Vijay Mallya News: सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े विजय माल्या को सुनाई ये सजा, जानें क्या है मामला
Vijay Mallya News : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) कल अवमानना के मामले भगोड़े कारोबारी विजय माल्या (Vijay Mallya) की सजा तय करेगा. Get more crime stories in Hindi, webstories and video on Crime Tak
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Vijay Mallya Case: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज अवमानना के मामले भगोड़े कारोबारी विजय माल्या (Vijay Mallya) की सजा तय की. सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या को अवमानना मामले में चार महीने की सजा सुनाई है. इसके साथ दो हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. माल्या को 2017 में ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपनी अवमानना का दोषी करार दिया था.
सजा पर चर्चा के लिए अब तक न तो माल्या पेश हुआ, न उसकी तरफ से कोई वकील आया. 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए माल्या को पक्ष रखने का अंतिम मौका दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अगर अगली सुनवाई में दोषी खुद पेश नहीं होता या अपने वकील के जरिए पक्ष नहीं रखता, तो भी सजा को लेकर कार्रवाई नहीं रोकी जाएगी.
2017 में ठहराया था दोषी
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बैंकों का हजारों करोड़ रुपये हजम कर फरार हुए माल्या को सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2017 को अवमानना का दोषी ठहराया था. उसे डिएगो डील के 40 मिलियन डॉलर अपने बच्चों के विदेशी एकाउंट में ट्रांसफर करने और सम्पत्ति का सही ब्यौरा न देने के लिए अवमानना का दोषी करार दिया गया था. उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज की जा चुकी है. सजा पर चर्चा के लिए दोषी का पेश होना कानूनी जरूरत है, लेकिन विजय माल्या कई बार मौका मिलने के बावजूद पेश नहीं हुआ है.
माल्या को अब तक भारत नहीं लाया जा सका
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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि प्रत्यर्पण की कानूनी लड़ाई हार जाने के बावजूद माल्या कुछ कानूनी दांवपेंच अपना कर यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में बना हुआ है. उसने वहां कोई गुप्त कानूनी प्रक्रिया शुरू कर ली है. यूके की सरकार ने न तो इस प्रक्रिया में भारत सरकार को पक्ष बनाया है, न उसकी जानकारी साझा की है. इस कारण माल्या को अब तक भारत नहीं लाया जा सका है.
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विजय माल्या को होगी कितनी सजा?
सुनवाई के दौरान कोर्ट में यह बात भी उठी थी कि सिविल अवमानना (Contempt Of Court) के मामले में अधिकतम सजा 6 महीने की कैद है. इस पर जस्टिस यु यु ललित, एस रविंद्र भाट और पी एस नरसिम्हा की बेंच ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 142 (सुप्रीम कोर्ट की विशेष शक्तियां) और 145 (अपनी कार्रवाई से जुड़े नियम तय करने का सुप्रीम कोर्ट का अधिकार) के तहत इस तरह की कोई सीमा तय नहीं की जा सकती. कोर्ट ने 5 मई को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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