Shams Ki Zubani: वो क़त्ल जिसके लिए भुट्टो को फांसी हुई, PAKISTAN के सबसे बदनाम मुक़दमे की कहानी

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Shams Ki Zubani: वो क़त्ल जिसके लिए भुट्टो को फांसी हुई, PAKISTAN के सबसे बदनाम मुक़दमे की कहानी
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Shams Ki Zubani: आज की कहानी पाकिस्तान (Pakistan) से है। क्राइम तक में पहले आपको जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी की कहानी सुनाई थी। 4 अप्रैल 1979 को पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को फांसी दी गई थी। आज फांसी की कहानी नहीं बल्कि सुनिए उस कत्ल का मुकदमा जिसमें भुट्टो को फांसी हुई। कैसा था ये कत्ल किसका था ये कत्ल? ऐसा कत्ल एक ऐसा मुकदमा जिसमें आरोपी को सिर्फ और सिर्फ फांसी ही होनी थी।

ये सच है कि पाकिस्तान में जब भी प्रधानमंत्री ने सेनाध्यक्ष बनाया उसी सेनाध्यक्ष ने कुर्सी पलटी और तानाशाह बन बैठा। कहानी शुरु होती है पाकिस्तान के कसूरी परिवर से। इस परिवार के मुखिया मोहम्मद अहमद खान कसूरी थे। पाकिस्तान के खानदानी रईस और सबसे बड़े वकील। कसूरी जुल्फिकार अली भुट्टो से बहुत प्रभावित थे यही वजह थी कि उन्होने भुट्टो की पीपीपी ज्वाइन कर ली। भुट्टो भी कसूरी को बेहद पसंद करते थे। उनकी काबिलियत को सम्मान देते थे।

धीरे धीरे वक्त गुजरता गया और कसूरी व भुट्टो मे विवाद शुरु हो गया। दोनों में अक्सर फैसलों को लेकर विरोधाभास रहता था। जुल्फिकार अली भुट्टो को लोग कायदे आजम भी कहते थे। सत्ता में आने के बाद भुट्टो तानाशाह की तरह व्यवहार करने लगे। अपना विरोध करने वालों को ठिकाने लगाने लगे। यही वजह थी कि कसूरी ने भुट्टो का साथ छोड़ दिया।

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तारीख 10/11 नवबंर 1974 रात के वक्त लाहौर की शमशाद कॉलोनी में कार तेजी से बढ़ी जा रही थी। कार को अहमद कसूरी चला रहे थे। अहमद रजा कसूरी मोहम्मद अहमद खान कसूरी के बेटे थे। मोहम्मद, अहमद खान कसूरी और उनकी पत्नी व साली भी कार में बैठी थीं। कार पर अचानक फायरिंग शुरु हो जाती है। सबने कार में सिर नीचे कर लिया और अहमद ने कार भगाने की कोशिश की।

थोड़ी दूर कार बढ़ी थी कि  मोहम्मद अहमद खान कसूरी का सिर बेटे के कंधे पर निढाल हो जाता है। बेटे को समझते देर ना लगी कि पिता को गोली लगी है लिहाजा बेटे ने कार अस्पताल की तरफ दौड़ा दी। असपताल पहुंचने के बाद ऑपरेशन शुरु होता है और ये खबर आग की तरह पूरे पाकिस्तान में फैल जाती है। रात में ढाई बजे जुल्फिकार अली भुट्टो को खबर दी जाती है। इधर डॉक्टरों की लाख कोशिश के बाद भी मोहम्मद अहमद खान कसूरी की जान नहीं बचाई जा सकी और उनकी मौत हो गई।

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इस वारदात के अहम चश्मदीद अहमद रजा थे लिहाजा पुलिस ने अहमद के बयान लेने शुरु किए। अहमद रजा कसूरी ने बयान में एक ऐसा नाम लिया कि पुलिसवालों के पैरों तले से जमीन खिसक गई। अहमद रजा ने पुलिस को दिए बयान में कहा कि ये हमला उनके पिता की हत्या के लिए नहीं बल्कि मेरी हत्या के लिए किया गया था। इस हत्या की साजिश को पाकिस्तान के वजीर ए आजम जुल्फिकार अली भुट्टो ने रचा है।

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पुलिसवाले हैरान रह गए कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कैसे एफआईआर लिखी जाए। कई बड़े अफसरों ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अहमद रजा अपने बयान पर अड़े रहे। अहमद रजा भी नेशनल असेंबली के सदस्य थे। हत्या के पांच महीने बाद असेंबली का सत्र बुलाया गया था। सेशन चालू ही हुआ था कि अहमद रजा ने हाथ उठाया तो देखा गया कि उनके हाथ में एक शीशी है जिसमें खून भरा है। अहमद ने असेंबली में कहा कि मेरे पिता की हत्या की गई और ये मेरे पिता का खून है।

जुल्फिकार अली भुट्टो भी असेंबली में मौजूद थे लिहाजा विरोधी पार्टियों ने हंगामा शुरु कर दिया। हंगामे को देखते हुए एक जज की देखरेख में जांच कमेटी बना दी गई। कुछ ही दिनों बाद जांच कमेटी नें अपनी रिपोर्ट दी कि इस हत्या में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का कोई हाथ नही है। यू हीं तीन साल गुजर गए लेकिन कसूरी के हत्यारों का कोई पता नही चला ना ही जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। चुनाव आ जाता है। मार्च 1977 में यानि तीन साल बाद। भुट्टो की पार्टी चुनाव जीत जाती है।

चुनाव नतीजे से विरोध प्रदर्शन और बढ़ जाता है। विरोधी आरोप लगाते हैं कि चुनाव में धांधली की गई है। विरोध रोकने के लिए पाकिस्तान में बार, शराब इत्यादि पर रोक लगा दी जाती है। भारत के खिलाफ मुहिम शुरु कर देते हैं जैसे कि पाकिस्तना की सरकारें अक्सर करती रहती हैं। इसी दौरान विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए भुट्टो ने पाकिस्तान की सेना के चीफ के पद पर जनरल जियाउल हक को तैनात कर दिया। शायद ये जुल्फिकार अली भुट्टो की जिंदगी का सबसे गलत फैसला था।

विरोध प्रदर्शन बढ़ता जा रहा था लिहाजा एक रोज़ 4-5 जुलाई 1977 को आर्मी चीफ जनरल जियाउल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो सरकार का तख्ता पलट दिया और पाकिस्तान पर सेना का कब्जा हो गया। जुल्फिकार अली भुट्टो को जेल में डाल दिया गया। जुल्फिकार अली भुट्टो पर मार्शल लॉ लगा दिया गया। भुट्टो के जेल जाने के बाद अहमद रजा ने दोबारा अपने पिता के कत्ल का मामला उठाया।

भुट्टो के खिलाफ जियाउल हक को एक हथियार मिल गया। लिहाजा कसूरी के कत्ल के केस की सुनवाई हुई और मुकदमा शुरु कर दिया गया। भुट्टो किसी भी खतरे से बेखबर थे और मर्शल लॉ लगने के 20 दिन बाद भुट्टो के करीबियों को उठाना शुरु कर दिया गया। कसूरी का केस तेजी पकड़ रहा था। इसी दौरान 11 सितंबर 1977 को कई लोगों की गवाही होती है जो कहते हैं कि कत्ल सरकार के इशारे पर हुआ जिसमें सेना का इस्तेमाल किया गया।

मुकदमा चलता रहा 02 मार्च 1978 को सुनवाई पूरी कर ली गई। 18 मार्च 1977 को फैसला सुनाया। हाईकोर्ट के पांच जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि भुट्टो की स्पेशल फोर्स फेडरल सिक्योरिटी फोर्स के डायरेक्टर मसूद अहमद के साथ मिलकर हत्या की साजिश रची थी। कोर्ट ने भुट्टो को फांसी की सजा सुनाई।   

इस फैसले के बाद भी भुट्टो बेफिक्र थे और उन्होने सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी। नौ जजों की बेंच बनाई गई। हैरानी तब हुई जब 9 जजों में से एक जज रिटायर हो गए जबकि दूसरे जज ने बीमारी का हवाला देकर खुद को सुनवाई से अलग कर लिया। अब इस बेंच में सिर्फ 7 जज बचे थे जिन्हें कसूरी हत्या केस में फैसला सुनाना था।

फरवरी 1979 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था। चार जजों ने कहा कि फांसी की सजा बरकरार रखी जाए। जबकि तीन जजों ने हाईकोर्ट फैसले का विरोध किया और कहा कि इस केस में भुट्टो के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। अब भी भुट्टो बेफिक्र थे और फरवरी में फैसला आने के बाद 4 अप्रैल 1979 की रात दो बजे अचानक जुल्फिकार अली भुट्टो को उठाया कि चलिए आपका टाइम हो गया है।

भुट्टो ने कहा कि मुझे अभी सोना है लेकिन रात के वक्त भुट्टो को गार्ड अपने साथ ले गए और फांसी घर में फांसी पर लटका दिया गया। फांसी के बाद उनकी लाश को चुपचाप दफना दिया गया। हैरानी की बात ये है कि फांसी की जानकारी ना तो भुट्टो की मां और ना ही उनकी पत्नी को दी गई। उनकी लाश दफ्न करने में भी परिजनों को शरीक नहीं किया गया।

साल भर के अंदर जियाउल हक के इशारे पर सबकुछ अंजाम दिया गया। ये फांसी होने के बाद जजों और कोर्ट के फैसलों पर सवाल उठा। कहा जाता है कि पाकिस्तान के इतिहास में ये सबसे बड़ा बेईमानियों से भरा फैसला था। कहा जाता है कि इस केस में एक जज ने भुट्टो को जमानत दे दी थी तो उसको तुरंत पद से हटा दिया गया था।

ये भी कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भी जियाउल हक का दबाव था। बाद में जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं लेकिन उनकी भी हत्या कर दी गई। बेनजीर की हत्या आज भी एक राज़ है। इसी तरह कसूरी के कत्ल में कौन कौन शामिल था ये भी एक राज़ है।     

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