Turkey, Syria Earthquake Updates: मलबों में सांस ले रही हैं मौत की दर्दनाक कहानियां

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Turkey, Syria Earthquake Updates: मलबों में सांस ले रही हैं मौत की दर्दनाक कहानियां
तुर्की में भूकंप के बाद सामने आई एक पिता और उसकी बेटी की ऐसी दर्दनाक तस्वीर जिसे देखकर दुनिया रो
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चारो तरफ बस तबाही का मंज़र है...सड़कें पूरी तरह से फटी हुई हैं...कहीं कहीं तो ज़मीन में ही धंस गई हैं सड़कें। गाड़ियां गड्डों में समाती नज़र आ रही हैं.. जहां बिल्डिंगें हुआ करती थीं...वहां अब मलबे का ढेर नज़र आ रहा है। ज़मींदोज़ हो गईं इमारतें....नदारद हो गई बस्ती। बचे खुचे मकानों में हो गया दरारों का बसेरा।  

इन दिनों ये सारा मंजर सारा दिन टीवी के पर्दे पर नज़र आता है....लेकिन टीवी के पर्दे से दूर तुर्की और सीरिया की ज़मीनी हक़ीक़त तो इससे कहीं ज़्यादा भयावह है...तुर्किए और सीरिया में भूकंप के बाद आलम कुछ यूं हैं कि जिधर और जहां तक भी नज़र जाती है...सिर्फ तबाही और बस तबाही ही नज़र आती है...

इसी बीच तुर्किए में फैली तबाही के बीच से एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसे देखकर समूची दुनिया दहल गई। ये तस्वीर दर्द की मुकम्मल कहानी सुनाती है और इस बात का अहसास देखने वाले को तब होता है जब इसे बड़े गौर से देखते हैं...और तस्वीर देखने के बाद मजाल है कि कोई आंख गीली हुए बगैर रह जाए।  एक मासूम और मजबूर बाप उस मकान के मलबे के पास बैठा है...बेचारा और बेबस...उसने जैकेट पहन रखी है...उसका एक हाथ जैकेट की जेब में है जबकि दूसरे हाथ से उसने मलबे में दबी अपनी बेटी के हाथ को थाम रखा है...

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तुर्की में मकान के मलबे के पास बैठा एक मजबूर पिता


अब तस्वीर पर आपकी निगाह और गौर करना शुरू कर देती है। मलबे के ढेर में बेड और गद्दा भी नज़र आ जाएगा। और उसी गद्दे के ठीक ऊपर एक मासूम बच्चे का हाथ दिखने लगता है। ...उस हाथ को उसके बाप ने न जाने किस उम्मीद में थाम रखा है...न तो हाथ में कोई हरारत है और न ही कोई हरकत...मगर इस बाप की उम्मीद जैसे अभी जिंदा हो तभी तो उसने एक आस के सहारे अपनी फूल सी बच्ची का हाथ थाम रखा है...

मलबे में दबकर मकान मर चुकी अपनी बेटी का हाथ थामकर बैठा एक मजबूर पिता

ऐसी दर्जनों नहीं बल्कि सैकड़ों कहानियां यहां बिखरे हुए ऐसे मलबों में सांस ले रही हैं...इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे रात को सोते सोते लोग मौत के मलबे में दब गए...भूकंप के झटकों ने तुर्की और सीरिया की जमीन हिला दी...इमारतें हिली और फिर ज़मीदोंज हो गईं...जो घर मजबूर नींव की वजह से खड़े रह गए
वहां दरारों का बसेरा दिखाई पड़ने लगा है...

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मौत की दस्तक देने वाली उस रात की सुबह यहां के हज़ारों लोगों ने फिर कभी नहीं देखी...
लोग बदहवास होकर घरों से खुले आसमान के नीचे सड़कों पर निकल आए...17.8 किलोमीटर की गहराई में कुदरत ने चंद सेकेंड तक अपना प्रचंड रूप दिखाया...और अब वो चंद सेकेंड का असर बीते 70 घंटों पर भी भारी महसूस हो रहा है...क्योंकि ज़मीन की गहराई में कुदरत के दिखाए प्रचंड रूप ने तबाही की जो इबारत ज़मीन की सतह पर लिखी उसे शब्दों में बयां करना शायद ही किसी के बस में हो...क्योंकि दर्द की इस दास्तां को बयां करने के लिए शब्द बहुत बौने हैं.. सड़क पर जो कारें अपने सफर पर थीं....उनकी मंजिल बदल चुकी हैं और कुछ धरती फाड़ भूकंप की चपेट में आकर जमीन में समा गईं...धरती पर आए इस जलजले को सबसे ज्यादा तुर्की के गाजियानटेप में महसूस किया गया...जो भूकंप का केंद्र भी था...यहां कई इमारतें जमीदोज हो गईं... दीवारें गिर गईं...और जख्मियों की गिनती हर गुजरते पल के साथ बढ़ती जा रही है...और ये सिलसिला पिछले 70 घंटों से जारी है... आपको कुदरत के कहर की एक एक ऐसी तस्वीर नज़र आ जाएगी जब आप तुर्की के अलग अलग शहरों में भूंकप से पैदा हुई दहशत को देखने की कोशिश करेंगे। 

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