जब जज को ही मिला तारीख पर तारीख, 32 साल बाद आया कोर्ट का फैसला, जानें क्या है पूरा मामला

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जब जज को ही मिला तारीख पर तारीख, 32 साल बाद आया कोर्ट का फैसला, जानें क्या है पूरा मामला
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Court news in Hindi: राजस्थान (Rajasthan) के बीकानेर में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. आपने अब तक इंसाफ की दहलीज पर न्याय की उम्मीद में आम आदमी की उम्र गुजर जाने के किस्से तो हजार सुने होंगे, लेकिन किसी अदालत को अपने साथ ही धोखाघड़ी के मुकदमे में फैसले के लिए 32 साल तक तारीख पर तारीख मिलीं और उसके बाद फैसला आया. और जब मंगलवार को सजा सुनाई गई तो मामले के मुख्य आरोपी की मौत हुए छह साल बीत चुके थे. केस दर्ज करवाने वाली महिला जज पांच साल पहले रिटायर हो चुकी हैं और जिन दो लोगों को कैद की सजा सुनाई गई, वे अब 74 और 78 साल के हो गए हैं.

मामला राजस्थान के बीकानेर की अपर मुख्य न्यायिक संख्या-एक की अदालत का है. बीकानेर की तत्कालीन न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग की पीठासीन अधिकारी कमल दत्त की कोर्ट में एक महिला पार्वती ने 20 जुलाई 1987 को पति बस्तीराम से गुजारा भत्ता दिलाने के लिए केस दर्ज कराया था. कोर्ट में बस्तीराम ने 15 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने की रसीद पेश की. इस पर कथित रूप से पार्वती के अंगूठे के निशान थे और गवाह के रूप में आत्माराम और जेठाराम ने हस्ताक्षर थे.

फॉरेंसिक जांच में पकड़ा गया फर्जीवाड़ा

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पार्वती के ऐतराज पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने रसीद को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा, जिसमें पाया गया कि रसीद फर्जी तरीके से तैयार की गई और अंगूठे के निशान पार्वती के नहीं हैं. ये रसीद आत्माराम और जेठराम की मदद से फर्जी बनाई गई थी. मजिस्ट्रेट कमल दत्त ने 30 मई 1990 को सेशन जज के सामने बस्तीराम और उसके दोनों साथियों के खिलाफ इस्तगासा (न्याय दिलाने के लिए शिकायत) किया. मामले का संज्ञान लिया गया.

197 तारीखें और सुनवाई होती रही

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बाद में ये केस ट्रांसफर होकर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 1 में चला गया. 32 साल के दरम्यान 197 तारीखें आईं. कभी आरोपी पेश नहीं हुए तो कोर्ट से हाजिरी माफी दी जाती रही. बचाव में वकीलों ने कोर्ट में तर्क दिया कि आरोपियों का ये पहला अपराध है. परिवीक्षा अधिनियम का फायदा दिया जाना चाहिए.

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कोर्ट में झूठे शपथ पत्र और बयान दिए

हालांकि, प्रॉसिक्यूशन अधिकारी का कहना था कि आरोपियों ने फर्जी दस्तावेज बनवाने में सहयोग किया है. कोर्ट में झूठे शपथ पत्र और बयान दिए हैं. अगर आरोपियों को परिवीक्षा अधिनियम का लाभ मिला तो फिर बड़ी हेराफेरी कर सकते हैं. एसीजेएम संख्या एक की पीठासीन अधिकारी परवीन बाबू ने अपनी कोर्ट के सबसे पुराने मामले में आत्माराम (74 साल), जेठाराम (78 साल) को दोषी माना और 6-6 माह की जेल और 3 हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाई. कोर्ट में फैसले में कहा कि अभियुक्तों ने झूठे साक्ष्य गढ़कर कूटरचित रसीद तैयार की और इसे असली बताकर कोर्ट में सबूत के तौर पेश करने का गंभीर अपराध किया है.

32 साल बाद आया फैसला

जानकारी के मुताबिक, 1 मार्च 2016 को बस्तीराम की मौत हो चुकी है. जज कमल दत्त भी 2017 में रिटायर हो गईं हैं. बस्तीराम की पत्नी और पीड़िता पार्वती भी इस दुनिया में नहीं रहीं. उनका 13 सितंबर 2021 को निधन हो गया है. इस मामले में तत्कालीन जज कमल दत्त के सितंबर 2021 में आखिरी बार बयान दिया और अब 32 साल बाद फैसला आया.

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