Delhi Crime: कंकाल खोपड़ी से खुलेगा क़त्ल का राज़, ये तकनीक एक खोपड़ी को देगी उसकी पहचान!

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Delhi Crime Special: तारीख 19 सितंबर 2022 नोएडा पुलिस को ग्रेटर नोएडा के एक जली हुई लाश का कंकाल मिला था। पुलिस ने जांच शुरु की तो पता चला कि यह कंकाल बन चुकी लाश असित सान्याल नाम के बुजुर्ग की है। असित दिल्ली के जनकपुरी के रहने वाले थे।  दिल्ली पुलिस की मदद से जांच आगे बढी तो खुलासा हुआ कि असित को किडनैप कर ग्रेटर नोएडा ले जाया गया था जहां उनका कत्ल कर दिया गया और लाश जला दी गई।

पुलिस ने खुलासा किया असित की हत्या उसके दोस्त अनिल ने की है जिसमें उसने अपने भांजे विशाल की मदद से 50 लाख रुपये हड़पने की नीयत से असित की हत्या कर दी थी। पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार तो कर लिया और ये केस कोर्ट में पहुंच गया। पुलिस और जांच अधिकारियो के सामने मुश्किल ये थी कि लाश कंकाल बन चुकी थी लिहाजा ये कैसे साबित किया जाए कि ये लाश असित सान्याल की ही है।

कंकाल खोपड़ी खोलेगी मर्डर मिस्ट्री!

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ये सवाल इसलिए भी उठ रहा था कि दिल्ली में असित सान्याल अकेले रहते थे और उनके परिवार का कोई सदस्य भी नहीं था जिससे डीएनए तकनीक के तहत मिलान करके साबित किया जा सकता कि लाश असित सान्याल की ही है। चूंकि असित के परिवार में कोई सदस्य नहीं तो लाश की पहचान के लिए कोर्ट ने जांच एजेंसी को मौका ए वारदात से बरामद खोपड़ी के सुपरइम्पोजिशन टेस्ट की इजाजत दी है। सुपरइम्पोजिशन टेस्ट के बाद ये पता चल सकेगा की ये खोपड़ी असित सान्याल की है या नहीं। 

जाहिर है कि मरने वाले की पहचान साबित होते ही क्राइम की कड़ियां और सबूत भी जोड़कर एविडेंस की चेन तैयार की जा सकेगी। अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्या होती है यह सुपरइम्पोजिशन तकनीक? इस तकनीक के जरिए किसी खोपड़ी को उसकी शक्ल और सूरत कैसे दी जाती है। तो आइए आपको बताते हैं कि सुपरइम्पोजिशन तकनीक क्या होती है? फॉरेंसिक एक्सपर्ट किस तरह कंकाल खोपड़ी को उसकी सूरत दे देते हैं।      

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क्या है सुपर इंपोजिशन तकनीक?

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फेशियल सुपर इंपोजिशन एक फोरेंसिक तकनीक है। इस टेस्ट में साइटिस्ट के पास खोपड़ी होती है और जिस शख्स के मरने का शक है उसकी तस्वीर भी साथ में मौजूद रहती है। साइंसदां फोटो को कंप्यूटर में एक विशेष साफ्टवेयर की मदद से खोपड़ी और तस्वीर का मिलान करते हैं। इस तकनीक से कंकाल बनी खोपड़ी के खास हिस्सों मसलन ललाट, मुंह और माथे के हिस्सों का तस्वीर से मिलान किया जाता है।

इस टेस्ट से साबित हो जाता है कि खोपड़ी और फोटो के फीचर मिलते हैं। इस प्रयोग में टेक्निकल कैलकुलेशन के ज़रिए दोनों तस्वीरों के मार्फ़ोलॉजिकल फीचर्स के अध्ययन किया जाता है। इनमें तस्वीरों के ललाट, भौं, नाक, ग्लाबेला, होंठ, आंख, चेहरे की बनावट जैसे करीब 15 बिंदुओं को परखा जाता है। फिर साइंसदान आखिरी नतीजे पर पहुंच कर अपनी रिपोर्ट देते हैं।

क्या है फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक 

इसी तरह एक और भी तकनीक है जिसे कि फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक कहा जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल मैनुअली किया जाता है। जिसके तहत कंकाल खोपड़ी में मांस और त्वचा जैसा एक खास तरह का मैटेरियल भरा जाता है। इस प्रक्रिया में बाकायदा पूरा चेहरा बनाया जाता है। जिसमें आंख कान नाक होठ सब हिस्से आर्टिफिशियल तरीके से लगाए जाते हैं। फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक से मृतक का चेहरा बना दिया जाता है।

आखिर में इस चेहरे को मृतक या संदिग्ध की फोटो से मिलान किया जाता है। साइंटिफिक और फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत और गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया है।

निठारी कांड की जांच में हुआ था इस तकनीक का इस्तेमाल

निठारी किलिंग की बात करें तो इस दौरान भी जांच एजेंसियों के पास बच्चों की पहचान का कोई रास्ता नहीं था लेकिन इस केस में भी जांच एजेंसी ने चंडीगढ़ फॉरेंसिक लैब से सभी बच्चों के डीएनए प्रोफाइलिंग कराई गई और उनकी दांत से लिक्विड लिए गए और उनके माता-पिता के ब्लड से मिलाया गया और उनकी पहचान हो सकी।

जिन बच्चों की पहचान डीएनए से नहीं हो सकी उन बच्चों की पहचान के लिए वैज्ञानिकों ने फेशियल रिकॉनस्ट्रक्शन तकनीक का इस्तेमाल किया और फेशियल सुपर इंपोजिशन के जरिए उनके कंकालों को उनकी पहचान दी गई। तब जाकर इस केस में आरोपियों को सजा हुई। गौरतलब है कि मुंबई के शीना बोरा मर्डर केस में सुपर इंरपोजिशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया था।

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