अगर वो किताब ना पढ़ते तो 165 साल से इस कुएं में 282 क्रांतिकारियों की मौत का राज दफ्न ही रह जाता

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1857 Kranti ki Kahani : किताबें वाकई हमेशा कुछ नया सिखाती हैं. दुनिया के बारे में बताती हैं. कई बार कुछ ऐसा सच सामने ला देती हैं जिससे दुनिया अंजान होती है. किताब पढ़ने के शौकीन एक शख्स ने दुनिया के सामने ऐसा सच ला दिया जो भारत के इतिहास में 165 साल से कहीं गुम था.

जिसे जानकर एक बार फिर से हमें अंग्रेजी शासन पर गुस्सा आएगा. ना सिर्फ गुस्सा बल्कि उन अंग्रेजों की इस हरकत पर खून खौल उठेगा. और ये खून का खौलना लाजमी भी है. क्योंकि इसमें एक या दो नहीं बल्कि पूरे 282 सैनिकों को या तो गोली मारी गई या फिर उन्हें जिंदा ही एक कुएं में दफना दिया गया.

ठीक वैसे ही जैसे जालियांवाला बाग में जनरल डायर ने फायरिंग करवा दी थी. जिसमें लोग जान बचाने के लिए कुंए में कूद गए थे. जालियावाला कुएं से 120 लोगों के शव निकाले गए थे. उस गहरे जख्म के निशान आज भी हैं. ये घटना भी उसी तरह की भयावह और दिल को झकझोर देने वाली है.

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इन 282 सैनिकों की मौत वाली घटना में जिस कुएं में इन्हें दफनाया गया उस कुएं को ऊपर से बंद कर बकायदा उस पर गुरुद्वारा बना दिया गया. इस कुएं को कालियांवाला कहते हैं. अब इस कालियांवाला कुएं का ये राज हमेशा के लिए उसी गहरे कुएं में दफ्न हो गया होता. अगर वो किताब एक भारतीय के हाथ ना लगा होता. आज क्राइम की कहानी (Crime Story in Hindi) में बेहद ही चौंकाने और अंग्रेजी हूकुमत की बेहद ही शातिराना क़त्लेआम की कहानी.

Ajnala Massacre Ki kahani : इस कहानी की शुरुआत होती है साल 2012 के आसपास से. अमृतसर के इतिहासकार और शोधार्थी सुरिंदर कोचर (Historian Surinder Kochhar) देश और दुनिया में इतिहास की किताबों पर शोध किया करते हैं. वो इतिहास को खंगालते हुए अंग्रेजी शासन की किताबों को खोजकर पढ़ रहे थे.

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उसी दौरान एक किताब पढ़ते हुए उनके हाथ कांपने लगे. माथे से पसीना टपकने लगा. वो खुद कई इतिहास से जुड़े थे. लेकिन इतिहास में दफ्न इस राज को पढ़ते हुए उनकी आंखों में गुस्सा और आंसू दोनों आ गए. क्योंकि ये घटना कुछ वैसी ही थी.

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दरअसल, 1857 में पंजाब के अमृतसर में डिप्टी कमिश्नर रह चुके फ्रेडरिक हेनरी कूपर की एक किताब सुरिंदर कोचर के हाथ लगी थी. उस किताब का नाम था...'क्राइसिस इन पंजाब : फ्रॉम 10 मई अनटिल फॉल ऑफ दिल्ली' (Crisis in Punjab : From 10 May Untill Fall Of Delhi). इस किताब में ये बताया था कि जिस 10 मई 1857 को भारतीय सैनिकों ने हमारी ताकतवर अंग्रेजी सेना के खिलाफ आवाज उठाई थी.

उस सेना में कुछ गद्दार थे जिनकी वजह से कई इलाकों में भारतीय अक्रामक हो गए थे. लेकिन उन गद्दारों को किस तरह से अंग्रेजी सेना ने ना सिर्फ नेस्तोनाबूद कर दिया बल्कि ऐसा सबक सिखाया जो सदियों तक याद रखा जाएगा.

इसी को बताते हुए ये भी लिखा था कि उस समय के पंजाब के मियां मीर इलाके में तैनात बंगाल की नेटिव इन्फैंट्री की 26वीं रेजीमेंट के 500 सैनिकों ने भी बंगाल से शुरू हुए 1857 की क्रांति का बिगुल फूंक दिया था. ये मियां मीर अब पाकिस्तान में है. उसी मियां मीर से 500 सैनिक पूर्वी पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे थे.

1857 revolt ki Kahani Hindi me : अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक हेनरी कूपर (Fredric Henary Cooper) ने ये भी लिखा था कि उन 500 सैनिकों की वो टुकड़ी रावी नदी के तट पर पहुंच गई. ये वाकया है 31 जुलाई से 1 अगस्त 1857 के बीच का. अब रावी नदी तक इन सैनिकों के पहुंचने में कुछ गद्दारों ने उनका साथ दिया था. (असल में अंग्रेजों ने भारत के देशभक्तों को गद्दार कहा था जो 1857 की क्रांति के समय भारतीय सैनिकों की मदद कर रहे थे).

अब कूपर ने किताब में ये भी लिखा है कि जब इसकी खबर मिली तो अंग्रेजों ने हिम्मत दिखाते हुए 500 में से 218 सैनिकों की गोली मारकर हत्या कर दी. जबकि बचे हुए 282 सैनिकों को गिरफ्तार कर अमृतसर के अजनाला ले जाया गया.

उसी अजनाला जगह पर 282 सैनिकों को खड़ा कर दिया गया. इनमें से 237 सैनिकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई. बाकी बचे 45 सैनिकों को वहां के एक कुएं में जिंदा ही फेंक दिया गया. इसके बाद जिन 237 भारतीय सैनिकों को गोली मारी गई थी उनकी डेडबॉडी को भी उसी कुएं में फेंक दिया गया.

इसके बाद उस पर मिट्टी और चूना डालकर कुएं को बंद कर दिया गया. जिससे सभी 282 सैनिकों की मौत हो गई. इसके बाद उसी समय इस राज को हमेशा के लिए दफनाने के लिए कुएं के ऊपर ही एक गुरुद्वारे का निर्माण कर दिया गया. अब चूंकि गुरुद्वारा धर्म से जुड़ा और भारत में धार्मिक स्थान से छेड़छाड़ करना एक तरह से अंसभव है.

Crime Stories in Hindi : अब ये घटना जानने के बाद जाहिर है कोई भी हैरान रह जाएगा. क्योंकि अभी तो हम जालियांवाला बाग कांड को ही याद कर सिहर जाते हैं. ऐसे में पंजाब के अजनाला में (Kallianwala Khoo) कालियांवाला खूह (खूह यानी कुआं) की असलियत जानकर वाकई में खून खौल उठेगा. इसकी जानकारी मिलते ही इतिहासकार सुरिंदर कोचर उसी गुरुद्वारे पर आते हैं जहां के कुएं में उन 282 क्रांतिकारियों को दफनाया गया था. अमृतसर के पास अजनाला के इस गुरुद्वारे का नाम था शहीद गंज गुरुद्वारा (Gurdwara Shaheed Ganj).

अब सवाल ये था कि जहां गुरुद्वारा है उसी जगह एक कुएं में सैकड़ों शहीद क्रांतिकारियों को दफनाया गया है. अब मामला धर्म से जुड़ा था कि आखिर कैसे यहां से गुरुद्वारे को शिफ्ट किया जाए. चूंकि धर्म से जुड़े होने के कारण लोगों की भावनाएं आहत होंगी. लेकिन इस तरह की जानकारी पहले से पुराने लोगों को थीं लेकिन कोई साक्ष्य नहीं था.

ऐसे में ये सब बेहद ही मुश्किल काम था. लेकिन सुरिंदर कोचर लगातार प्रयास करते रहे. उन्होंने सरकारी अधिकारियों को भी इसकी जानकारी दी. उस किताब को भी दिखाया. जिसके बाद उस वक़्त के पंजाब कल्चरल अफेयर्स म्यूजियम और आर्कियोलॉजी के डायरेक्टर नवजोत रंधावा, अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर रवि भगत भी सुरिंदर कोचर के साथ गुरुद्वारा कमेटी से बात करने आए तो इस बात पर सहमति बन गई. ये बात तय हुई कि गुरुवारे को शिफ्ट किया जाएगा और खुदाई की जाएगी. जिससे पूरा सच सामने आ सकेगा.

The Indian Express की एक रिपोर्ट के अनुसार, अब गुरुदारा कमेटी ने उस जानकारी के बाद पहले दूसे स्थान पर गुरुदारे का निर्माण शुरू किया. फिर जनवरी 2014 में पहले उस नए गुरुद्वारे का शुभारंभ किया.

इसके बाद 28 फरवरी 2014 से कालियांवाला कुएं वाले स्थान पर गुरुद्वारे की खुदाई शुरू की गई. अब खुदाई के दौरान वो कुआं भी मिल गया जिसका उस अंग्रेज फ्रेडरिक हेनरी कूपर ने जिक्र किया था. उस कुएं की खुदाई हुई तो पूरा का पूरा वो नरकंकाल से भरा हुआ था.

उस समय खुदाई के दौरान कुएं से 246 पुरुषों के नरकंकाल मिले थे. उस कुएं से इंसानी जबड़े, दांतों, शरीर की अलग-अलग जगहों की हड्डियों के साथ सिक्के, ज्वैलरी और मेडल भी मिले थे. इस दौरान कुएं से कुल 9 हजार 646 दांतों के सैंपल मिले थे. इसे लेकर दावा किया जाता है कि ये दुनिया में किसी सिंगल आर्कियोलॉजिकल साइट से मिले दांतों के सैंपल में अब तक का सबसे ज्यादा है.

यानी जितने दांत इस एक स्थान से मिले उतने दांत दुनिया में कहीं अभी तक नहीं मिले. अब पंजाब यूनिवर्सिटी के एंथ्रोपोलॉजी विभाग के प्रमुख जे.एस. सेहरावत की अगुवाई में सैंपल की जांच शुरू की गई. इस जांच में यूपी के वाराणसी स्थित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी यानी BHU की एक टीम और हैदराबाद की मॉलीक्यूलर बॉयोलॉजी समेत अन्य कई यूनिवर्सिटी की भी टीमें इस रिसर्च में जुट गईं थीं.

असल में जब कुएं से भारी संख्या में नरकंकाल निकाले गए तब ये रिसर्चर ने अलग-अलग राय दी थी. कई रिसर्चर ने उस समय दावा किया था कि ये उन लोगों की लाशें हैं जो 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान मारे गए और कुएं में दफना दिए गए. तो कुछ 1857 की क्रांति वाली बात को ही सही मान रहे थे. इसीलिए 2014 से शुरू हुई रिसर्च के 8 साल बाद अब पूरा सच सामने आया है.

1857 Ki Kranti ki Kahani : अब 28 अप्रैल 2022 को स्विट्जरलैंड के जर्नल फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स (journal Frontiers in Genetics) में पूरी रिपोर्ट प्रकाशित की गई. इस रिपोर्ट में जो कुछ आया उसे जानकर अंग्रेज फ्रेडरिक हेनरी का किताब में किया गया दावा ही सच साबित हुआ. रिपोर्ट में सामने आया है कि जिन दांतों को सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा गया था. उनमें से 85 सैंपल से पूरी रिपोर्ट सामने आई.

असल में इन दांतों से डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस की गई. ये बता दें कि डीएनए एनालिसिस से जहां इंसान के अनुवांशिक रिलेशन की जानकारी मिलती हैं वहीं आइसोटोप विश्लेषण से ये पता चलता है कि मरने वाले इंसान किस तरह का भोजन करता था. उनकी आदतें क्यां थीं.

इससे उनके रहन-सहन और खान-पान के पैटर्न का पता चलता है. इसलिए इसकी जांच में पता चला कि कुएं में मिले मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के नहीं थे. बल्कि, उनके डीएनए सीक्वेंस यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल में रहने वाले लोगों से मिलते-जुलते थे.

इस रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि इंसान जो कुछ रेगुलर खाता है वो हमारे दांतों के इनैमल में किसी ना किसी रूप में डिपॉजिट हो जाता है. इससे ये पता लगाया जा सकता है कि किसी तरह के मांस या प्लांट्स को वो खाने में इस्तेमाल करता था. इसी पैटर्न पर जांच करते हुए ये पता चल गया कि कुएं में मिले नर कंकाल ने यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल वाले गंगा तट वाले इलाके में खाने के पैटर्न से जुड़े हैं.

इसके अलावा, कंकाल के स्केलेटंस (Skeletons) का जो पैटर्न है वो पंजाब या पाकिस्तान एरिया में मिलने वाले इंसानों से अलग है. रिसर्च में ये भी पता चला कि मरने वाले लोगों की उम्र करीब 21 साल से 49 साल के बीच थी. यानी सभी की औसत उम्र करीब 33 साल रही. इसके अलावा, जांच में कुएं से मिली ज्वैलरी, सिक्कों और मेडल्स की भी जांच हुई.

जिसमें पता चला कि सिक्के क्वीन विक्टोरिया (Queen Victoria) के थे. जो 1799. 1806, 1841 और 1853 में बने थे. इन सभी रिसर्च से ये साफ हो गया कि ये हमारे देश के 1857 क्रांति के ही शहीद सैनिक हैं. जिनके बारे में साक्ष्यों के साथ करीब 165 साल बाद अप्रैल 2022 में हमें जानकारी मिल पाई.

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