दुष्कर्म-हत्या के लिए जिसे मिली थी फांसी, वह 11 साल बाद रिहा: गजब केस
Court News: मध्य प्रदेश के भोपाल से एक चौंका देने वाला मामला जहां तीन-तीन बार फांसी की सजा पाया कैदी 11 साल बाद रिहा हो गया।
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Court News: मध्य प्रदेश के भोपाल से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां एक शख्स को 9 साल की बच्ची से दुष्कर्म और हत्या करने के जुर्म में मौत की सजा सुनाई गई लेकिन 11 साल बाद उसी शख्स को रिहा कर दिया गया। आप सोच रहे होंगे कि ये कैसे मुमकिन है। तो चलिए हम आपको इसकी वजह भी बता देते हैं। दरअसल, घटना के 11 साल बाद डीएनए रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि तीन-तीन बार फांसी की सजा पा चुका ये आरोपी पूरी तरह से बेकसूर है। बस डीएनए रिपोर्ट में गड़बड़ी की वजह से इस आरोपी को 11 साल जेल की सलाखों के पीछे बिताने पड़े।
2013 में जब खंडवा के रहने वाले अनोखीलाल को पोक्सो एक्ट के तहत मौत की सजा सुनाई गई तब उसकी उम्र महज 21 साल थी। उसे 9 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या का दोषी पाया गया था। आरोपी खुद को बेगुनाह साबित करने के लिये ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गया। और तब जा कर डीएनए टेस्ट से पता चला कि बच्ची के कपड़ों से जो सुराग बरामद हुए वो दरअसल किसी और के थे।
विशेष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि वेजाइनल स्वैब और एनल स्लाइड की डीएनए रिपोर्ट वैज्ञानिकों ने आधुनिक तकनीक से तैयार की है, जो साक्ष्य के तौर पर कोर्ट में मान्य है। इसलिए, मामले में मिले सभी साक्ष्य और सबूतों के उलट, आरोपी डीएनए रिपोर्ट का लाभ पाने का हकदार है जो साबित करता है कि आरोपी के अलावा कोई और भी बलात्कार मामले में शामिल है। अदालत ने यह भी कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि आरोपी की त्वचा मृतक के नाखूनों में पाई गई और मृतक का खून आरोपी के कपड़ों से मिला आरोपी को दोषी साबित नहीं किया जा सकता।
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आरोपी के खिलाफ मामला 2013 में दर्ज किया गया था। बच्ची का शव उसी गांव में एक खेत में मिला था। पोस्टमॉर्टम में दुष्कर्म और हत्या का पता चला। जिसके बाद पुलिस आरोपी को कुछ पुराने मामलों से भी जोड़ने लगी थी। मगर बाद में अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद आरोपी को सभी गुनाहों से बरी कर दिया।
इस मामले में धारा 377 के तहत सबसे पहले खंडवा के सत्र न्यायाधीश ने अनोखीलाल को 6 महीने और 1,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। मामले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और 27 जून 2023 को हाईकोर्ट ने मौत की सजा बरकरार रखी। 2019 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और शीर्ष अदालत ने लोअर कोर्ट को केस पर दोबारा विचार करने को कहा। इसके बाद विशेष अदालत ने अगस्त 2022 में फिर से मौत की सज़ा सुनाई।
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खामियों को उजागर करते हुए, फैसले को सितंबर 2023 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के सामने फिर चुनौती दी गई। अदालत ने बचाव पक्ष को अपना मामला पेश करने का मौका दिया था और खंडवा की विशेष अदालत को मामले की फिर से सुनवाई करने के लिए कहा जिसके बाद डीएनए रिपोर्ट के आधार पर 19 मार्च 2023 को आखिरकार कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।
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