भी आरोप था.

जब पुलिस ने मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया था

कोर्ट में सरेंडर करने के बाद भी ठोस सबूत के अभाव में धनंजय सिंह इंजीनियर हत्याकांड से बरी हो गये. पुलिस ने इस हत्या के बाद से फरार चल रहे धनंजय और उसके तीन साथियों को 1998 में भदोही में एक मुठभेड़ में मारने का दावा किया था। बाद में पता चला कि मारे गए चारों युवक निर्दोष थे। इस मामले में 22 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया था, जो अभी भी जिला सत्र न्यायालय में लंबित है.

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