Real Horror story in Hindi : गया में 100 साल बाद भी चाय-बिस्किट, क्यों मांग रहा है अंग्रेज अफसर का भूत?

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Horror story in Hindi : कोई है जो रोज़ भटकता है इस क़ब्रिस्तान में...अपनी ख़्वाहिशें के साथ...हाथ में छड़ी और सिर पर हैट...ये अजीबोगरीब पहनावा इसलिए क्योंकि ये एक अंग्रेज था...था इसलिए क्योंकि अब से कोई सौ साल पहले इसकी मौत हो चुकी है...मगर ख़्वाहिशें है कि मौत के बाद भी उसे मरने नहीं देतीं..

ये अनहोनी दास्तान है बिहार के गया शहर की...इलाक़ा है इक़बाल नगर...और अपनी छोटी सी ख़्वाहिश लिए जो रूह अक्सर लोगों से दो चार होती है उसका नाम हुआ करता था..ओवेन टॉमकिन्सन...एक अंग्रेज़ अफ़सर...जिसकी मौत हुई सन् 1906 में...मगर आज भी...115 साल से ज्यादा वक़्त गुज़रने के बाद भी...वो भटक रहा है...सुनने में भले ही अजीब लगे मगर इस रुह को बस यही चाहिए...चाय औऱ बिस्किट...और वो हर रात अपनी इसी हसरत को लिए इस पूरे इलाक़े में चहलकदमी करता दिखाई देता है...

किसी रुह का सामने आना और चाय बिस्किट या केक मांगना हैरत में तो डालता है...मगर उस ताक़तवर रुह की इस अजीबोगरीब ख़्वाहिश के गवाह कई हैं...ये भी सही है कि जिस क़बिस्तान से उस रुह की आमद होती है...वहां ज्यादातर क़ब्रें छोटे बच्चों की हैं...

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तो क्या ये माना जाए कि किसी हादसे का शिकार हुआ ये अंग्रेज़ परिवार अपने किसी बच्चे की अधूरी ख़्वाहिश पूरी करने के लिए ऐसा करता है...तय करना तो मुश्किल है मगर ये सच है कि अगर उस अंग्रेज ने आदेश दिया तो ...या तो उसे चाय बिस्किट देना पड़ता है..या फिर सुबह पहुंचाने का वादा करना पड़ता है...तभी मुमकिन है उससे छुटकारा..

ओवन टामकिन्सन की रुह की इस अनोखी ख़्वाहिश से लोग ख़ौफ़ज़दा तो हैं...मगर ज़िंदगी थम गई हो ऐसा भी नहीं है...क्योंकि इस छोटी सी ख़्वाहिश को पूरा करना किसी के लिए भी मुमिकन हो जाता है...ऐसा भी हुआ कि इस रुह को अपनी हदों में महदूद रखने की कोशिशें भी की गईं...

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मगर ये रुह कुछ अरसे बाद फिर दिखाई देने लगी...अपनी उसी ख़्वाहिश के साथ...चाय और बिस्किट...आखिर वो रुह ऐसा करती क्यूं है...क्या कहानी है इसके पीछे....ये एक ऐसा सवाल है जो पिछली एक सदी से इस पूरे इलाके में उस रुह के मानिंद अपने जवाब की तलाश में भटक रहा है...

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किसी रुह का सामने आना और चाय बिस्किट या केक मांगना हैरत में तो डालता है...मगर उस ताक़तवर रुह की इस अजीबोगरीब ख़्वाहिश के गवाह कई हैं...ये भी सही है कि जिस क़बिस्तान से उस रुह की आमद होती है...वहां ज्यादातर क़ब्रें छोटे बच्चों की हैं...

तो क्या ये माना जाए कि किसी हादसे का शिकार हुआ ये अंग्रेज़ परिवार अपने किसी बच्चे की अधूरी ख़्वाहिश पूरी करने के लिए ऐसा करता है...तय करना तो मुश्किल है मगर ये सच है कि अगर उस अंग्रेज ने आदेश दिया तो ...या तो उसे चाय बिस्किट देना पड़ता है..या फिर सुबह पहुंचाने का वादा करना पड़ता है...तभी मुमकिन है उससे छुटकारा...

ओवन टामकिन्सन की रुह की इस अनोखी ख़्वाहिश से लोग ख़ौफ़ज़दा तो हैं...मगर ज़िंदगी थम गई हो ऐसा भी नहीं है...क्योंकि इस छोटी सी ख़्वाहिश को पूरा करना किसी के लिए भी मुमिकन हो जाता है...ऐसा भी हुआ कि इस रुह को अपनी हदों में महदूद रखने की कोशिशें भी की गईं...

मगर ये रुह कुछ अरसे बाद फिर दिखाई देने लगी...अपनी उसी ख़्वाहिश के साथ...चाय और बिस्किट...आखिर वो रुह ऐसा करती क्यूं है...क्या कहानी है इसके पीछे....ये एक ऐसा सवाल है जो पिछली एक सदी से इस पूरे इलाके में उस रुह के मानिंद अपने जवाब की तलाश में भटक रहा है...

एक गुफा जहां लोग जाते तो हैं मगर लौटते नहीं!

Horror story Hindi : कौन था...ओवेन टॉमकिन्सन जिसे अपनी मौत के सौ साल गुज़र जाने के बाद भी अपनी क़ब्र में चैन नहीं...वो क्यों राहगीरों से चाय केक और बिस्किट जैसी अजीबोगरीब फ़रमाईश करता है...कोई नहीं जानता...इतिहास सिर्फ़ इतना बताते हैं कि वो एक ब्रिटिश सैनिक था और यहीं तैनात था...बात 1906 की है जब यहां एकाएक हैजा फैला और 47 साल का ओवेन 19 सितंबर 1906 में उसकी चपेट में आ गया...

और यहीं उसे क़ब्र नसीब हुई...वक़्त बीता ब्रिटिश राज बीता...मगर उस राज का ये सिपाही आज भी यहां घूमता...अपनी अनोखी चाहत के साथ...इक़बाल नगर के लोग बताते हैं कि कुछ साल पहले तक तक तो ओवेन की रुह अक्सर रात के सन्नाटे में रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती थी....और छोड़ती भी तब थी जब उसे चाय और बिस्किट का नज़राना पेश कर दिया जाता...हालात ऐसे हो गए कि लोगों ने इधर का रुख़ करना ही बंद कर दिया...

ओवेन का हर रात भटकना और अपनी अनोखी मांगों को लेकर लोगों को परेशान करना बीच में इतना बढ़ गया कि हद ही हो गई....मगर एक रोज़ उसका पाला अपने से मज़बूत ताक़त से पड़ गया...लोग बताते हैं कि इसी रास्ते पर एक बार अपने टमटम पर सवार होकर एक फ़कीर गुज़र रहे थे...जिनका नाम था चांद साहब..

अपनी आदत से लाचार ओवेन ने उनका भी रास्ता रोक लिया और अपनी वही पुरानी ख़्वाहिश दोहराई...चाय और बिस्किट...चांद साहब ओवेन को पहचान गए...और वादा कर गए कि कल वो आएंगे उसकी अजीबोगरीब चाहत को पूरा करने...

मगर ये कुछ बददिमाग़ लोगों की बदमाशी कहिए या फिर ओवेन की क़िस्मत...कुछ ऐसा हुआ जिसने आयतों से बंधे ओवेन के सोए हुए भूत को बोतल से निकाल दिया....और ओवेन एक बार फिर आज़ाद था...अपने उसी जुनून के साथ चाय और बिस्किट...

हैदराबाद का वो कॉलेज, जहां भूत पढ़ते हैं साइंस!

छड़ें निकाले जाने से ओवेन आज़ाद तो ज़रूर हो गया मगर इसे उन फ़क़ीर की ताक़त कहिए कि उसकी हरकतों पर कुछ लगाम ज़रूर लग गई....मगर गाहे बगाहे वो फिर अचानक प्रकट होता रहा और लोग उसकी चाहत को न चाहते हुए भी पूरा करते रहे...इस पूरे वाक्ये में हैरानी की बात ये है कि भले ही लोग उसे डरें...मगर उससे नफ़रत करने वाला यहां कोई नहीं मिलता....

अजीब देश है ये...लंबे अरसे तक साथ रहने वाले इंसानों को तो अपना ही लेता है...रुहों को भी नफ़रत की नज़र से नहीं देखता...हर कोई कहता है कि वो रुह बस चाय बिस्किट ही तो मांगती है...किसी का नुकसान तो नहीं करती...

गया के इक़बाल नगर का ये क़ब्रिस्तान दरअसल है ही इतना अनूठा कि यहां क़दम रखते ही कुछ अलग सा अहसास होता है...बात की जाए यहां की क़ब्रों पर की गई नक़्काशी की या फिर क़ब्रों की वास्तुशिल्प की...देश में ऐसा कोई दूसरा क़ब्रिस्तान नहीं होगा जिसकी क़ब्र का ऊपरी हिस्सा पत्थर से बने होने के बावजूद किसी छतरी की तरह घूमता हैं और अजीब सी आवाज़ निकालता है...

कहीं ख़ौफ़ की दास्तान के पीछे एक वजह ये तो नहीं...हालांकि इन सब अचरजों के बीच इक़बाल नगर की ज़िंदगी ओवेन की रुह के साथ जीना सीख चुकी है...वो लोग जो ओवेन की रुह से बाकायदा मिल चुके हैं उनमें से कई अब भी उसी राह से गुज़रते हैं...हालांकि मन ही मन में वो ये ज़रूर मनाते हैं...कि उनका फिर ओवेन से सामना न हो...बात सही भी है

रुह भले ही कितनी सीधी सादी हो...वो है तो फिर रुह ही...ओवेन की ये अजीबोगरीब दास्तान..कुछ पढ़े लिखे लोगों को चौंकाती भी है...वो नहीं मानते कि कोई ऐसी रुह है...और उनकी इस दलील का आधार है ओवेन से जुड़ी वो अनोखी ख़्वाहिश...जिसमें वो कहता है मुझे चाय और बिस्किट दो...

वो इंसानी खाल का सूट बना रहा था ताकि वो अपनी मरी मां के जिस्म में घुस सके

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि अगर किसी भी क़िस्से की हक़ीक़त को परखे बग़ैर उसे हवा दी जाती रहे...वो किस्सा धीरे धीरे असलियत जैसा मालूम पड़ने लगता है...और गांव के सीधे सादे लोगों का ज़ेहन उन्हें रस्सी को भी सांप समझने पर मजबूर कर देता है...

जिस क़ब्रिस्तान से इस ख़ौफ़नाक रुह का ताल्लुक है दरअसल वो अब इस्तेमाल से दूर है...ईसाई समुदाय ने पिछले कई दशकों से यहां से किनारा कर रखा है...यहां आसपास ऐसे भी लोग मिल जाते हैं जो अरसे से यहां आबाद हैं और उनकी ज़िंदगी में कभी भी ये ख़ौफ़नाक इत्तिफ़ाक पेश नहीं आया....

मगर ऐसे लोगों के साथ ही कुछ और ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने न सिर्फ़ ओवेन की रुह को देखा है बल्कि उससे हाथ भी मिलाया है...वो आख़िर क्यूं वो इस अफ़वाह का हिस्सा बन रहे हैं जबकि उन्हें इसका कोई फ़ायदा नहीं होने वाला....

इक़बाल नगर में एक जमात ऐसी भी है जो ओवेन की रुह से मिली तो नहीं मगर उसके वजूद पर उन्हें कोई शक़ नहीं हैं....

बहरहाल मनोवैज्ञानिकों के साथ साथ यहां का ईसाई समुदाय भी इन सारी बातों को कोरे क़िस्से करार देता है...दबी ज़ुबान में कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि क़ब्रिस्तान की इस साढ़े तीन एकड़ की ज़मीन पर कुछ भूमाफ़ियाओं की नज़र है और इन सारी कहानियों के पीछे कहीं न कहीं उनका हाथ भी है....

मगर ये सब कुछ जानने के बावजूद तमाम लोग ओवेन की रुह और उसकी ख़्वाहिश को लंबे अरसे से यक़ीन का जामा पहनाते चले आ रहे हैं...और इससे पहले कि ओवेन उनसे कोई फ़रमाइश करे...वो ख़ुद इस क़ब्र पर हाज़िर हो जाते हैं...साथ लेकर...चाय बिस्किट या केक...

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