SC/ST धारा क्या है? What is SC/ST Act ?

CHIRAG GOTHI

15 Sep 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:26 PM)

What is SC/ST Act ?: अनुसूचित जाति एवंम् अनूसूचित जनजाति पर हो रहे प्रताड़ना को रोकने के लिए एक कानून बनाया गया है। इस कानून को SC/ST Act कहा जाता है।

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SC/ST धारा क्या है? What is SC/ST Act ?

अनुसूचित जाति एवंम् अनूसूचित जनजाति पर हो रहे प्रताड़ना को रोकने के लिए एक कानून बनाया गया है। इस कानून को SC/ST Act कहा जाता है। संसद ने 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया। इसके बाद राष्ट्रपति ने 30 जनवरी 1990 को इस पर मुहर लगाई और ये कानून लागू किया गया।

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एससी/एसटी एक्ट को हिन्दी में [अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून] कहा जाता है और अंग्रेजी में इसे Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act कहा जाता है। इस कानून के अन्तर्गत कुल 5 अध्याय एवं 23 धाराये हैं।

इस अधिनियम का नाम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 है। इसमें 2018 में संशोधन हो चुका है।

इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट का नजरिया क्या है ?

कानून के जानकारों का मानना है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून बहुत लचीला है। इस वजह से कोई भी इस कानून को हथियार बना लेता है। वो किसी भी दूसरे वर्ग/जाति के व्यक्ति पर प्रताड़ना का आरोप लगा देता है और कथित तौर पर आरोपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि इस तरह के मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी की जगह शुरुआती जांच होनी जानी चाहिए। जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा था कि सात दिनों के भीतर शुरुआती जांच ज़रूर पूरी हो जानी चाहिए।

एससी/एसटी एक्ट के तहत कितनी सजा का प्रावधान है ?

हरिजन एक्ट कानून के मुताबिक, अगर कोई किसी हरिजन व्यक्ति के अधिकारों का हनन करता है तो वह कम से कम 6 महीने और ज्यादा से ज्यादा 7 साल तक के कारावास से दण्डित किया जा सकता है।

एससी/एसटी एक्ट के तहत सहायता या कहे कि मुआवजा राशि कितनी है ?

यदि किसी हरिजन वर्ग के व्यक्ति को परेशान अथवा जाति के आधार पर नीचा दिखाया गया है, तो एफआईआर दर्ज होने के बाद ही आर्थिक सहायता पहुचांने का प्रावधान है। अगर दोष सिद्ध हो जाता है तो पीड़ित को केस की ग्रेवेटी के हिसाब से 40000 हजार रुपए से लेकर 5 लाख रुपए देने पड़ सकते हैं।

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