दंगे में गोली लगने के बाद बच्चे को मां अस्पताल ले जा रही थी, दंगाईयों ने बंद एंबुलेंस में दोनों को जिंदा जला दिया
Manipur Violence: मणिपुर (Manipur) में एक एंबुलेंस में तीन लोगों को जिंदा जला दिया गया है, 7 साल के बच्चे को मां अस्पताल ले जा रही थी.
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Manipur Violence: मणिपुर (Manipur) की राजधानी इंफाल में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच 3 मई से हिंसक झड़प देखी जा रही है. इस हिंसा में भीड़ ने तीन लोगों को जिंदा जलाकर मार डाला है. इसमें मां-बेटे भी शामिल हैं जो इलाज के लिए एंबुलेंस से जा रहे थे. रास्ते में लगभग 2000 लोगों की भीड़ ने इन पर हमला किया और उनकी गाड़ी में आग लगा दी. पुलिस द्वारा बताया गया है कि जब आग बुझाने के बाद राख में सिर्फ हड्डियां ही पायी गईं.
यह घटना रविवार को हुई, और इसकी पूरी विवरणिका दो दिनों बाद सामने आयी. मृतकों की पहचान 7 साल के टॉन्सिंग हैंगिंग है, उनकी मां का नाम मीना हैंगिंग है और उनकी रिश्तेदार लिडिया लौरेम्बम के रूप में पहचानी गई हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना इरोइसेम्बा इलाके के लमसांग पुलिस स्टेशन में हुई है. 4 जून की शाम को लगभग 6 बजे, भीड़ ने एंबुलेंस को रोका और उसे आग में जला दिया.
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गांववालों और रिश्तेदारों ने बताया कि महिला ने कुकी समुदाय के शख्स से शादी की थी. जिस एंबुलेंस में आग लगी गई थी, उसमें बच्चे को अस्पताल ले जाने के लिए जा रहे थे. रिपोर्ट के मुताबिक, एंबुलेंस को पुलिस ने सुरक्षा भी दी हुई थी.
दंगाईयों ने बंद एंबुलेंस में दोनों को जिंदा जला दिया
लमसांग पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने बताया कि घटना के बाद पुलिस ने एंबुलेंस के अंदर से कुछ हड्डियां बरामद की हैं. इसी रात, पुलिस ने हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज कर दी थी. कांगपोकपी जिले के कांगचुप चिंगखोक गांव के निवासियों के मुताबिक, तीनों मृतकों में मीना हैंगिंग, उनका सात का बेटा टॉमशिंग और मीना की रिश्तेदार लिडिया लौरेम्बम शामिल हैं.
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मृतकों के रिश्तेदार और गांव के निवासी हैंगिंग ने अखबार को बताया कि 4 जून को इस इलाके में गोलीबारी हुई थी और उसमें टॉमशिंग को सिर में गोली लग गई थी. उसे इंफाल वेस्ट के रिम्स अस्पताल ले जाने के लिए ले जाया जा रहा था.
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हिंसा में गोली लगने के बाद एंबुलेंस से अस्पताल जा रहे थे
असम राइफल्स के अधिकारी ने बताया कि घायल बच्चे को ऑक्सीजन दी गई थी, लेकिन उसकी हालत गंभीर थी. नाम ना छापने की शर्त पर अधिकारी ने कहा कि उनके पास दो ऑप्शन थे. या तो बच्चे को कांगपोकपी जिले में लीमाखोंग के अस्पताल भेजें या 20 किमी से कम दूरी पर राजधानी इंफाल ले जाएं. लीमाखोंग एक कुकी क्षेत्र था, लेकिन इसके रास्ते पर कुछ मैतेई गांव भी थे. दूसरी ओर इंफाल एक मैतेई क्षेत्र था और पास भी था, इसलिए इंफाल जाने का फैसला लिया गया.
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