..तो नहीं बनती AK-47 रायफल!
worlds deadliest assault rifle AK-47
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कोई इसकी ताकत की नुमाइश करने के लिए रखता है, तो किसी के लिए ये स्टेटस सिंबल है। जिसे मौका मिलता है वो AK-47 रायफल रखता ज़रूर है। पानी के अंदर किसी को मारना हो या बर्फ़ीले पहाड़ों पर, रेगिस्तान में दुश्मन छिपा हो या घने जंगलों में, किसी के लिए आतंक है तो किसी के लिए आजादी का हथियार। ये हीरो भी है और ये विलेन भी। ये AK-47 है।
20वीं सदी का सबसे खतरनाक हथियार मानी जाने वाली AK-47 राइफल को डिफेंस से ज्यादा अवैध संगठन ही इस्तेमाल करते रहे हैं। AK-47 का इस्तेमाल सबसे पहले रूसी सेना ने किया, आज ये दुनियाभर की सेनाओं और आतंकियों की पहली पसंद है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर..
इस रायफल को दुनियाभर में इतना पसंद क्यों किया जाता है?
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दुनिया की इस सबसे खतरनाक गन का आखिर मैकेनिजम क्या है?
आखिर किस साइंस पर ये मशीन काम करती है?
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आखिर क्यों इस बंदूक को आसान और विश्वसनीय कहा जाता है?
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इसको समझना ज़रूरी है, जानकार बताते हैं कि AK-47 को चलाना बेहद आसान है। किनारे पर लगा लॉक हटते ही बंदूक चलने के लिए तैयार हो जाती है, और ट्रिगर दबाते ही डिसकनेक्टर हैमर को फ़्री कर देता है। इसके बाद हैमर तेजी से आगे की तरफ हिट करता है और फायर शुरू हो जाता है। जब तक ट्रिगर दबा रहेगा गोलियां तब तक लगातार चलती रहेंगी, जब तक मैगजीन खाली ना हो जाए।
दरअसल इस AK-47 बंदूक में जब पहली गोली फायर होती है तो गोली की रफ्तार के साथ गैस जनरेट होती है, जिसका एक हिस्सा गोली के साथ बैरल से बाहर चला जाता है वहीं कुछ गैस नली के जरिए ऊपर बने गैस चेम्बर में जाती है। जहां गैस पिस्टन को तेजी से पीछे की ओर ढकेलती है, चली हुई गोली का खोखा बाहर निकल जाता है, वहीं पिस्टन में लगी स्प्रिंग दबने के बाद दोबार अपनी स्थिति में आती है और पिस्टन को आगे कर देती है।
एक बार फिर मैगजीन से गोली सेलेक्ट होती है, जैसे ही वो आगे निकलती है हैमर एक बार फिर फ़्री हो जाता है और तेजी से हिट करता है, यही प्रोसेज लगातार चलता रहता है और एके 47 से एक के बाद एक गोलिया दुश्मन को चुनचुन कर मारती रहती है।
हालात कैसा भी हो ये बंदूक कभी धोखा नहीं देती, -45 ड्रिगी की सर्दी हो, या गर्मी हो, पानी के अंदर भी ये गन काम करती है। यूं तो AK-47 के लिए कुछ ख़ास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है, लेकिन सैनिक इसका बेहतर इस्तेमाल करें इसके लिए कुछ ख़ास पोजीशन बनाई गई है, क्योंकि युद्धक्षेत्र में दुश्मन कहीं से भी हमला कर सकता है।
अफगानिस्तान औऱ इराक के मिशन में अमेरिका को भी AK-47 के हथियारों की जरूरत पड़ गई थी, क्योंकि धूल भरी आंधियों के बीच अमेरिकी गन ने जवाब देना शुरू कर दिया था। वहीं AK-47 के रखरखाव के लिए ज्यादा टेंशन लेने की जरूरत नहीं होती, बस एक धागा और कपड़े का एक टुकड़ा गन को दो मिनट में साफ कर देता है। मैगी बनाने से ज्यादा आसान और जल्दी।
AK-47 की एक और खासियत ये है कि इसे एसेमंबल औऱ डिसेम्बल करने में वक्त नहीं लगता, सिर्फ 15 सेकेंट में गन को आप एसेंबल करके चलाया जा सकता है। AK-47 को लोड करने के बाद इसका वजन करीब 4 किलो हो जाता है, वहीं AK-47 की उम्र 8 हज़ार राउंड से 20 हज़ार फ़ायर तक होती है। इसकी रेंज 300 मीटर से 600 मीटर तक होती है, इस राइफल में 7.62 इन टू 36 मिलीमीटर के कारतूस आते है जो 710 मीटर प्रति सकेंड की गति से जाते है। AK-47 करीब साढ़े 16 इंच लंबी होती है, वहीं एक मिनट में ये 60 राउंड फ़ायर कर सकती है।
इस गन की यही खूबियां इसे दुनिया की सबसे पॉपुलर गन बनाती है, यही वजह है कि दुनिया की तकरीबन हर फौज के पास एके 47 है। AK-47 एक ऐसा हथियार है जो उस वक्त भी साथ देता है जब सभी साथ छोड़ देते हैं, इसीलिए ये सैनिकों के साथ साथ ये आतंकियों की भी पहली पसंद है। अल क़ायदा का मुखिया ओसामा बिन लादेन भी वीडियो जारी कर के जब अमेरिका के ख़िलाफ़ आग उगलता था तो वो भी इसी राइफल के साथ नज़र आता था।
AK-47 एक ऐसा हथियार जिससे आप प्यार कर सकते हैं नरफ़रत कर सकते हैं, लेकिन नज़रअंदाज़ बिल्कुल नहीं कर सकते। हाथों में पकड़ते ही ये बंदूक एक अलग ताकत का एहसास कराती है।
दो लफ्ज़ों में अगर इस विध्वंसकारी राइफल की तारीफ की जाए तो यही कहा जा सकता है, आसान और विश्वसनीय। आसान इसलिए क्योंकि इसे चलाने में जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती, इस्तेमाल करना आसान, रखरखाव बेहद सरल और विश्ववसनीय इसलिए क्योंकि ये गर्मी, सर्दी, पानी और रेत किसी भी हालात में धोखा नहीं देती।
ओसामा से लेकर बगदादी तक, और तलिबान से लेकर आईएसआईएस तक सब के हाथों में नज़र आती है एके-47, ये सिर्फ हथियार नहीं बल्कि रसूख दिखाने का सामान भी है। तभी तो बॉलीवुड के मुन्ना भाई संजय दत्त भी इसके इश्क में निसार हो गए, और उसका खामियाज़ा अभी तक भर रहे हैं।
एके-47 के नाम से ही लोग डर जाते हैं, चलाने तो बहुत दूर की बात है। जब अमेरिका ने 2003 में इराक पर चढ़ाई की तब सद्दाम के ठिकानों से दौलत के ज़खीरे के साथ उसकी गोल्ड प्लेटेड AK-47 राइफलें भी अमेरिकी सैनिकों ने बरामद की, इन गोल्ड प्लेटेड राइफल्स को सद्दाम ने खास तौर पर तैयार करवाया था।
AK-47 की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1960 से 70 के दशक में मोजाम्बिक में जारी अस्थिरता के बीच इसे इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि राष्ट्रीय ध्वज पर भी इसकी तस्वीरें थी।
रूस ने 1960 के बाद से ही एके-47 मशीन गन की मैनूफैक्चरिंग बंद कर दी थी, बावजूद इसके इसका उत्पादन दूसरे देशों के ज़रिए और अवैध तरीके से जारी रहा। आज एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में करीब 10 करोड़ AK-47 राइफल हैं, इसलिए इसे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्डस बुक ने जगह दी है।
जब जब हथियारों की बात होगी तो मिखाइल क्लाश्निकोव का ज़िक्र सबसे पहले होगा, यही वो इंसान है जिसने दुनिया का ये सबसे खतरनाक हथियार बनाया था, दुनिया का शायद ही कोई ऐसा कोना हो जहां इनके बनाए हथियार की गूंज सुनाई न देती हो। पिछले 60 सालों से भी ज़्यादा समय से दुनिया भर में उनकी बनाई राइफल की तड़तड़ाहट सुनाई दे रही है।
किसी भी हाईटेक हथियार का आविष्कार करने वाले अमूमन बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे होते हैं लेकिन क्लाश्निकोव के साथ ऐसा नहीं था। साइबेरिया के एक किसान के घर जन्म लेने वाले क्लाश्निकोव की हसरत थी कि वो खेती में इस्तेमाल की जाने वाली मशीनों को डिज़ाइन करें लेकिन क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।19 साल की उम्र में वो सोवियत सेना में भर्ती हो गए, इसी दौरान हथियारों के लिए उनका प्यार बढ़ता गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान क्लाशनिकोव जख्मी हो गए, क्लाश्निकोव के लिए ये वक़्त भले ही मुश्किलों से भरा था लेकिन ये उनकी ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट भी साबित हुआ। रूस को उस वक्त जर्मन राइफल की काट की जरूरत थी, उसी दौरान उनसे एक सोवियत सैनिक से कहा कि हम ऐसी ऐसी बंदूक क्यों नहीं बना लेते जो जर्मनी के हथियारों का मुकाबला कर सके। अस्पताल में क्लाश्निकोव ने दुनिया की सबसे खतरनाक गन एके 47 की कल्पना की।
क्लाशनिकोव ने एक मशीन गन बनाई जिसे उन्होंने नाम दिया आवटोमैट क्लाशनिकोवा यानी क्लाशनिकोव का ऑटोमैटिक हथियार।
शुरुआती मॉडल में कई दिक़्क़तें थीं लेकिन साल 1947 में उन्होंने आवटोमैट क्लाशनिकोवा मॉडल को पूरा कर लिया। बोलने में मुश्किल होने की वजह से इसे एके 47 कहा जाने लगा।
इस राइफल की सबसे बड़ी ख़ूबी ये थी कि ख़राब मौसम में भी ये जाम नहीं होती।
1949 में इसे सोवियत संघ की सेना औपचारिक रूप से इस्तेमाल करने लगी और आज भी ये रूस की सेना और पुलिस का सबसे बड़ा हथियार है
शुरूआती मॉडल में कई दिक्कत के बाद ये गन तैयार हुई, हालांकि इसके बाद इसे वक्त के साथ कई बार अपडेट किया गया। और इसके बाद इसके कई वर्जन आए, जैसे AK-56 और AK-103, लड़ाई के मैदान में इस हथियार ने इंकलाब ला दिया। सोवियत सेना ने इस हथियार की मदद से न सिर्फ़ दुनिया भर में अपना सिक्का चलाया बल्कि बड़े पैमाने पर इसे बेचकर काफ़ी पैसा भी कमाया।
2002 में जर्मनी यात्रा के दौरान कलाश्निकोव ने कहा कि था कि..
मुझे अपने अविष्कार पर गर्व है.. लेकिन इस बात का दुख है कि जिस हथियार को मैंने अपने देश की सरहद की हिफ़ाज़त के लिए बनाया था.. आज जब मैं देखता हूं कि उसका इस्तेमाल आतंकी संगठन इंसानियत के खिलाफ़ कर रहे हैं तो मुझे बहुत दुख होता है..
2013 में क्लासनिकोव का 94 साल की उम्र में निधन हो गया, जिनके अविष्कार AK-47 को 20वीं सदी के सबसे बेहतरीन अविष्कारों की सूची में शामिल किया गया है, सोचिए भारत की आज़ादी से पहले 1947 में तैयार हुए इस हथियार का जलवा ऐसा है कि आज भी ये सबका भरोसेमंद है, आज भारतीय सेना भी इस हथियार का इस्तेमाल करती है।
पहले एके 47 का निर्माण सिर्फ रूस करता था, लेकिन बाद में कई देश इसका निर्माण करने लगे। जिनकी डिजाइन अलग अलग होती है, लेकिन तकनीक सेम है। वक्त बदला दुश्मन बदले, युद्ध का तरीका बदला, नहीं बदली को AK-47, इसका रिप्लेस्मेंट ढूढना आसान नहीं। जितनी कानूनी, उतने ही गैर कानूनी तरीके से दुनियाभर में बेंची और खरीदी जाती है ये सबसे खतरनाक रायफल।
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