मोसाद का 'ख़ूनी बदला'! तेहरान में हुई कर्नल की हत्या के पीछे अब सामने आने लगी है ये वजह

GOPAL SHUKLA

25 May 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:19 PM)

ईरान के कर्नल की घर के सामने हत्या, इस्लामिक गार्ड के बड़े अफसर की हत्या से ईरान में हड़कंप, ईरान के फौजी अफसर की हत्या के पीछे मोसाद का हाथ, Iran Revolutionary Guards member assassinated in Tehran

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Latest Crime News: बीते रविवार यानी 22 मई को शाम ढलने से पहले ही ईरान के टीवी चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ की चैप्टर प्लेट चमक रही थी। इन सुर्खियों से ईरान में हड़कंप मच गया। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर के एक आला अफसर की उनके ही घर के बाहर कुछ अनजान हथियारबंद बाइकसवारों ने गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

ईरान की राजधानी तेहरान की मुजाहिदीन-ए-इस्लाम स्ट्रीट यानी तेहरान का वो मोहल्ला जो सबसे पॉश इलाक़ा है। इस मोहल्ले में क़रीब क़रीब सभी लोग बेहद ख़ास हैं। कुछ ईरान की हुकूमत में बड़े ओहदे पर तैनात है या फिर उनका ताल्लुक ईरान की सेना के ऊंचे पदों से है। कुछ और भी लोग रहते हैं इस मोहल्ले में लेकिन वो या तो बड़े कारोबारी हैं या फिर सियासत के माहिर लोग।

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यानी ऊंची बिसात के लोगों का इस मोहल्ले में आशियाना है। ज़ाहिर है ऐसी जगहों पर हिफ़ाज़त का ख़ास इंतज़ाम भी रहता है। लेकिन चाक ओ चौबंद बंदोबस्त के बीच अनजान हमलावर आकर सेना के एक अफसर को गोली से उड़ाकर वहां से ठीक उसी तरह से लापता हो जाते हैं जैसे हवा में धुआं।

Latest World News: गोलियों की आवाज़ से सारा मोहल्ला थर्रा गया। ज़रा सी देर में ही उस पॉश इलाक़े में मजमा लग गया। मौके पर पुलिस भी पहुँच गई। और जब लोगों ने वहां गाड़ी में आधी बाहर आधी भीतर पड़ी एक वर्दीधारी की गोलियों से छलनी एक लाश देखी तो सारा शहर सन्न रह गया। क्योंकि वो लाश किसी मामूली हैसियत के आर्मी अफसर की नहीं थी बल्कि कुद्स फ़ोर्सेज़ के कर्नल हसन सैय्यद खोदयारी की थी।

कर्नल हसन सैय्यद खोदयारी का शुमार इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर यानी IRGC के टॉप अफसरों में किया जाता था। ज़ाहिर है कि उनकी हत्या ने समूची ईरान की सरकार को बुरी तरह से झखझोर दिया।

ईरान को कर्नल हसन सैय्यद खोदयारी की इस हत्या में साल 2020 में हुई ईरान के हुक्मरानों और वहां की खुफिया अफसरों को देश के शीर्षस्थ न्यूक्किलयर साइंटिस्ट मोहसिन फ़खरीजादेह की हत्या का अक्स दिखाई देने लगा। क्योंकि वो हत्या भी कुछ ऐसे ही अंदाज़ में अंजाम दी गई थी।

हत्या के वक़्त फ़ख़रीजादेह अपनी बीवी के साथ कार से अपनी रिश्तेदारी में जा रहे थे, कि अचानक रास्ते में सड़क किनारे खड़ी एक कार में अचानक धमाका हो गया था, जिसकी वजह से ड्राइवर को फ़ख़रीजादेह की कार को ब्रेक लगाना पड़ा। फ़ख़रीजादेह की कार जैसे ही रुकी तो चारो तरफ से कार पर गोलियां बरसने लगी। यहां भी हमलावर बाइक पर ही सवार थे। और क़रीब 12 हथियारों से उनकी कार पर गोलियां बरसाई गई थीं। मगर उस हमले की सबसे ख़ास बात ये थी कि वो हमला कहीं दूर से कंट्रोल किया जा रहा था।

ईरान के टॉप न्यूक्किलयर साइंटिस्ट की हत्या के सिलसिले में पूरे एक साल के बाद सितंबर 2021 को न्यूयॉर्क टाइम्स ने जो रिपोर्ट छापी उसके मुताबिक ईरान के भीतर घुसकर ईरान के टॉप साइंटिस्ट को गोलियों से उड़ाने वाले हमलावर आदमी थे ही नहीं। बल्कि रोबोट्स की टीम ने इस हमले को अंजाम दिया। और इस पूरे हमले के पीछे मोसाद का हाथ बताया गया।

असल में इज़राइल की सरकार कई सालों से ईरान पर नज़र लगाए बैठी हुई थी। उसे खबर मिली थी कि ईरान न्यूक्किलयर हथियार तैयार करने की दिशा में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था। ऐसे में ईरान के इस बड़े और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को रोकने का एक ही तरीक़ा था कि जैसे भी हो इस प्रोग्राम से जुड़े साइंटिस्टों को उससे दूर कर दिया जाए। और उसका एक ही तरीक़ा समझ में आया उन सभी का ख़ात्मा कर दिया जाए।

लिहाजा इज़राइल की सरकार ने मोसाद को खास ज़िम्मेदारी सौंपी कि किसी भी क़ीमत पर ईरान परमाणु हथियार विकसित न कर सके। ऐसे में मोसाद ने एक एक करके ईरान के पांच न्यूक्किलयर साइंटिस्टों को मौत के घाट उतारा।

लेकिन कर्नल हसन सैय्यद खोदयारी का ताल्लुक तो किसी न्यूक्लियर साइंटिस्ट कार्यक्रम से नहीं था, तो फिर उनकी हत्या इस तरह से क्यों और किसने की। इसका जवाब ईरान के नज़रिये से दिया जाए तो इस हत्याकांड के पीछे किसी और का नहीं बल्कि इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का ही हाथ है।

कर्नल हसन सैय्यद की हत्या की असली वजह को समझने के लिए वक़्त को थोड़ा पीछे लेकर चलना होगा। आखिर कर्नल हसन सैय्यद खोदयारी की हत्या अगर मोसाद ने की तो क्यों? कर्नल हसन सैय्यद का कुद्स फोर्सेस में क्या अहमियत थी। और ये कुद्स फोर्सेस ऐसा क्या करती है जिससे मोसाद ने उससे दुश्मनी पाल ली।

तो इन सबकी शुरूआत होती है साल 1979 में। ये वो दौर था जब ईरान में सियासी तौर पर उथल पुथल मची हुई थी। रेज़ा शाह पहलेवी की सरकार गिराने के बाद अयातुल्लाह रुहुल्लाह ख़ॉमैनी ने इस्लामिक रिपब्लिक की स्थापना की थी।

तमाम रद्दोबदल के बीच अयातुल्लाह ख़ॉमैनी ने एक नई तरह सी सेना को तैयार करने पर ज़ोर दिया जो उनकी विचार धारा के साथ साथ देश की सुरक्षा के बंदोबस्त को अलग तरह से देखे और सियासी विचारधारा के साथ साथ मुल्क की सरहदों की हिफाज़त करे। लिहाजा इसी सोच को ज़मीन पर उतारते हुए खॉमैनी ने इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर यानी IRGC का गठन कर दिया। और इसके लिए बाक़ायदा अपने देश का संविधान तक बदल डाला।

इस IRGC का काम का दायरा भी खॉमैनी ने तय किया। यानी IRGC देश के भीतर ऑपरेशन करेगी, यानी देश की आंतरिक सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इसी IRGC पर होगी जबकि देश की सरहदों की हिफ़ाज़त की जिम्मेदारी रेगुलर आर्मी करती रहेगी।

मगर खॉमैनी के तय किए गए दायरे के बीच IRGC सिमट कर नहीं रह सकी और इसके दायरे बढ़ते चले गए। असल में हालात का हवाला देते हुए IRGC की हदों को धीरे धीरे बढ़ाया जाने लगा और देखते ही देखते ये IRGC ईरान की रेगुलर आर्मी से भी आगे निकलकर देश और देश के बाहर भी ऑपरेशन अंजाम देने लगी।

खॉमैनी के सत्ता संभालने के बाद ही इराक़ की सत्ता पर सद्दाम हुसैन काबिज़ हो गया और 1980 में ईरान के पर कतरने की गरज से इराक़ ने ईरान पर हमला कर दिया। और अगले आठ सालों तक चलता रहा। और आखिरकर 1988 में बिना किसी नतीजे से ख़त्म भी हो गया।

इसी दौरान IRGC ने भी अपने पंख फैलाने शुरू कर दिए। और आखिरकार IRGC की चार अलग अलग यूनिट्स को एक नई यूनिट में तब्दील कर दिया गया जिसको नाम दिया गया कुद्स फोर्स यानी पाक सेना। असल में इस फोर्स को तैयार करने के पीछे ईरान का एक मक़सद भी है और वो है यरुशलम की आज़ादी। इसी लिए कुद्स फोर्स को यरूशलम फोर्स के नाम से भी जाना जाता है।

पहले चार यूनिट्स में बंटा रहने वाला IRGC में अब आठ ब्रांचेस हो गई जिसमें से सात की कमान रिवॉल्यूशनरी गार्ड के कमांडर इन चीफ़ के हाथों में रहती है। जबकि कुद्स फोर्स एक समानांतर सेना के तौर पर काम करती है जिसकी रिपोर्टिंग सीधे सत्ता के शीर्ष लीडर को होती है।

हालांकि ईरान में कुद्स फोर्स को हमेशा ही छुपाकर ही रखा गया और उसके ऑपरेशन के बारे में भी आमतौर पर किसी को भनक तक नहीं मिलती थी। यही वजह है कि जब ईरान की इस एलीट फोर्स ने लेबनान के हिजबुल्लाह को ट्रेनिंग दी तो कई देशों ने इसके बारे में बहुत कुछ कहा, लेकिन सबूत और सुरागों की कमी की वजह से वो आवाज़ ज़्यादा ज़ोर से उठ नहीं सकी।

लेकिन दुनिया को ईरान की इस एलीट फोर्स का पहली बार पता 2011 में उस वक़्त चला जब सीरिया में गृह युद्ध भड़क उठा था। ये मध्य एशिया के लिए अरब स्प्रिंग की शुरूआत थी, जिसकी चिंगारी सीरिया समेत कई देशों में भड़की। लेकिन सबसे ज़्यादा असर सीरिया में ही देखने को मिला। यहां बशर अल असद के ख़िलाफ़ बग़ावत हो गई। तब बशर अल असद ने ईरान से भी मदद मांगी। और तभी दुनिया को इस कुद्स फोर्स के बारे में पहली बार अच्छी तरह से पता चल सका।

ये वो दौर था जब इस कुद्स फोर्स की कमान क़ासिम सुलेमानी के हाथों में थी। क़ासिम सुलेमानी 1997 से ही इस फोर्स की कमान सम्भाल रहे थे। और उन्हीं की देख रेख में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के शिया मुस्लिमों को ट्रेनिंग देकर उन्हें सीरिया में लड़ने के लिए भेजा गया। बेशक उस लड़ाई का अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला मगर सीरिया में बशर अल असद को अपनी सत्ता बनाए रखने में काफी मदद मिली।

अब ज़ेहन में यही सवाल आ रहा होगा कि आखिर इन तमाम बातों का 22 मई 2022 को तेहरान में हुई कर्नल हसन सैय्यद खोदयारी की हत्या से क्या लेना देना। आखिर उस हत्या के तार इन तमाम बातों से कैसे जुड़े हुए हैं। तो इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि जनवरी 2020 को इराक़ की राजधानी बग़दाद के इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर सुबह तड़के एक धमाके में ईरान के सबसे अहम कमांडर क़ासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका ने अपना बदला पूरा होने की बात कही थी। सुलेमानी को ईरान में नंबर-दो का दर्जा हासिल था। ज़ाहिर है उनकी हत्या के बाद अमेरिका और ईरान के बीच जब़रदस्त तनाव बढ़ गया था।

इसी तनाव में गुज़रे दस महीनों के बाद इज़राइल की मोसाद ने परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीजादेह की हत्या करवा दी। उस वक़्त बात तो उठी लेकिन तनाव के स्तर पर नहीं पहुंच सकी। लेकिन मई 2022 में जाकर ये बात एक बार फिर ईरान की गैरत को ललकारने जैसी हो गई जब तेहरान में ऐन कर्नल हसन के घर के बाहर उन्हें गोली से उड़ा दिया गया।

ईरान की समाचार एजेंसी इराना के मुताबिक़ कर्नल की हैसियत ईरान में बहुत अहम और बड़ी थीं। उन्हें डिफेंडर ऑफ़ द सेंचुरी भी कहा जाता था, क्योंकि कर्नल हसन ने इराक़ और सीरिया में कुद्स फोर्स के लिए बहुत से ऑपरेशन अंजाम दिए थे।

मगर अब सवाल यही उठता है कि अगर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को फेल करने के लिए इज़राइल की खुफिया एजेंसी अभी तक ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बना रही थी तो फिर उसने कर्नल हसन को उसी अंदाज़ में मौत के घाट क्यों उतारा।

द टाइम्स ऑफ इज़राइल में छपी खबरों पर यकीन किया जाए तो इशारा साफ है कि इज़राइल ईरान के हर उस अफ़सर को सबक सिखाने और मौत की नींद सुलाने से पीछे नहीं रहेगा जिसने किसी न किसी सूरत में इज़राइल और उसकी अस्मिता को चोट पहुँचाई हो।

दुनिया भर के कुछ अखबारों में छपी ख़बरों पर यकीन किया जाए तो कर्नल हसन ही वो मास्टरमाइंड है जिसने भारत की राजधानी दिल्ली में इज़राइली राजनयिक को जान से मारने की साज़िश रची थी। साल 2012 में इज़राइल के राजदूतों पर जानलेवा हमला किया गया था। हालांकि उस हमले में इजराइल के राजदूतों को बचा लिया गया था लेकिन मोसाद की तफ़्तीश में इस साज़िश का सिरा कर्नल हसन के पास तक जाता दिखाई दिया।

हालांकि कर्नल हसन की हत्या के बाद ईरान ने अभी तक किसी भी देश का नाम नहीं लिया लेकिन अपनी दबी ज़ुबान ने ईरान ने मोसाद पर उंगली उठाई है। ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने भी बातों बातों में ये इशारा कर दिया है कि कर्नल की मौत ज़ाया नहीं जाने दी जाएगी, इस हत्या का बदला लिया जाएगा।

लेकिन ये बात राष्ट्रपति रईसी भी नहीं कर सके कि आखिर ये बदला किससे लिया जाएगा। लेकिन ये बात साफ ज़रूर हो जाती है कि अपने ख़ासमख़ास लोगों की ऐसी हत्या का बदला ईरान लेगा ज़रूर।

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