4 कारतूस के आरोप में 26 साल में 250 बार कोर्ट के चक्कर काटे, आधी जिंदगी और कमाई भी गंवाई; अब पुलिस ने कहा, नहीं मिले सबूत

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JUSTICE DELAYED JUSTICE DENIED : कहते हैं भले ही 99 गुनहगार छूट जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए। बात बिल्कुल ठीक है लेकिन देश में अदालतों की जो हालत है उसमें खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए कई साल का वक्त लग जाता है। कहते हैं मुकदमा पिता पर शुरु होता है और लड़ता उसका बेटा है।

1995 में हुई थी गिरफ्तारी

उत्तर प्रदेश के शामली जिले के बनत कस्बे में रहने वाले सलाउद्दीन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। सलाउद्दीन को इंसाफ पाने के लिए 26 साल की एक लंबी जद्दोजहद करनी पड़ी और आखिरकार 26 साल बाद के दामन पर लगा दाग धुल गया जब कोर्ट ने सलाउद्दीन को आरोपों से बरी कर दिया। साल 1995 में सलाउद्दीन को गिरफ्तार किया गया था।

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मुकदमें के मुताबिक पुलिस को इत्तिला मिली थी कि कुछ लोग हथियार लेकर एक जगह से दूसरी जगह जा रहे थे। पुलिस ने ट्रैप लगाया और जब सलाउद्दीन की तलाशी ली गई तो उसके कब्जे से पुलिस को चार ज़िंदा कारतूस मिले। पुलिस ने सलाउद्दीन को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया।

कुछ दिन बाद ही सलाउद्दीन ने जमानत के लिए अर्जी डाली और कोर्ट ने सलाउद्दीन को जमानत भी दे दी। सलाउद्दीन जमानत पर बाहर निकल आया था लेकिन उसे इंसाफ के लिए इतनी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी इसका अंदाजा उसे नहीं था।

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गुजरते वक्त के साथ कोर्ट की तारीखें भी बढ़ती जा रही थीं लेकिन जितना सोचा था उतनी जल्दी इन तारीखों से छुटकारा नहीं मिलने वाला था। गिरफ्तारी के चार साल बाद पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी।

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250 बार पड़ी कोर्ट में तारीख

17 जुलाई 1999 को सलाउद्दीन पर आरोप तय कर दिए गए। पुलिस से सलाउद्दीन के खिलाफ कोर्ट में सबूत पेश करने के लिए कहा गया। तारीख पर तारीख निकलती गई लेकिन हर बार अभियोजन पक्ष सबूत पेश करने की तारीख बढ़वा कर टाइम पास करता रहा। । 26 साल की लंबी कानूनी लड़ाई में पीड़ित ने लगभग 250 से अधिक कोर्ट की तारीखें भुगतनी पड़ी।

पुलिस हर बार बहाना बनाकर सबूत पेश करने से बचती रही। कोर्ट ने 20 साल बाद 8 अगस्त 2019 को सबूत पेश करने का टाइम खत्म कर दिया। 20 साल गुजर गए अभियोजन पक्ष सलाउद्दीन के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं पेश कर पाया और ना ही पुलिस ने कोर्ट में माल मुकदमा पेश किया। 25 साल का वक्त बीत चुका था लेकिन सलाउद्दीन का इंसाफ के लिए इंतजार अभी बाकी था।

कोर्ट में सबूत पेश करने का वक्त खत्म होने के बाद सीजेएम कोर्ट में आरोपी का धारा-313 के तहत बयान लिया गया। सलाउद्दीन ने खुद पर लगे आरोपों को निराधार बताया। इसके बाद जज ने दोनों पक्षों की सुनवाई कर आरोपी सलाउद्दीन को संदेह का लाभ देते हुए 10 नवंबर को बरी कर दिया।

26 साल तक सलाउद्दीन को इंसाफ पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी लेकिन सच कभी ना कभी तो सामने आ ही जाता है भले ही उसमें वक्त लगे। इस देश में ना जाने कितने सलाउद्दीन मौजूद हैं जो इंसाफ पाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं ।

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