पति को लंबे समय तक सेक्स की अनुमति नहीं देना मेंटल हैरेसमेंट, डाइवोर्स का आधार भी, कोर्ट का फैसला

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पति को लंबे समय तक सेक्स की अनुमति नहीं देना मेंटल हैरेसमेंट, डाइवोर्स का आधार भी, कोर्ट का फैसला
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Allahabad High Court: यदि पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक शारीरिक संबंध न बने तो यह मानसिक प्रताड़ना और क्रूरता हो सकती है और उसी के आधार पर तलाक लिया जा सकता है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले हफ्ते इसी तरह के क्रूरता के आधार पर एक कपल की शादी को रद्द कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बिना उचित और पर्याप्त कारण के पति या पत्नी को अपने साथी के साथ लंबे समय तक यौन संबंध नहीं बनाने देना अपने आप में मेंटल हैरेसमेंट है.

यह फैसला एक पति द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक की उसकी याचिका खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी.

उच्च न्यायालय ने कहा, "चूंकि कोई स्वीकार्य दृष्टिकोण नहीं है कि एक पति या पत्नी को जीवन भर साथ रहने के लिए मजबूर किया जा सकता है, दोनों पक्ष जबरन विवाह से मुक्त हैं/ " हमेशा के लिए बंधने की कोशिश करने से भी कुछ हासिल नहीं होता, वास्तव में यह शादी खत्म हो गई है."

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रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पीड़िता के पति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि युगल पति और पत्नी ने मई 1979 में शादी की थी. कुछ समय बाद पत्नी का व्यवहार और आचरण बदल गया और उसने पत्नी के रूप में उसके साथ रहने से इनकार कर दिया। काफी मनाने के बावजूद पत्नी ने पति के साथ संबंध नहीं बनाए।

याचिकाकर्ता के अनुसार, कुछ समय तक दोनों एक ही छत के नीचे रहे, लेकिन कुछ समय बाद अपनी मर्जी से अपने माता-पिता के घर चली गई और अलग रहने लगी. अपीलकर्ता ने आगे कहा कि उसकी शादी के छह महीने बाद, जब उसने अपनी पत्नी को अपने वैवाहिक दायित्व का निर्वहन करने और वैवाहिक बंधन का सम्मान करने के लिए ससुराल वापस आने के लिए मनाने की कोशिश की, तो उसने वापस आने से इनकार कर दिया.

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जब यह भी काम नहीं आया, तो जुलाई 1994 में एक पंचायत बुलाई गई और पंचायत इस नतीजे पर पहुंची कि दोनों को सामुदायिक रीति-रिवाजों के अनुसार तलाक दे दिया जाना चाहिए. तदनुसार, पति को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 22,000 रुपये देने का आदेश दिया गया था. तत्पश्चात पत्नी ने पुनर्विवाह किया और जब पति ने मानसिक क्रूरता, लंबी परित्याग और तलाक के निपटारे के आधार पर तलाक की डिक्री मांगी, तो वह अदालत में पेश नहीं हुई, इसलिए अदालत ने मामले की एकपक्षीय सुनवाई शुरू की।

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फैमिली कोर्ट के समक्ष पेश किए गए पूरे साक्ष्य की जांच के बाद, पति का मामला साबित नहीं किया जा सका और मामले को खर्चे के साथ एकपक्षीय खारिज करने का आदेश दिया गया. इससे आहत होकर पति ने तुरंत हाईकोर्ट में अपील की.

उच्च न्यायालय ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने पति के मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसके द्वारा दायर किए गए कागजात फोटोकॉपी थे और उसके द्वारा कोई मूल कागजात दायर नहीं किया गया था और कागजात की फोटोकॉपी साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं हैं. फ़ैमिली कोर्ट ने आक्षेपित फ़ैसले में यह भी देखा कि फ़ाइल में ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह दिखाया जा सके कि पत्नी ने दूसरी शादी कर ली है.

हालांकि हाई कोर्ट ने पाया कि दोनों पति-पत्नी लंबे समय से अलग-अलग रह रहे हैं और पति के मुताबिक पत्नी शादी के बंधन को मानने को तैयार नहीं है. वह पारिवारिक और वैवाहिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं है. हाईकोर्ट ने इस आधार पर उनकी शादी को भंग कर दिया.

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